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Thursday, August 27, 2015

गीता प्रेस बचाना हिन्दू धर्म की रक्षा के लिये आवश्यक-हिन्दी लेख(Gitapress bachana hindudharma ki raksha ke liye awashyak-hindi article)


                              सुना है गीता प्रेस संकट में है।  एक समाचार चैनल की खबर पर यकीन करें तो यह कहा जा सकता है कि भारतीय  अध्यात्म की अकेली झंडाबरदार इस संस्था का समाप्त होना हिन्दू धर्म का स्वर्ण युग का समाप्त हो जाना होगा। हिन्दू, हिन्दू हिन्दुस्तान का नारा देने वाले अनेक महापुरुष हुए तो आजकल पेशेवर भी कम महापुरुष नहीं दिखते मगर साहित्य और रचना के सहारे समाज को जीवित रखा जा सकता है और यही काम गीता प्रेस ने किया है।
                              जिस तरह मैकाले ने अपनी शिक्षा पद्धति से भारत को इस तरह गुलाम बनाया कि आज भी बौद्धिक धरती पर हमें परायापन लगता है उसके विपरीत गीता प्रेस ने भारतीय अध्यात्म को जिंदा रखने का ऐसा प्रयास किया कि  इस बौद्धिक गुलामी में स्वतंत्र अध्यात्मिक विचार जीवंत बने हुए हैं।  सच माने तो हमारा कहना है कि किसी मंदिर को बनाने या बचाने से ज्यादा गीता प्रेस को बचाना होना चाहिये।  एक मंदिर हजार, लाख या करोड़ लोगों की भौतिक श्रद्धा का केंद्र हो सकता है पर गीता प्रेस जैसी संस्था सदियों तक उसी श्रद्धा को बनाये रखने का काम कर सकती है। जिन लोगों में आर्थिक क्षमता और प्रबंधकीय कौशल हो तथा  धर्म रक्षा करने के लिये प्रतिबद्ध भी हों वह सब काम छोड़कर इस प्रयास में लग जायें कि गीता प्रेस बंद न हो।  हम यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि गीता प्रेस के किताबों के हम पाठक भर हैं और उसके संकट की हमें अधिक जानकारी भी नहीं है पर एक अध्यात्मिक लेखक के रूप में हमारी यात्रा में उसके प्रकाशनों का बहुत महत्व है इसलिये यह लिख रहे हैं। भले ही अंतर्जाल पर हमारे कम पाठक हैं पर इतनी अपेक्षा है कि हमारी बात धीरे धीरे लोगों तक पहुंच जायेगी।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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Saturday, August 22, 2015

पाकिस्तान को प्रमुख अन्य शब्द के जाल में फांसें-हिन्दी लेख(NSA TALKS BETWEEN INDIA AND PAKISTA-HINDI ARTICLE)


