रौशनी के रहवासी
अंधेरों के घेरे से
घबड़ाते हैं।
नहीं जानते
रौशनी के खंबे
अंधेरी बस्तियों के
मजदूर ही लगाते हैं।
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सौदागर कर रहे
लोगों से घर में
रौशनी के लिये चांद का सौदा।
विज्ञापन के बीच जारी बहस
बेईमानी कम करने पर
भूले ईमानदारी का मसौदा।
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अरसा हो गया
धरती से फरिश्तों को
लापता हुए
अब यादों में ही आते हैं।
अब तो शैतान ही
मुखौटा लगाकर
धोखा देने आते हैं।
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जहान की चिंता करते
शब्दों के व्यापारी
चीज कोई बेचते नहीं
छवि बना लेते भारी।
सपने साथ वादों का
व्यापार अनवरत जारी
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हमने तो हमदर्दी जताई
वह रस्म मानकर सो गये।
हमारे दिल से निकले
शब्द हवा में खो गये।
दर्द हल्का करने का भ्रम
यूं ही ढो गये।
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आत्मघात करने वाले
अब वीर कहलाने लगे हैं।
ज़माने के लिये रोने वाले
अब पीर कहलाने लगे हैं।
कहें दीपकबापू रक्तकुंड
अब नीर कहलाने लगे हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.comयह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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