आप अगर सात्विक हैं पर ज्ञानी नहीं तो आपका राजसी कर्म उस रूप में फलीभूत नहीं रह सकता जिस तरह चाहते हैं। इस संसार में कर्म तीन प्रकार हैं होते है-सात्विक, राजसी तथा तामसिक। इसमें राजसी कर्म में कर्म व फल का भौतिक सिद्धांत चलता है जिसमें कल्पना या आदर्श ढूंढना अज्ञान ही कहा जा सकता है।
1.राजसी कर्म में संलिप्त लोगों में फल की कामना होती है और जब वह आपका सहयोग करें तो कार्य संपन्न होने पर पुरस्कृत अवश्य करें।
2. हम यह कभी मानकर न चलें कि सात्विक व्यक्ति अगर राजसीकर्म में सहयोग कर रहा है तो उसे पुरस्कार की आवश्यकता नही है। यह मानकर कि वह निष्कामी है और हमारा काम करना उसका कर्तव्य है उसे पुरस्कार न दें। ऐसा सोचना अज्ञान है।
3.एक बात याद रखें सात्विक ज्ञानी व्यक्ति की आंतरिक शक्तियां इतनी प्रबल होती हैं कि वह समय पर अगर कर्तव्य निभाता है तो पुरस्कार न मिलने को अपमान समझकर वह दंड भी दे सकता है।
4.अपना काम निकल जाने पर सात्विक ज्ञानियों को भूल जाने वाले कृतघ्न बहुत जल्दी अपने स्थिति से गिर जाते हैं।
हम इतिहास का अध्ययन करें तो जिन राजपुरुषों ने सात्विक, ज्ञानी, तथा योगियों का सम्मान किया उन्होंने दीर्घ अवधि तक राज किया पर जिन्होंने उनका अपमान किया वह अंततः अपनी स्थिति से भ्रष्ट होकर काल कलवित हो गये। महाभारतकालीन विद्वान विदुर जी का कहना है कि बुद्धिमान की बाहें लंबी होती है उससे कभी बैर नहीं लेना चाहिये। उसी तरह उन्होंने यह भी का है कि अपना काम करने वालों को उपयुक्त पुरस्कार देखकर उसकी प्रसन्नता क्रय करना चाहिये।
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1.राजसी कर्म में संलिप्त लोगों में फल की कामना होती है और जब वह आपका सहयोग करें तो कार्य संपन्न होने पर पुरस्कृत अवश्य करें।
2. हम यह कभी मानकर न चलें कि सात्विक व्यक्ति अगर राजसीकर्म में सहयोग कर रहा है तो उसे पुरस्कार की आवश्यकता नही है। यह मानकर कि वह निष्कामी है और हमारा काम करना उसका कर्तव्य है उसे पुरस्कार न दें। ऐसा सोचना अज्ञान है।
3.एक बात याद रखें सात्विक ज्ञानी व्यक्ति की आंतरिक शक्तियां इतनी प्रबल होती हैं कि वह समय पर अगर कर्तव्य निभाता है तो पुरस्कार न मिलने को अपमान समझकर वह दंड भी दे सकता है।
4.अपना काम निकल जाने पर सात्विक ज्ञानियों को भूल जाने वाले कृतघ्न बहुत जल्दी अपने स्थिति से गिर जाते हैं।
हम इतिहास का अध्ययन करें तो जिन राजपुरुषों ने सात्विक, ज्ञानी, तथा योगियों का सम्मान किया उन्होंने दीर्घ अवधि तक राज किया पर जिन्होंने उनका अपमान किया वह अंततः अपनी स्थिति से भ्रष्ट होकर काल कलवित हो गये। महाभारतकालीन विद्वान विदुर जी का कहना है कि बुद्धिमान की बाहें लंबी होती है उससे कभी बैर नहीं लेना चाहिये। उसी तरह उन्होंने यह भी का है कि अपना काम करने वालों को उपयुक्त पुरस्कार देखकर उसकी प्रसन्नता क्रय करना चाहिये।
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