                                   पाकिस्तान को अपने ही वाक्जाल में फंसाने का बहुत बढ़िया अवसर भारतीय विद्वानों को पाकिस्तान के ही सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने दिया है। उनके अनुसार उफा समझौते में आतंकवाद प्रमुख मुद्दा है पर उसमें उससे जुड़े अन्य विषय भी हैं।  इस अन्य विषय के अनुसार कश्मीर मुद्दा भी उठेगा।  भारत तथा विश्व में इसका प्रचार इस तरह भी होना चाहिये कि कश्मीर अब पाकिस्तान के लिये प्रमुख नहीं अन्य मुद्दा बन गया है।  कश्मीर में भी उसके समर्थकों को आक्रामक ढंग से यह बताया जाना चाहिये कि वह पाकिस्तान के लिये प्रमुख नहीं वरन् अन्य विषय हो गये हैं। उनको मनोबल गिराने के लिये यह प्रचार एक हथियार का काम करेगा। वह नहीं माने तो भी अभी तक उनसे डरने वाला कश्मीरी जनमानस उनको कमजोर मानकर अब निर्भय हो जायेगा।  भारतीय रणनीतिकारों को तो अब यह कहना चाहिये कि कश्मीर विषय की प्रमुखता से विमुख होना ही पर्याप्त नहीं हम तो अन्य विषय में रखने की भी उसकी शर्त नहीं मानेंगे।  इस प्रमुख और अन्य शब्द के बीच पाकिस्तान बुरी तरह फंस जायेगा।
                                   सरताज अजीज की ही बात माने तो उफा में कश्मीर अन्य मद्दा हो गया है! मतलब भारत से किसी बातचीत में आतंकवाद विषय पर चर्चा से  समय मिलेगा तो ही उस पर चर्चा होगी। नहीं मिला तो....! सरताज अजीज ने अपने देश में ही आयोजित एक पत्रकार वार्ता में माना कि कश्मीर अन्य मुद्दा हैं। भारत के ही कश्मीर प्रदेश में रहने वाले कथित पाकिस्तान  समर्थकों को सलाह है कि वह उस पर ज्यादा यकीन नहीं करें। वैसे कश्मीर के लोग पहले ही पाकिस्तान पर यकीन नहीं करते। सरताज अजीज ने अन्य मुद्दा बताकर उनके अविश्वास को पुष्ट किया है। ऊफा या उफा में पाकिस्तान ने जिस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं उसमें आतंकवाद तथा उससे जुड़े अन्य समस्याओं पर समाधान की चर्चा है जिसे अब वह कश्मीर से जोड़ा बता रहा है। चलिये उनकी यह बात भी मान ली पर एक बात रही कि पाकिस्तान के रणीनीतिकारों  के लिये कश्मीर मुद्दा प्रमुख नही है यह जाहिर हो गया है पर सवाल यह है कि वह इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं कर रहे।
          जब पाकिस्तान स्वयं कह रहा है कि कश्मीर अन्य मृद्दों में शामिल है तब वह इसे वार्ता का प्रमुख विषय नहीं बना सकता। उसके समर्थक इसे समझें।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Sunday, August 16, 2015

योगसाधना से बुद्धि का विकास होता है-भर्तृहरि नीति शतक के आधार पर चिंत्तन लेख(yoga sadhna se buddhi ka vikas hota hai-A hindu hindu reliigion thought article based on bhartriharineeti shatak)

                              इस संसार में हर जीव की देह में चित्त होता है। मनुष्य में बुद्धि और विवेक अधिक होने से चित्त भी वैसा ही चंचल होता है।  यह चित्त या मन भोग की तरह सहजता से आकर्षक होता है और सांसरिक विषयों के प्रति रुझान अधिक होने से मनुष्य को अध्यात्मिक साधना का अवसर नहीं देता।  देखते देखते समय निकल जाता है।  देह जब थकने लगती है तो मन में चिंता और भय का भाव बढ़ जाता है।  भौतिकता का आकर्षण आज नहीं तो कल समाप्त होना है और अध्यात्मिक साधना के अभाव में मन उदासी का भाव घर कर लेता है।
भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि

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भोगा मेघवितानमध्यविलसत्सौदामिनी चञ्चला आयुर्वायुविघट्टिताब्जपटलीलीनाम्बुवद् भङ्गुरम्।
लीला यौवनलालसास्तनुभृतामित्याकलव्य योग धैर्यसमाधिसिद्धिसुलभे बुद्धिं विदध्वं बृधाः।।
                              हिन्दी में भावार्थ-भोग से जुड़े हर विषय की आयु बादल की कड़कती विद्युत के समान ही क्षणिक  होती है। मनुष्य जीवन भी कमल के पत्ते पर थिरकती बूंदों के समान है जो किसी भी क्षण गिर जाती हैं। तृष्णा भी अस्थिर है। बुद्धिमान मनुष्य को चाहिये कि इन सभी का हिसाब लगाये और चित्त को स्थिर कर योग साधना से परब्रह्मा का चिंत्तन करे।
          भोग से रोग होते हैं। योग तथा ज्ञान के अभ्यास से ही मनुष्य  भौतिक विषय की क्षणिक आयु और अध्यात्मिक अभ्यास के प्रभाव को समझ सकता है।  आज जब भौतिकता ने मानव जीवन में अस्थिरता, तनाव और भय का जो भाव पैदा किया है उसे योगाभ्यास से ही दूर किया जा सकता है। योगाभ्यास एक यज्ञ है जिसमें प्राणायाम और ध्यान से नैसर्गिक ऊर्जा का निर्माण होने के साथ ही निरंकार परब्रहम के दर्शन का अनुभव भी होता है।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
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Wednesday, August 12, 2015

