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Sunday, December 13, 2015

बाबा रामदेव की योगी व उत्पाद विक्रेता की छवि का संघर्ष( Imege of Baba Ramdev between Yogi and Product Seller)

                               इधर हम अंतर्जाल पर सामाजिक जनसपंर्क लेखकों की टिप्पणियां और पाठ देखते है तो लगता है कि  बाबा रामदेव के उत्पादों पर उनकी नकारात्मक दृष्टि हो गयी है।  इनमें से अधिकतर वह लोग हैं जिन्हें स्वाभाविक रूप से बाबा रामदेव या भारतीय अध्यात्मिक दर्शन का विरोधी नहीं माना जा सकता। ऐसे लेखकों में भारतीय अध्यात्मिक तत्व मौजूद हैं पर वह बाबा रामदेव के योग से दूर हटकर व्यवसायिक रूप में आने पर निराश हैं। यदि वह परंपरागत विचारधाराओं के लेखक होते तो शायद हम उनके शब्दों को अनदेखा कर देते पर चूंकि वह स्वतंत्र लेखक हैं इसलिये हमारा मानना है कि उनकी आपत्तियों पर विचारा होना ही चाहिये।
                               बाबा रामदेव ने भारतीय योग साधना को आमजनों में लोकप्रिय बनाने का जो काम किया, वह अनुकरणीय है। हम जैसे योग और ज्ञान साधक  उनकी तुलना भक्तिकाल के महापुरुषों से करते रहे हैं। आमजनों में उनकी छवि रही है पर लगता है कि दवाईयां, बिस्कुट, आटा, घी तथा पेय पदार्थ बेचते बेचते उसका क्षरण  हो रहा है। अभी तक यह देखा गया कि भारतीय अध्यात्मिक के जीवंत व्यक्तित्व के रूप में ऐसी छवि  बनी हुई है जो अक्षुण्ण रहेगी। अब जिस तरह उनके उत्पादों के प्रति नकारात्मक चर्चा प्रचार माध्यमों के स्वर नकारात्मक हो रहे है वह दुःख से अधिक चिंता का कारण है। आगे इन्हीं उत्पादों का नकारात्मक पक्ष आने पर उनकी छवि प्रभावित भी हो सकती है। हम जैसे अध्यात्मिक चिंत्तकों के लिये यही चिंता का विषय है।
                               हमें याद है जब चौदह वर्ष पूर्व उद्यान में हम कुछ योगसाधना के दौरान जब सिंहासन व हास्यासन करते थे तो लोग मजाक उड़ाते थे। तालियां बजाते थे तो लोगों को लगता कि शायद यह मानसिक रोगी हैं। बाबा रामदेव के प्रचार पटल पर आने के बाद अब लोग समझ गये कि योग साधक वास्तव में करते क्या हैं? इसका मतलब यह भी है कि प्रचार की वजह से ही उन्हें लोकप्रियता मिली।  अब योगशिक्षा से अधिक उनके उत्पादों का प्रचार हो रहा है जिसमें कहीं दोष भी बताया जाता है। ऐसे में लग रहा है कि कहीं ऐसा तो नहीं धीरे धीरे उनकी छवि से जुड़े योग को जनमानस में विस्मृत करने का प्रयास हो रहा है। हमारा विचार है कि बाबारामदेव को अपनी योग की छवि पर ही अधिक ध्यान देना चाहिये। वैसे भी योग साधना जहां पूर्ण रूप से अध्यात्मिक विषय हैं वही विक्रय योग्य वस्तु राजसी गुण का प्रतीक है जिसमें ऊंच नीच होता ही रहता है।  ऐसे में अगर अध्यात्मिक छवि के आधार पर राजसीकर्म का विस्तार होता है तो उसका प्रभाव भी परिणाम के अनुसार अच्छा बुरा हो सकता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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1 comment:

  1. रामदेव जी यदि विदेशी सब कम्पनीज को धीरे धीरे भगा दें तो बहुत ही अच्छा हो जाये। आप मेरी वेबसाइट जरूर देखिये http://www.couponzpoint.com इसमें आपको ७०% तक के Coupons मिलेंगे।

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