बहुत छोटे पर प्रकृति तथा जीव के दैहिक, मानसिक तथा बृहद वैचारिक ज्ञान तथा विज्ञान से सुज्जित ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता का प्रादुर्भाव भारत में ही हुआ। ज्ञानी वही है जिसने उसका ज्ञान धारण किया है। ज्ञानी जनमानस व्यवहार से एक दूसरे के स्तर की पहचान गीता के ज्ञान से करते हैं पर सामान्य लोग उसका ज्ञान बघार कर अपने लिये ज्ञान का प्रमाण पत्र जुटाते हैं।
हमने श्रीमद्भागवत गीता तथा अन्य धर्मग्रंथों के अध्ययन के बाद चिंत्तन और मनन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि हमारे ऋषि, तपस्वी तथा महापुरुषों ने भारत में ज्ञान का संचय इस कारण ही किया क्योंकि यहां सबसे ज्यादा अज्ञानी रहते हैं। कहते हैं कि भारत भूमि पर ही देवता अवतरित होते हैं इसका कारण भी यह है कि दैत्य भी यहीं बसते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि सबसे श्रेष्ठ और सबसे दुष्ट मनुष्य हमारी अध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण भारत भूमि पर ही होते हैं।
हमने अनुभव किया है कि अगर किसी ने भाषा में लिखना या बोलना सीख लिया तो उसके अभिव्यक्ति होने के लिये दो ही मार्ग होते हैें। एक तो वह अध्यात्मिक ग्रंथों के ज्ञान की चर्चा कर अपनी साधना की प्रक्रिया पूरी करे या फिर वह इनमें वर्णित व्यंजना विधा में लिखी गयी कहानियों के निष्कर्षों पर कटाक्ष कर अपने आधुनिक विद्वान होने का प्रचार करे।
हमने जब सोशलमीडिया पर आठ वर्ष पूर्व लिखना प्रारंभ किया था तब अध्यात्मिक ग्रंथों से संदेश पढ़कर अपनी अभिव्यक्ति देने लगे। पढ़ने के बाद हमें यह अनुभव हुआ कि उसके ज्ञान का ऐसा भंडार है जो अन्यत्र नहीं हो सकता। श्रीगीता पढ़ने क बाद लगा कि उसके आगे तो कुछ है ही नहीं।
बहरहाल हमने मान लिया कि इस संसार में हर तरह की प्रवृत्ति के व्यक्ति की उपस्थिति सहजता से स्वीकार करनी होगी। हम जैसे हैं वैसे सब हो जायें यह तो सपने में भी नहीं सोचा। इसके विपरीत हम अनेक विद्वानों को अपने जैसा संसार बनाने के लिये प्रयासरत देखते हैं तो हंसी आती हैं। हम किसी के वाक्यांश पर प्रहार नहीं करते क्योंकि जानते हैं कि उसके मन मस्तिष्क के पटल पर यही अंकित है।
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ज्ञान वही जो जिंदगी को सलीखे से जीना सिखाये
ReplyDeleteबहुत सुन्दर