राज्य प्रबंध जनोन्मुख बनाये बिना पूर्ण आजादी नहीं मिल सकती-15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर नया पाठ(no real independence without good state managment-A hindi article on 15 august independent day of india)


                                   15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस 2015 को मनाया जायेगा। इस अवसर पर टीवी तथा अन्य प्रचार माध्यमों में  वास्तविक स्वतंत्रता या आजादी पर चर्चा सुनने का मौका भी मिलेगा। इस विषय पर पुराने तर्क या इतिहास सुनाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि गांधीजी के अनेक भक्त मानते हैं कि अभी स्वतंत्रता या आजादी मिलना बाकी है। गांधी भक्तों में वर्तमान काल के सबसे ज्यादा लोकप्रिय समाज सेवी श्री अन्ना हजारे भी मानते हैं सच्ची आजादी मिलना अभी शेष है। जिस तरह स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये गांधीजी के नेतृत्व मे आंदोलन चला वैसे ही आंदोलन आज भी हो रहे हैं। यह अलग बात है कि उस तरह के आंदोलन किसान, छात्र तथा महिलाओं के हितों की रक्षा को लेकर होते हैं पर उनके संचालन वही अहिंसक रूप है जैसा गांधीजी ने बनाया था। इससे एक बात तो निश्चित कही जा सकती है कि जैसी कल्पना स्वतंत्रता के बाद सर्वजनहिताय राज्य प्रबंध व्यवस्था की कल्पना देश भक्त दीवानों ने की थी वैसा हो नहीं पाया।
                                   आमतौर से भारत में महंगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के विषय पर  अर्थशास्त्री अपने अपने ढंग से वक्तव्य देते हैं पर सच यह है कि यह समस्यायें नहीं वरन  हमारे देश में व्याप्त अकुशल प्रबंध की समस्याओं के परिणाम है।  हमने देखा है कि हमारे देश में कोई अपराधिक घटना होती है तो उसे रोकने के लिये नया कानून बनता है जबकि विशेषज्ञ कहते हैं कि पुराने कानूनों पर ही अमल किया जाये तो बढ़ते अपराधों से छुटकारा मिलता है। समस्या यह नहीं है कि किसी अपराध के विरुद्ध कानून नही है वरन् उसे अमल में लाने की व्यवस्था में दोष है जिससे अपराधी निशंक रहते हैं।  हमारे देश मेें जल, अन्न और खनिज संपदा का अपार भंडार है पर वितरण में कुशल प्रबंध व्यवस्था की अभाव में धन का असमान वितरण से गरीब और अमीर के बीस भारी अंतर की स्थिति बन गयी है। हैरानी की बात है कि किसी अर्थशास्त्री ने कभी अकुशल प्रबंध की समस्या से निजात पाने के उपाय नहीं बताये।
                                   राज्य प्रबंध एक गंभीर विषय है पर लगता नहीं है कि अंग्र्रेजों की गुलामी करते हुए यह बात हम समझ पाये। अंग्रेजों से वस्तुओं के भोग के तरीके तो सीख लिये पर सृजन का योग नहीं सीखा। नतीजा वही होना था जो सामने है। 15 अगस्त पर अनेक प्रकार की चर्चायें होंगी और हम यह देखना चाहेंगे कि क्या कोई इस अकुशल प्रबंध की समस्या पर कोई गंभीर विचार रखता है या नहीं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
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Saturday, August 8, 2015

बांग्लादेश में ब्लॉगर की हत्या से सबक सीखने की आवश्यकता-हिन्दी चिंत्तन लेख( murder of A Blogger in bangladesh-reading lesson-hindi thoughtt article)

