समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
-------------------------


Saturday, November 30, 2013

मन की प्रकृति समझने पर ही सहज योग का मार्ग मिलता है-हिन्दी चिंत्तन लेख(man ki prakruti samajhne par hi sahajyog ka maarg milta hai-hindi thought article)



                        ऐसे विरले लोग ही रहते हैं जो जीवन में एकरसता से ऊबते नहीं है वरना तो सभी यह सोचकर परेशान इधर से उधर घूमते हैं कि वह किस तरह अपना जीवन सार्थक करें। धनी सोचता है कि निर्धन सुखी है क्योंकि उसे अपना धन बचाने की चिंता नहीं है।  निर्धन अपने अल्पधन के अभाव को दूर करने के लिये संघर्ष करता हैं  जिनके पास धन है उनके पास रोग भी है जो उनकी पाचन क्रिया को ध्वस्त कर देते हैं। उनकी निद्रा का हरण हो जाता हैं। निर्धन स्वस्थ है पर उसे भी नींद के लिये चिंताओं का सहारा होता हैं। धनी अपने पांव पर चलने से लाचार है और निर्धन अपने पांवों पर चलते हुए मन ही मन कुढ़ता है। जिनके पास ज्ञान नहीं है वह सुख के लिये भटकते हैं और जिनके पास उसका खजाना है वह भी सोचते हैं कि उसका उपयोग कैसे हो? निर्धन सोचता है कि वह धन कहां से लाये तो धनी उसके खर्च करने के मार्ग ढूंढता है।
भर्तृहरि नीति शतक में कहा गया है कि
----------------------
तपस्यन्तः सन्तः किमधिनिवासमः सुरनदीं
गुणोदारान्दारानुत परिचरामः सविनयम्।
पिबामः शास्त्रौघानुत विविधकाव्यामृतरासान्
न विद्मः किं कुर्मः कतिपयनिमेषायुषि जने।।
            हिन्दी में भावार्थ-किसी तट पर जाकर तप करें या परिवार के साथ ही आनंदपूर्वक रहे या विद्वानों की संगत में रहकर ज्ञान साधना करे, ऐसे प्रश्न अनेक लोगों को इस नष्ट होने वाले जीवन में परेशान करते हैं। लोग सोचते हैं कि क्या करें या न करें।
            योग और ज्ञान साधकों के लिये यह विचित्र संसार हमेशा ही शोध का विषय रहा है पर सच यही है कि इसका न तो कोई आदि जानता है न अंत है।  सिद्ध लोग परमात्मा तथा संसार को अनंत कहकर चुप हो जाते है।  वही लोग इस संसार को आनंद से जीते हैं। प्रश्न यह है कि जीवन में आनंद कैसे प्राप्त किया जाये?
            इसका उत्तर यह है कि सुख या आनंद प्राप्त करने के भाव को ही त्याग दिया जाये। निष्काम कर्म ही इसका श्रेष्ठ उपाय है। पाने की इच्छा कभी सुख नहीं देती।  कोई वस्तु पाने का जब मोह मन में आये तब यह अनुभव करो कि उसके बिना भी तुम सुखी हो।  किसी से कोई वस्तु मुफ्त पाकर प्रसन्नता अनुभव करने की बजाय किसी को कुछ देकर अपने हृदय में अनुभव करो कि तुमने अच्छा काम किया।  इस संसार में पेट किसी का नहीं भरा। अभी खाना खाओ फिर थोड़ी देर बाद भूख लग आती है।  दिन में अनेक बार खाने पर भी अगले दिन पेट खाली लगता है। ज्ञान साधक रोटी को भूख शांत करने के लिये नहीं वरन् देह को चलाने वाली दवा की तरह खाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि केवल एक रोटी खाई जाये तो पूरा दिन सहजता से गुजारा जा सकता है। कहने का अभिप्राय यह है कि जब हम अपने चंचल मन की प्रकृत्ति को समझ लेंगे तब जीवन सहज योग के पथ पर चल देंगे।  यह मन ही है जो इंसान को पशू की तरह इधर से उधर दौड़ाता है।


दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 


अध्यात्मिक पत्रिकाएं