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Sunday, March 13, 2016

राज्य जोंक की तरह व्यापार से कर वसूल करे-मनुस्मृति के आधार पर चिंत्तन लेख(State Must libral on Tax for Trade Devlopment-A Hindu Hindi Thought based on ManuSmiriti(

हमारे देश की अर्थव्यवस्था समाजवाद के उस उस खिचड़ी सिद्धांत पर आधारित है जो पूंजीवाद और जनवाद के मिश्रित तत्वों बना है। इस सिद्धांत के अनुसार धनिक से अधिक कर लेकर गरीब का कल्याण किया जाना चाहिये।  जिस कृषि को भारतीय अर्थव्यवसथा का आधार माना जाता है वहां से कोई कर नहीं वसूला जाता-अनेक लोगों ने राय दी थी कि बड़े किसानों पर कर लगना चाहिये पर भारतीय आर्थिक रणनीतिकर इस सोच से भी घबड़ाते हैं कि कहीं उन पर गरीब विरोधी होने का आरोप न लग जाये। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि समाजवाद के नाम पर नये पूंजीपति पैदा होने से रोका गया जिससे कथित विकास के नाम पर चंद औद्योगिक घराने परंपरागत रूप से अपना वर्चस्व बनाये हुए हैं।  उदारीकरण की प्रक्रिया में भी उन्हें ही सुविधायें मिल रही हैं। इससे हुआ यह कि हमारे यहां परंपरागत व्यापार  पर ही करों का बोझ पड़ा है जो कि मध्यमवर्ग ही संचालित करता है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि

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यथा फलेन युज्येत राजा कर्ता च कर्मणाम्।
तथ वेष्य नृपो राष्ट्रे कल्पयेत् सततं करान्।।
हिन्दी में भावार्थ-राज्य प्रबंधक को कर इस तरह लगाना जिससे व्यापार की बढ़ोतरी होने के साथ कोषालय में यथोचित लाभ पहुंचे। ठीक उसी तरह जैसे जोंक, बछड़ा तथा भ्रमर धीरे धीरे भोजन ग्रहण करते हैं।
अगर हम अपने देश के परंपरागत ढांचे को देखें तो यहां कृषि के बाद उच्च, मध्यम तथा निम्न तीनों वर्ग इस पर आश्रित रहे हैं।  नयी शिक्षा प्रणाली जहां पहले ही व्यापार करने की प्रवृति का हतोत्साहित कर रही थी वहीं अब आधुनिक विकास ढांचे में उसके लिये जगह ही नहीं बची है। औद्यागिक संस्थान अपने उत्पादों का व्यापार स्वयं कर रहे हैं। इतना ही नहीं आवश्यक खाद्य पेय वस्तुओं को भी वह बृहद व्यापार संस्थानो में विकास की वस्तुऐं बना रहे हैं जिससे परंपरागत व्यापार का स्वरूप ढहता जा रहा है जो कि हमारे समाज का कृषि के बाद दूसरा ठोस आधार है।
यह सही है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है पर समाज के केंद्र बिंदू में स्थित होने के कारण व्यापारिक वर्ग का बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यही वर्ग संस्कार, संस्कृति तथा धर्म की धारा का नियमित प्रवाह भी करता रहा है। अगर हम चाहते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था सृदृढ़ हो तो हमें इस वर्ग में प्रोत्साहन की धारा प्रवाहित करनी होगी।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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