                  बांग्लादेश में एक हिन्दू ब्लॉग लेखक की हत्या कर दी गयी है। हत्या करने वाले वहीं के वह चरमपंथी हैं जो हिन्दुओं को अपना दुश्मन मानते हैं। हिन्दू ब्लॉगर वहां के इन्हीं चरमपंथियों के विरुद्ध लिखता था।  बांग्लादेश में वह चौथा ब्लॉग लेखक है जिसे मारा गया है। एक योग तथा ज्ञान साधक होने के नाते यह लेखक तो यह मानता है कि धर्म शब्द मनुष्य के व्यवहार, विचार तथा आचरण विषय के सकारात्मक सिद्धांतों के सामूहिक रूप का प्रतिनिधि है और उसके साथ किसी अन्य शब्द जोड़ना ही गलत है। भारत के कट्टर धार्मिक भी हिन्दू शब्द से धर्म की  बजाय  एक संस्कृति से जोड़ते हैं पर पश्चिम से आयी विचारधारायें अपने नाम को अधिक महत्व देती हैं। भारत के पश्चिम में उत्पन्न धार्मिक विचारधाराओं के बीच हिंसक संघर्ष हुए हैं। जब तक उनका भारत में प्रवेश नहीं हुआ था तब तक यहां ऐसा कोई संघर्ष नहीं देखा गया।  आजादी के समय अंग्रेजों ने भारत का धार्मिक आधार पर विभाजन कर ऐसे ही संघर्ष को जन्म दिया जिसकी कल्पना यहां नहीं की जाती थी। आज पाकिस्तान और बांग्लादेश धार्मिक आधार पर ही भारत के प्रति दुर्भावना रखते हैं।
                                   एक दूसरा सवाल भी हमारे मन मे आ रहा है कि किसी भी धर्म के चरमपंथी आलोचना को सहन नहीं करते पर देखा तो यह भी जा रहा है कि अनेक राज्य भी लोगों की आस्था पर आघात पर प्रहार रोकने के लिये किसी भी धर्म की आलोचना को अपराध घोषित करती हैं। भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार धर्म की साधना एकांत का विषय पर विदेशी विचाराधाराओं  सार्वजनिक रूप से समूह में करने की प्रवृत्ति देखी जाती है। इसका लाभ धार्मिक ठेकेदार समूह को अपने हित साधने में उपयोग करते हैं। यही कारण है कि इन धार्मिक ठेकेदारों के इर्दगिर्द भीड़ देखकर राज्य प्रबंध उनके प्रति भय से सदाशयी हो जाता है।  इन्हीं ठेकेदारों से इशारा पाकर उन्मादी दूसरे धर्म के लोगों पर हमला करते हैं। मुश्किल यह है कि एक तो आस्था पर हमले रोकने के राजकीय प्रयासों के चलते वैसे ही किसी धर्म की सीधे आलोचना करने वाले बुद्धिमान कम ही मिलते हैं और जो मिलते हैं उन्हें प्रताड़ित किया जाता है।  अगर यह सरकारी प्रयास न हो तो कथित आस्थाओं को चुनौती देने वाले बहुत हो जायेंगे तब उन्मादी कुछ नहीं कर पायेंगे। इसलिये अब आवश्यकता इस बात की है कि लोगों की आस्था या धार्मिक भावनाऐं आहत होने से रोकने के राजकीय प्रयास बंद होना चाहिये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
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Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Thursday, August 6, 2015

भक्त भोले या मूर्ख नहीं होते-हिन्दी चिंत्तन लेख(bhakt bhole ya murkh nahin hote-hindi chinttan article)

