ट्रम्प हिन्दूओं के प्रशंसक है पर भारत में वर्चस्व तो धर्मनिरपेक्षों का है। हिन्दूत्व की धारणाओं के साथ समस्या यह है कि स्वयं हिन्दू ही नहीं जानते कि उनका मूल स्वरूप क्या है? श्रीमद्भागवत गीता को हिन्दूओं का प्रमाणिक धार्मिक ग्रंथ माना जाता है जिसमें स्पष्टतः कहा गया है कि मनुष्य को सभी के प्रति समान दृष्टि रखना चाहिये-यहां तक कि मित्र और बैरी में भी भेद करने वाला अज्ञानी है। अगर ट्रम्प के वक्तव्यों का सार समझें तो हिन्दू धर्म उनके लिये मित्र है पर ऐसे में भारत के असली तथा नकली धर्मनिरपेक्ष दोनों प्रकार के लोगों के लिये समस्या खड़ी होगी।
वैसे भी ट्रम्प की पार्टी भारत की अधिक समर्थक नहीं मानी जाती। भक्तगण आतंकवाद के विरुद्ध उसके संघर्ष के कारण आश्वस्त जरूर रहे हैं पर इधर ट्रम्प ने तो उसे सीधे धर्म से जोड़ दिया है। अब भक्त तथा उनके इष्ट अलग जगह पर खड़े हैं। भक्त हिन्दू धर्म की प्रधानता से खुश होंगे पर क्या इष्ट के लिये यह संभव है कि वास्तविक धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने के बाद अमेरिका के नवीन राष्ट्रपति के साथ आतंकवाद पर सामंजस्य बिठा सके। ट्रम्प सरकार मूलतः ईसाई धर्म मानने वाली है-इस पर अलग से बहस हो सकती है। ट्रम्प स्वयं हिन्दू धर्म तथा हिन्दूओं के प्रशंसक हैं। ऐसे में अपना धर्मनिरपेक्ष चेहरा लेकर भक्तों के इष्ट कैसे ट्रम्प के सामने आयेंगे। भारत के एक परिवारवादी दल का नेता तो पहले ही अमेरिका रणनीतिकारों के सामने ‘देश के लिये हिन्दू आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा बता चुका है पर क्या भक्तों के प्रवक्ताओं में यह साहस है कि वह अरेबिक विचारधारा का खतरा खुलकर बयान कर सकें?
एक तो ट्रम्प का दल वैसे ही भारत के प्रति उपेक्षासन का भाव रख सकता है ऐसे में उनकी स्पष्टवादिता के सम्मुख हिन्दूत्व के प्रवक्ता कितना टिकेंगे यह देखने वाली बात होगी। एक बात तय रही कि ट्रम्प धर्मनिरपेक्ष शब्द से प्रभावित नहीं होंगे। उनके समक्ष एक दृढ़ हिन्दू की छवि ही टिक सकती है। ऐसे में भक्तों के इष्ट के सामने समस्या यह होगी कि वह अपनी किस छवि के साथ ट्रम्प से मिलें? वैसे भारतीय रणनीतिकार इस बात से तसल्ली कर रहे होंगे कि अभी तो अमेरिका के चीन और रूस के साथ संबंधों पर ही चर्चा हो रही है। भारत के बारे में खामोशी है। पर्दे पर भारत की चर्चा से भारतीय रणनीतिकार घबड़ाते हैं क्योंकि उनको लगता है कि तब कश्मीर का मसला ज्यादा प्रचारित होता है-जिसका स्थाई हल ढूंढने की उनके पास शक्ति तो पर इच्छा शक्ति नहीं है क्योंकि ऐसे में ढेर सारी सुविधायें छिन सकती हैं जो धर्मनिरपेक्ष होने के कारण मिलती है। हमने ट्रम्प का उद्घाटन भाषण सुना तो यह बात समझ में आ गयी कि न केवल भारत वरन् भक्तों के रणनीतिकारों के सामने असुविधाजनक स्थिति आ गयी है यही कारण है कि वह ट्रम्प के अरेबिक धर्म से जुड़े आतंकवाद को समाप्त करने के दावे पर चुप बैठे हैं। न केवल प्रचार माध्यम मौन हैं पर भक्तों के अग्नि छाप नेताओं ने भी कुछ नहीं कहा।
ट्रम्प ने देश के प्रचार माध्यमों से ही सतत युद्ध घोषित किया है-भारत के अनेक कथित बुद्धिजीवी हमेशा ही असहिष्णुता के मामले में अमेरिका के प्रचार माध्यमों की तरफ समर्थन की टकटकी लगाये देखते थे-उनके लिये चिंता का विषय है क्योंकि वह अपने ही देश के भक्त समूह को असहिष्णु बताते थे जबकि उनसे ज्यादा तो अमेरिका में ही हल्ला मचा है। अनेक कथित सहिष्णुवादी लोग यहां व्याप्त असहिष्णुता को लेकर अमेरिका पत्राचार करते थे। अब वह क्या मुंह लेकर वहां दिखायेंगे? सबसे बड़ी बात यह कि जिस अरेबिक धर्म की विचारधारा पर कथित हमले को लेकर यहां हौव्वा खड़ा करते थे उससे जुड़े आतंकवाद पर ट्रम्प ने खुला हमला बोल दिया है। सबसे बड़ी बात यह कि अमेरिका की जिस सहिष्णु मूर्ति पर हमारे यह कथित बुद्धिजीवी मत्था टेकते थे वह अब खंडित हो गयी है। देखना यह है कि अब आगे भारत और अमेरिका के रिश्ते किस तरह बढ़ते हैं। भक्तगण एक बात से संतुष्ट हो सकते हैं कि अब उनके विरुद्ध कोई चिट्ठी अमेरिका में ट्रम्प के पास नहीं जाने वाली।
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