ट्रम्प को लेकर भक्तों का एक वर्ग बहुत प्रसन्न है कि उन्होंने एक धर्म का नाम लेकर उससे आतंकवाद जोड़कर उससे लड़ने की बात कही। उनको लगता है कि उन्हें अपने देश में व्याप्त आतंकवाद से छुटकारा मिल जायेगा। हमें लगता है कि इन कुछ भक्तों को भ्रम है। भक्त इधर फेसबुक पर तो खूब दहाड़ते हैं पर उनके प्रवक्ता टीवी चैनलों पर यह कहते हुए अपनी जान बचाते हैं कि आतंकवाद को किस्ी धर्म से नहीं जोड़ना चाहिये। अगर भक्त उछल रहे हैं तो पहले अपना आधिकारिक विचार बदल लें। ट्रम्प ने उस धर्म से जुड़े आतंकवाद को पूरी दुनियां से मिटाने की बात कही है पर भक्तों की आधिकारिक संस्थायें तथा प्रवक्ता तो यह मानते ही नहीं। यहां तक कि पाकिस्तान पर शाब्दिक आक्रमण करते हुए भी उसके साथ वहां के कथित राजकीय धर्म का नाम नहीं लेते जिसकी आड़ लेकर खुलकर भारत को अपना दुश्मन कहता है। वह साफ कहता है कि हम हिन्दू धर्म के कारण भारत विरोधी हैं पर भक्तों के आधिकारिक प्रवक्ता वहां भी धर्मनिरपेक्षता का नाम लेकर बच निकलते हैं।
ट्रम्प सीधे आतंकवाद के धार्मिक रूप पर आक्रमण करेगा तब भारत क्या उसके साथ खड़ा रह पायेगा? बिल्कुल नहीं! अप्रत्यक्ष और सांकेतिक रूप से भारत भले ही अमेरिका का साथ दे प्रत्यक्ष़्ा रूप से जूझने के लिये जिस इच्छाशक्ति और मानसिक दृढ़ता की आवश्यकता है वह हमारे यहां नहीं दिखती। हालांकि अमेरिका के लिये भी कठिनाई आने वाली है। भारत कभी भी औपचारिक रूप से कश्मीर तथा अन्य स्थानों पर धार्मिक आतंकवाद की बात नहीं मानेगा। जबकि ट्रंप के सलाहकार ऐसी अपेक्षा करेंगे। इतना ही नहीं यह भी हो सकता है कि अमेरिका अनेक ऐसे कदम उठाये जो कथित रूप से धार्मिक आतंकवाद के विरुद्ध हो तो भारत उनका खुलकर तो नहीं पर दबी आवाज में उसका विरोध करे।
अमेरिका का सबसे बड़ा आर्थिक मित्र सऊदीअरब सीधे अपने यहां स्थित धार्मिक स्थानों का लाभ उठाते हुए एक वैचारिक साम्राज्य पूरे विश्व में बनाये बैठा है। अमेरिका भी साम्राज्यवादी है पर वह केवल अब दिखावे का रह गया है-जैसा कि ट्रम्प ने भी माना है कि अमेरिका दूसरे देशों की रक्षा करता रहा पर अपने नागरिकों के रोजगार नहीं बचा सका। सऊदी अरब को अमेरिका पर इतना जबरदस्त आर्थिक प्रभाव है कि वह वहां के रणनीतिकारों को भी धमकाने लगा था जबकि वहां की सेना अब भी उसका सहारा है। अगर ट्रम्प अपने कथानुसान धार्मिक आतंकवाद के विरुद्ध मोर्चा खोलते हैं तो सऊदीअरब तथा पाकिस्तान उसके सामने खड़े होंगे। भारतीय रणनीतिकार भले ही पाकिस्तान के विरुद्ध जहर उगलें पर सीधे उसकी धार्मिक क्रूरता पर सवाल नहीं उठाते। अनाधिकारिक रूप से भले ही पाकिस्तान में कम होती हिन्दूओं की जनसंख्या पर सवाल उठते हों पर आधिकारिक बयानों में उससे बचा जाता है-ट्रम्प के रणनीतिकार चाहेंगे कि भारत खुलकर वैसे ही धार्मिक आतंकवाद का मामला उठाये जैसे वह उठा रहे हैं। तब लगता नहीं है कि भक्तों के शिखर पुरुष इसके लिये राजी हो। यही पैंच फंसेगा।
हालांकि उसका रास्ता भक्तों के एक शिखर पुरुष ने निकाला था पर लगता है कि उसे तवज्जो नहीं दी गयी। वह रास्ता था पंथनिरपेक्षता का। इसमें व्यापक चर्चा की संभावनायें थीं। हमने इस पर लिखा था पर उसे किसी ने प्रचारित नहीं किया। अब जैसे जैसे 2019 आ रहा है भक्तों के पास से वह समय निकल गया है कि वह देश की नीतियों में कोई बड़ा बदलाव कर सकें। ऐसे में ट्रम्प से पाकिस्तान के प्रति अपनी नीति में बदलाव की आशा करना भी बेकार है जब आप उसके शाब्दिक आक्रमण के समय अपनी कथित धर्मनिरपेक्षता के बोझ तले दबे जाते हों-पंथनिरपेक्षता को लेकर आपके पास इतने तर्क भी नहीं है कि आप यहां बहस चला सकें। जो तर्क दे सकते हैं वह इतने मामूली लोग है कि भक्त उन्हें अपने बौद्धिक शिखर पुरुषों के तुल्य कुछ समझते ही नहीं। मूल बात यह है कि ट्रम्प एकदम नये हैं और उन्हें पाकिस्तान के प्रति भड़काने के लिये धर्म का नाम लेना जरूरी होगा पर यह भारत करेगा नहीं। ऐसे में यह आशा करना कि ट्रम्प पाकिस्तान की हालात खराब करेंगे। बस वह इतना ही कर पायेंगे कि उसे अपने यहां कोई गतिविधि न कर करने दें। अतः भारत को अब की बार ट्रम्प सरकार से ज्यादा अपेक्षा नहीं करना चाहिये। आम भक्त यकीनन यही चाहते हैं कि भारत खुलकर आगे आये पर उनकी संस्थायें और प्रवक्ता कभी खुलकर वह नहीं कर पायेंगे जैसा कि ट्रम्प सरकार अपेक्षा करेगी।
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