                 
                                   11 किलो सोने के आभूषण पहनने वाला एक बाबा 25 सुरक्षाकर्मियों के साथ चलता है तो एक कथित महिला धार्मिक संत बिकनी पहनकर फोटा खिंचवाती है़।  दोनों के पास कथित रूप से भक्तों का जमावड़ा है पर इसका मतलब यह कतई नहीं है कि भारतीय धर्म के लोग मूर्ख हैं।  इस तरह तो हम उन लोगों को भी मूर्ख कह सकते हैं जो फिल्मों में पैसा खर्च कर मनोरंजन करने जाते हैं।  दरअसल हर मनुष्य में मनोरंजन की भूख होती है और धर्म की आड़ में आकर्षण पैदा कर अपनी रोजी रोटी चलाने वाले उसका लाभ उठाते हैं।  यह बुरा है या अच्छा यह अलग से चर्चा का विषय है पर इतना तय है कि अध्यात्मिक ज्ञानी ऐसे लोगों के पास जाने वालों  को मूर्ख या भोला नहीं मानते।
                                   भारतीय अध्यात्मिक ज्ञानी जानते हैं कि भक्त चार प्रकार के होते हैं-अर्थार्थी, आर्ती, जिज्ञासु और ज्ञानी। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि ज्ञानी भक्त ही मुझे सबसे प्रिय हैं। ज्ञानी ऐसे संतों के पास नहीं जाते पर निरंकार का उपासक होने के बावजूद कभी कभी ज्ञानार्जन और भक्ति के लिये साकार भक्ति के उपासना स्थल पर चले जाते है। । जहां तक धर्म के नाम पर ठेकेदारी करने वालों की बात है तो सच तो यह है कि राजसी वृत्ति के लोग अपने काले धंधे ऐसे ही लोगों के नाम पर कर रहे हैं जो उनके सामने किराये की भीड़ लगाकर उनके प्रचार का काम करते हैं। इसी प्रचार से अनेक लोग यह तमाशा देखने की इच्छा से चले जाते हैं।
                                   कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसे संतों पर चाहे जैसी टिप्पणियां कर लें पर भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा मानने वालों को भोला या मूख कतई न कहें। जो कहेगा हमारी दृष्टि से अज्ञानी होगा।
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Sunday, August 2, 2015

कभी कभी अपने आज्ञाचक्र पर रखा रिमोट भी चलाया करें-हिन्दी चिंत्तन लेख(kabhi kahbi apne agyachakra par rakha rimot bhi chalaya karen-hindi thought article)

                              टीवी का रिमोट आपके हाथ में है, आपका स्वयं का रिमोट आपके आज्ञा चक्र-भृकुटि, नाक के ठीक ऊपर-होता है। टीवी पर किसी चैनल के बदलने से आपके मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता है जरा गौर फरमायें।
                              आज यह लेखक सत्संग से लौटा। कुछ देर शवासन के बाद टीवी खोला। मन में विचार आया कि शवासन करते हुए चलो  मनोरंजन के लिये समाचार सुन लें।  जिस टीवी चैनल को खोला वहां एक फांसी प्राप्त व्यक्ति के-मृत्यु के बाद आदमी अपने अपराधों से मुक्त हो जाता है इसलिये उसके लिये कोई कड़ा शब्द लिखना ठीक नहीं है-समर्थक एक धार्मिक राजनीतिक नेता का चेहरा दिखाई दिया।  समझ में आया कि यह इन्हीं क्लेशी महाशय के सहारे इस रविवार को  आकर्षक-सुपर संडे (super sunday)-का रूप प्रदान करेंगे। थोड़ी देर में मन में कांटे चुभते लगे। तब हमने चैनल बदला तो उस पर महामृत्यंजय जाप का संगीत के साथ प्रसारण हो रहा था।  हम फिर शवासन में चले गये। उस जाप से मन आनंदित हो उठा। वाह क्या बात है?
                              कंप्यूटर पर बैठते ही यह विषय मन में आया कि टीवी के रिमोट से ज्यादा शक्तिशाली तो स्वयं का ही रिमोट है जो नाक के ठीक ऊपर लगा हुआ है। अक्सर हम ध्यान करते हैं और उसमें आनंद भी मिलता है।  निर्बीज ध्यान में समस्त विषयों से परे हो जाते हैं तब अध्यात्मिक आनंद आता है।  कभी कभी न चाहते हुए भी सबीज ध्यान लग जाता  है।  चाहे जैसा भी लगे सह अनुभव करना चाहिये कि  ध्यान में अपने रिमोट की स्वतः  साफ सफाई हो रही है। पहले हमें तय करना चाहिये कि चाहते क्या हैं? आज्ञा चक्र प्रभावशाली-विकार रहित-होगा तब हमें सुख की चाहत परेशान नहीं करती क्योंकि तब उसका वही बटन दबता है जो उस स्थान की तरफ ले जाता है जहां आनंद मिलता है।  जहां बेजान पड़ा है वहां वह बटन तो स्वत दबा रहता है जो क्लेश की तरफ मन को ले जाता है।
                              आखिरी बात कोई बतायेगा कि रिमोट को हिन्दी में क्या कहते हैं?
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