भारत के समाचार चैनलों से हम बोर हो गये हैं इसलिये सीएनएन और बीबीसी देख रहे हैं। वहां ट्रम्प ने सात इस्लामिक देशों पर यात्रा प्रतिबंध लगा दिया है-मतलब अमेरिकी वहां नहीं जायेगे और न वहां से लोग आयेंगे। यह देश हैं-लीबिया, ईरान, सोमालिया, सीरिया, यमन, इराक और सूडान। मजे की बात यह है कि इन देशों की हालत अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद ही बिगड़ी है। जिस संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब पर आतंकवाद पर प्रश्रय का सीधा आरोप है उन्हें इसमें शामिल नहीं किया गया है। कभी कभी लगता है कि ट्रम्प भी इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध दिखावटी सक्रियता दिखा रहे हैं। हमने यूट्यूब पर पाकिस्तान के एक चैनल पर भी एक चर्चा देखी उसमें एक विशेषज्ञ साफ कह रहा था कि ट्रम्प अपने व्यवसाय के लाभ के लिये काम कर रहा है। उसने यह भी कहा कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात पर अमेरिका प्रतिबंध नहीं लगा सकता है क्योंकि वहां के रीयल स्टेट में महंगे मकानों के खरीददार तो इन्हीं देशों से हैं-प्रसंगवश उसने ट्रम्प के रीयल स्टेट व्यवसाय का उल्लेख भी किया। इतना ही नहीं यमन में तो उसके मित्र देश सऊदीअरब ने ही हाहाकार मचा रखा है। दिलचस्प बात है कि सऊदीअरब उस बहावीवाद को प्रोत्साहित देता है जो कि इस्लामिक आतकवाद की जड़ है। वह शियाओं के विरुद्ध सरेआम युद्ध कर रहा है। उसी सऊदी अरब पर ट्रम्प प्रहार करने से बच रहा है। हमारा मानना है कि ट्रम्प का इस्लामिक आतंकवाद को मिटाने का सपना कभी पूरा नहीं होगा-अलबत्ता इस आड़ में अमेरिका आर्थिक लाभ उठाने की कोशिश करेगा। आगे राजनीति क्या रूप लेगी पता नहीं पर अभी तो अनुमान ही लगाया जा सकता है। वैसे ट्रम्प विरोधियों का तर्क जोरदार है कि उनका प्रतिबंध 9-11 के अपराधियों की जन्मभूमि पर सऊदी अरब लागू नहीं है।
वैसे भारत के रणनीतिकारों ने भी दूरदर्शिता का परिचय दिया है और सऊदी अरब तथा संयुक्त अरब अमीरात से अच्छे संबंध बनाकर अपनी वैश्विक भूमिका के लिये अब तैयार रहने का संकेत दिया है। हमने लगातार चर्चायें देखी। अमेरिका में रहने वाले भारतीयों के सामने समस्या आयेगी। वह यह कि वह अपने इंडियन छवि से अधिक हिन्दू छवि पर ही निर्भर होकर अपना बचाव कर पायेंगे। अमेरिका में हो रही सामाजिक उथलपुथल में उनको निरपेक्ष तो रहना ही होगा। भारतीय रणनीतिकारों के सामने भी यह समस्या आयेगी कि वह ‘इंडियन’ की वकालत करें या ‘हिन्दू की। कालांतर में अमेरिका का संयुक्त अरबी अमीरात और सऊदी अरब से भी टकराव होगा क्योंकि फलीस्तीन पर ट्रम्प सीधे इजरायल के पक्ष में है। चीन और रूस जैसे देश कब भारत का साथ छोड़ दें पता नहीं इसलिये भारत को इजरायल के साथ संबंध तो बनाने पड़ेंगे-संभव फलीस्तीन के विषय पर उदासीन नीति अपनानी पड़े।
डोनाल्ड ट्रम्प ने शरणार्थियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के लोगों का प्रवेश भी कठिन कर दिया है। इस पर यूरोप, ब्रिटेन तथा अन्य अनेक देश आपत्तियां कर रहे हैं। भारत के प्रचार माध्यमों में प्रगतिशील और जनवादियों का बोलबाला रहा है। स्थिति यह है कि एक बहुत पुराने लेखक ने भी एक बड़े समाचार पत्र में अमेरिका के प्रतिबंध में अरेबिक धर्म का नाम नहीं लिया। वजह यह है कि निरपेक्षों ने भारत में ऐसे हालत कर रखे हैं कि कोई भी हिन्दू धर्म के अलावा किसी की आलोचना कर ही नहीं सकता। अब यह वोटों का मामला है या नोटों का हमें पता नहीं, पर अब इतना जरूर पता चल गया है कि भारत के कथित निरपेक्ष अमेरिका के कथित सभ्रांत समाज के सक्रिय अपने बौद्धिक आकाओं से प्रेरणा लेते थे। यहां से ही राष्ट्रवादियों को बदनाम करने के पत्र अमेरिका जाते थे। अब अमेरिका में ही इनके कथित बुद्धिजीवी आका संघर्ष कर रहे हैं तब यहां के निरपेक्षों के लिये यह संभव नहीं रहा कि यहां की असहिष्णुता का रोना रोयें।
बहरहाल ट्रम्प की राह आसान नहीं है, वह इतना कमजोर भी नहीं है कि अरब जगत से प्रायोजित प्रचार माध्यमों के आगे झुक जाये। इसलिये आने वाला समय विश्व में उथल पुथल होगा। हम बारम्बार लिख रहे हैं कि भारतीय रणनीतिकारों के लिये भी राह आसान नहीं है क्योंकि वह अपनी निरपेक्ष छवि के साथ अमेरिका का साथ लंबे समय तक नहीं दे सकते। वैसे ट्रम्प अपने कारनामों से कई ऐसे मिथक ध्वस्त करने जा रहे हैं जिनके सहारे पूरे विश्व के बौद्धिक लोग समरसता का राग अलापते थे। आने वाले समय में पूरा विश्व उथलपुथल की राजनीति से जूझता नज़र आयेगा-इसमें संशय नहीं है।
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