जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों के एक वर्ग ने महिला दिवस पर मनुस्मृति को जलाकर जश्न मनाया। जहां तक हमारा अनुमान है इसके पीछे जनवादी विद्वानों का प्रश्रय है। हमारी चार वर्ष पूर्व एक कार्यक्रम में जनवादी विचारक से भेंट हुई तब उसे हमारे साथी ने बताया कि ‘यह महाशय मनुस्मृति के विषय पर सकारात्मक रूप से लिखते हैं।’
वह तपाक से बोला था कि‘हम तो कभी मनुस्मृति जलाने का कार्यक्रम बनाना चाहते हैं। उसमें स्त्रियों तथा दलितों के लिये तमाम गलत बातें लिखी हुईं हैं।’
हमें हंसी आ गयी पर हमने मनुस्मृति का फिर से अध्ययन करने का निश्चय किया तब समझ में आ गया कि वर्तमान समय में अनेक आकर्षक चेहरे छद्म रूप से ऐसे धनदाताओं के बुत भर हैं जो अनुचित काम से अपना जीवन चलाते हैं। मनुस्मृति में भ्रष्टाचारियों, व्याभिचारियों तथा अन्य अपराधों के लिये कड़ी सजा का प्रावधान है जो शायद आज के छद्म सभ्रांत समाज के लिये अनुकरणीय नहीं है। इसलिये उसका विरोध महिला तथा दलित उद्धार के नाम पर हो रहा है। उस विचारक का नाम तो याद नहीं पर चार वर्ष से मनुस्मृति जलाने के समाचार की खबरें अंतर्जाल पर ढूंढते रहे। शायद अब सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में यही समय अब उनके साथियों को उपयुक्त लगा। वह विचारक अब इसमें शामिल हैं या नहीं कह नहीं सकते पर उनके सहविचारकों का यह कारनामा हमारे लिए हास्य का विषय है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
--------------शोचन्ति जामयां यत्र विनशत्याशु तत्कुलम।न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।हिन्दी में भावार्थ-उस परिवार का शीघ्र नाश हो जाता है जिसकी नारियां दुःख उठाती हैं। जहां नारियां सुखी हैं वहीं विकास होता है।
हैरानी तो इस बात की है कि भारतीय धर्म के अनेक प्रचारक भी मनुस्मृति की चर्चा से बचते हैं। मनृस्मृति में यह स्पष्ट लिखा गया है कि धर्म के नाम पर लोभ की प्रवृत्ति से काम करने वालों को कतई संत न माना जाये। इतना ही नहीं जिन लोगों को वेद के ज्ञान के साथ ही उस पर चलने की शक्ति नहीं है उन्हें न तो विद्वान माने न उन्हें दान दिया जाये। हमने देखा है कि विद्वता के नाम पर पाखंड करने वाले लोग अधिकतर उच्च वर्ग हैं और मनुस्मृति में जिस तरह भ्रष्ट, भयावह तथा व्याभिचार के लिये जो कड़ी सजा है उससे वह बचना चाहता है। खासतौर से राजसी कर्म में लिप्त लोग भ्रष्टाचार, भूख, भय के साथ अन्य समस्याओं से जनमानस का ध्यान हटाने के लिये पुराने ग्रंथों को निशाना बना रहे हैं जिसमें भ्रष्ट, व्याभिचार तथा अन्य अपराधों के लिये कड़ी सजा का प्रावधान हैं। मनुस्मृमि की वेदाभ्यास में रत ब्राह्ण, समाज की रक्षा में रत क्षत्रिय, व्यवसाय में रत व्यापारी तथा इन तीनो की सेवा करने वाला सेवक जाति का है। इन्हीं कर्मों का निर्वाह धर्म माना गया है। स्पष्टतः जन्म से जाति स्वीकार नहीं की गयी है। लगता है कि मनुस्मृति के विरुद्ध प्रचार किन्हीं सिद्धांतों की बजाय आत्मकुंठा की वजह से की जा रही है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
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