अभी तक हम जनवादियों के अमेरिकी साम्राज्यवाद पर निरंतर प्रवचन सुनते थे। अमेरिका एक पूंजीपति तथा साम्राज्यवादी देश है-यह भ्रम जनवादियों ने भारत में खूब फैलाया है। अब जिस तरह ट्रम्प अप्रवासियों के विरुद्ध अपनी ही न्यायापालिका से जूझ रहे हैं उससे हमें लगता है कि यह भ्रम था। दरअसल दुनियां भर के शिखर पुरुष अपनी पूंजी एकत्रित कर अमेरिका में ले जाते और वहां अपना निवास आदि बनाने के साथ पर्यटन भी करते थे। अब तो अमेरिका में ही अर्थविशेषज्ञ कह रहे हैं कि हमारा पूरा ढांचा ही विदेशी मेहमानों पर निर्भर है। हमने देखा भी होगा कि हमारे सामाजिक, आर्थिक, कला, सिनेमा तथा पत्रकारिता के शिखर पुरुष अमेरिका जाकर वहां की अर्थव्यवस्था को ही मजबूत करते हैं। अगर कभी किसी की तलाशी हो जाये तो यहां ऐसा शोर मचता है जैसे कि अमेरिका हमारे देश को कोई प्रांत हो
वैसे हमने ब्लॉग पर अनेक लेखों में इस भ्रम पर अपना विचार व्यक्त किया था। अमेरिका में कोई भारतीय बड़े पद पर पहुंच जाये या कोई सम्मान पाये तो यहां ऐसे जश्न मनता है जैसे कि कोई बड़ा तीर मार लिया है। यहां तक नोबल के आगे भारत रत्न और ऑस्कर के आगे फिल्म फेयर सम्मान की कोई औकात ही नहीं मानी जाती। अमेरिका को सामा्रज्यवादी मानना ही दरअसल जनवादियों की देश में व्याप्त गुलामी की मानसिकता का पालन पोषण करना रहा है। यहां तक जनवादियों के दो इष्ट पुरुष चीन का राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस का पुतिन भी अपना पैसा वहां भिजवाता है-पनामा लीक्स में इनका भी नाम है। कभी जनवादियों ने अपने पूंजीपतियों के अमेरिका में पैर पसारने का जिक्र नहीं किया इससे संशय तो होता ही है। हमने अपने लेखों में तो यहां तक लिखा है कि अमेरिका तो विश्व के पूंजीपतियों का उपनिवेश है जहां से वहां अपना नियंत्रण सभी देशों पर रखते हैं-यही उसके शक्तिशाली होने का राज भी है।
जिस तरह ट्रम्प के सात देशों के नागरिकों पर बैन लगाया गया है और उस पर पूरे विश्व में प्रदर्शन हो रहे हैं उससे तो लगता है कि पूरा विश्व उसका उपनिवेश है। अमेरिका देश नहीं वरन् विश्व के उन पूंजीपतियों की राजधानी है जहां से पूरा विश्व संचालित है। जनवादी अमेरिकी साम्राज्यवाद की बात करते हैं जो कि उनका ही गढ़ा हुआ कल्पित पात्र लगता है। जनवादी भी ट्रम्प के निर्णय का विरोध कर रहे हैं-इसका आशय यह है कि वह मानते हैं कि अमेरिका पूरे विश्व का बाप है और प्रतिबंध लगाकर वह अपने सात बच्चों के साथ अन्याय कर रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि अमेरिकी साम्राज्यवाद की वह कल्पित धारणा खंडित हो रही है जिसके आधार वामपंथी विश्व भर के जनमानस को बौद्धिक संशय में डाल कर अपने हित साधते थे। सबसे बड़ी बात यह कि अपने ही देश के निर्णय के विरुद्ध अमेरिका के अनेक बौद्धिक भी खड़े हुए हैं जिनको लगता है कि पूरा विश्व ही उनका उपनिवेश है और यह रोक उनके महान होने की छवि पर सवाल खड़े करती है-उससे ज्यादा उनका स्वयं के महान होने की छवि का भ्रम खंडित हो रहा है।
अमेरिका के नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रचार माध्यम तथा अरेबिक आतंकवाद के विरुद्ध एक साथ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि कम से कम 72 अरेबिक धार्मिक आतंकवादी घटनाओं को मीडिया ने छिपाया। हमें नहीं मालुम कि वह कौनसी घटनायें हैं पर फेसबुक पर अनेक बार यजीदी, कुर्दिश तथा ईसाई महिलाओं के साथ इराक तथा सीरिया के आतंकवादियों की भयानक बदतमीजी की घटनायें समाचार बनी पर अंतराष्ट्रीय प्रचार माध्यमों ने उन्हें नहीं बताया। हमें भी कई बार लगा कि यह शायद अरेबिक धर्म को बदनाम करने के लिये प्रचारित हुईं हैं पर ट्रम्प के बयान से लगता है कि यह सच है।
कुछ लोग यह सवाल उठा सकते हैं कि आखिर अल्जजीरा, सीएनएन और बीबीसी वाले ऐसे समाचार क्यों दिखायें? समूचा अरब जगत कोई इनके समाचार क्षेत्र में आता है क्या?
हमारा जवाब है कि जब अरेबिक लोगों पर प्रतिबंध के बाद इराक के बीमार बच्चे का अमेरिका आना बाधित होने पर जब यह चैनल हाहाकार मचा रहे हैं तो फिर यह बात भी कही जा सकती है कि इराक का एक बच्चा जब समाचार क्षेत्र के दायर में आ सकता है तो हजारों यजीदी तथा कुर्द महिलाओं के साथ बदसलूकी तथा उनकी हत्या का समाचार क्यों नहीं आ सकता?
एक बात तय रही कि ट्रम्प ने साबित कर दिया है कि वह मीडिया की वह परवाह नहीं करते। जब से आये हैं तब से अमेरिका सहित पश्चिमी जगत के समूचे मीडिया में उनका नाम एक दबंग छवि का पर्याय बन गया है। प्रसंगवश भारत में भी हिन्दू धार्मिक संगठन प्रचार माध्यमों पर ऐसे ही आरोप लगाते हैं जिसमें कहीं कोई एक गैर हिन्दू पर प्रहार हुआ तो बिना जानकारी के प्रचार माध्यम हिन्दू संगठनों पर हमला करते देते हैं जबकि कहीं एक साथ हिन्दुओं पर सामूहिक हमला होता है तो प्रचार माध्यम खामोश रहते हैं-हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है पर अपनी फेसबुक की दीवार पर अनेक ऐसे संदेश देखे हैं जिस पर यकीन करें या नहीं समझ में नहीं आता।
----
No comments:
Post a Comment