भारत के पांच राज्यों में चुनाव होने के बाद देशभर में प्रचार परिणामों का विश्लेषण परंपरागत ढंग से सतही रूप से समाज को जातिपाति, धर्म तथा भाषायी आधार पार बांटकर कर रहे हैं। कम से कम फेसबुक पर यह उम्मीद तो करते हैं कि यहां सक्रिय मित्र जनमानस का सही विश्लेषण करेंगे पर लगता नहीं कि ऐसा हो रहा है। भक्तगण उत्तर प्रदेश में अपने दल की जीत पर सीना फुला रहे हैं। वहां के मुस्लिम मतदाताओं को वह जिस तरह देखते हैं उस पर हमें आपत्ति होती है। हम स्वयं भारतीय अध्यत्मिकवादी हैं पर जब सांसरिक विषय में अपना हित सार देखते हैं। इसी कारण हमारा मानना है कि आमतौर से भारतीय धार्मिक, जातीय तथा भाषायी समूहों में बंधे रहना पसंद करते हैं पर जब राज्य प्रबंध का विषय हो तो वह केवल इस आशा से मतदान करते हैं कि उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बेहतर सड़कें, शुद्ध पानी तथा नियमित बिजली के लिये बेहतर राज्य प्रबंध की आशा करते हैं।
आजादी के बाद से ही देश में राजनीति, पत्रकारिता तथा अन्य जनसंपर्कीय क्षेत्रों में ऐसे लोग सक्रिय रहे हैं जो पूरे समाज को सतही दृष्टि से देखकर यह मानते हैं कि वह गहन चिंत्तक हैं-वह स्वयं आमजन की बजाय एक विद्वान की तरह सोचने के साथ ही बोलते और लिखते दिखना चाहते हैं जिससे सब गड़बड़ हो जाता है। समस्या यह है कि भक्तों का विद्वान समूह उनका विरोध तो करता है पर उसकी विचारशैली कमोबेश उन जैसी ही है-यही से ही हम जैसे अध्यात्मिक चिंत्तकों की राह उनसे अलग हो जाती है। पांच राज्यों में लोगों ने मतदान बेहतर राज्य प्रबंध की आशा से किया है। कट्टर भारतीय अध्यात्मिकवादी होने के बावजूद हम कहते हैं कि चाहे भी जिस भाषा, जाति, धर्म या वैचारिक समुदाय का सदस्य हो उसने अपनी प्रतिबद्धता केवल राज्य से दिखाई है।
भारत में वैचारिक धाराओं का प्रवाह सदैव ऋषियों, मुनियों तथा तपस्वियों ने ही किया है। अनेक राजाओं ने भी राजधर्म का निर्वाह कर लोगों को अभिभूत किया पर उनकी प्रतिष्ठा किसी विचारधारा की वजह से नहीं होती। हम भगवान राम की बात करते हैं पर उनकी छवि भी अध्यात्मिक तत्व की प्रबलता के कारण है-उन्होंने राज्य का त्याग कर एक ऐसी छवि बनायी जिसका उदाहरण नहीं मिलता। भगवान कृष्ण भी अध्यात्मिक तत्व के कारण पूजे जाते हैं न कि द्वारका के राजा होने के कारण उन्हें भगवान कहा जाता है। मूल बात यह है कि राजसी विषय में सात्विक तत्व के साथ काम करना चाहिये पर इसका आशय यह कतई नहीं है कि देवों की तरह पुजने के लिये प्रचार में रत रहा जाये। हमारा मानना है कि आम भारतीय जनमानस अन्य देशों की अपेक्षा अधिक अध्यात्मिक तत्व से भरपूर है। अतः यहां जात पात या धर्म के आधार पर मतदान होने की बात कहना स्वयं को धोखा देना है।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja "Bharatdeep",Gwalior madhya pradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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