सुना है दिल्ली में कोई अभिव्यक्ति की आजादी वाजादी पर आंदोलन चल रहा है। पहले बिहार में जब चुनाव होने वाले थे उस समय असहिष्णुता पर अभियान चला था। उत्तरप्रदेश में चुनावों को देखते हुए यह अभियान पहले चलना था पर लगता है इसके लिये नायक और नायिकाओं का चयन देर से हुआ। एक मजेदार बात यह है कि राष्ट्रवादियों के विरोधी हमेशा ही कहीं न कहीं पाकिस्तान का समर्थन जरूर करते हैं। इस बार एक शहीद की संतान ने बताया कि पाकिस्तान ने उसके पिता को नहीं मारा। बवाल मचना था मच गया।
राष्ट्रवादियों का मुकाबला हमेशा ही जनवादी करते हैं और यह समझ में नहीं आता कि वह अपने अभियान में पाकिस्तान के समर्थन का संकेत अवश्य क्यों देते हैं? पीछे से प्रगतिशील भी आ जाते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि इनकी आजादी की अभिव्यक्ति केवल पाकिस्तान के खुलेआम तक ही सीमित क्यों होती है? इसका मतलब यह है कि यह लोग भी प्रचार चाहते हैं। इन्हें उम्मीद है कि जब आगे कभी प्रगतिशील सरकार आयी तो शायद उनको कोई सम्मान वगैरह मिल जायेगा-संभव है संयुक्त अरब अमीरात में कहीं नौकरी या सेमीनारों के लिये बुलावा आने लगे। यह भी संभव है अभी राष्ट्रवादियों के विरोधी इन्हें धन वगैरह देते हैं-हमारा मानना है कि बिना अर्थ के आजकल हम जैसा मुफ्त में लिखने वाला लेखक भी किसी से प्रतिबद्ध होकर नहीं लिखता तब यह लोग क्या दूसरें के लिये जूझेंगे-इस उम्मीद में कि उनका प्रभाव बना रहे। फिर प्रचार माध्यमों का भी ऐसी कथित संवदेनशील बहसों पर विज्ञापन का समय भी पास हो जाता है। सबसे बड़ी बात यह कि पाकिस्तान का समर्थन किये बिना राष्ट्रवादियों के विरोधियों को प्रचार नहीं मिलता इसलिये कहीं न कहीं से वह जानबूझकर ऐसा करते हैं।
बहरहाल इस तरह राष्ट्रवादी और उनके विरोधी जनवादी अपने प्रगतिशील साथियों के साथ समाचारों और बहसों में आकर टीवी चैनलों के विज्ञापन का समय खूब पास करते हैं। खासबात यह कि हिन्दी चैनलों में इसे आजकल उत्तर प्रदेश के चुनावो की वजह से कम महत्व मिल रहा है जबकि अंग्रेजी चैनल इस पर हल्ला मचा रहे हैं। जनवाद और प्रगतिशीलों समर्थक यह अंग्रेजी चैनल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी निष्पक्षता दिखा रहे हैं पर हमारा मानना है कि जिस तरह ट्रम्प ने आक्रामकता दिखाई है उसके चलते राष्ट्रवादियों को बदनाम नहीं कर पायेंगे। हां, हम ऐसे उत्साही जवानों को यह बात बता दें कि राष्ट्रवादियों के विरोध के चलते अब उनको संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब में नौकरी या सेमीनारी मिलने की संभावनायें अब न के बराबर हैं क्योंकि दोनों ने अब उनके साथ मित्रता बना ली हैं। हालांकि इनका यह भ्रम कब टूटेगा कि राष्ट्रवाद का विरोध पाकिस्तान के समर्थन पर ही टिका है।
No comments:
Post a Comment