दिमाग बंद कर
दिल का दरवाजा
खोला नहीं जाता।
हादसों में घाव का
बहता रक्त
तोला नहीं जाता।
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सुंदरता के सभी दीवाने
दिल की बात
समझे कोई नहीं।
झील से गहरी आंखों पर
मरने वाले न जाने
वह सोई नहीं।
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हमने तो यादों का
खजाना संभाला था
पर उनके दिल पर ताला था
भटके ज़माने में
कौन उन्हें
समझाने वाला था।
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उनके कंधों पर उम्मीद रखी
यही हमारा कसूर है।
नतीजा अब यह कि
दिल से यकीन दूर है।
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अगर फूलों के रंग होते
हम भी होली मना लेते।
भावनाओं के तार मिलते
प्रेम की झोली बना लेते।
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दिल की पहचान नहीं
दिमाग से प्यार करें।
जज़्बातों को छू नहीं पायें
आंखों में नकली प्यार भरें।
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खिलाड़ी भी बिकते हैं,
महंगे हों वही टिकते हैं।
बाज़ारवाद के दौर में
बंधुआ आजाद दिखते हैं।
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फुर्सत नहीं मिलने का
बहाना हमेशा करते हैं।
मुफ्त की मुलाकातों से
वह शायद डरते है।
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कपड़े के रंग से बनाते छवि
वह कैसे फकीर हैं।
राजस्व की लूट से बने
वह कैसे अमीर हैं।
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इशारे क्या समझेंगे
शब्दों को ही नहीं समझ पाते।
वह खुश हैं ज़माने से
कहे जो नासमझ जाते।
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इश्क के किस्से भी
रोज सुनाये जाते हैं।
आज भी मरे आशिक
नकदी से भुनाये जाते हैं।
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अपनी प्रतिष्ठा गंवाकर
दूसरे की निंदा करते हैं,
इस तरह आत्मसम्मान
वही जिंदा करते हैं।
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