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Sunday, December 27, 2015

अखंड भारत के लिये चिंत्तकों की सेना बढ़ानी होगी(Akhand Bharat ke liye Chinttakon ki sena badhani hogi)


                               आजकल प्रचार माध्यमों पर अखंड भारत की चर्चा चल रही है। सच बात तो यह है कि अंग्रेजों ने भारत के खंड कर उसे स्वतंत्रता दी। उनका मुख्य उद्देश्य यह था कि कभी भारत इतना शक्तिशाली न हो जाये कि कहीं उनके सम्राज्य को ही चुनौती मिलने लगे। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी शिक्षा प्रणाली, राज्य प्रबंधन व सांस्कृतिक पद्धति भारतीय जनमानस में इस तरह स्थापित की वह गुलामी के जाल से कभी बाहर ही नहीं आ सके। हम आज जब खंड खंड हो चुके भारतवर्ष का नक्शा देखें तो इस बात की भावनात्मक अनुभूति होगी कि  इस क्षेत्र में लोगों के आपसी सहज संपर्क रोकना ही अप्राकृतिक प्रयास है। हम आज अपने पड़ौसी अच्छे संबंध की बात कर रहे हैं-यह ऐसा ही जैसे किसी व्यक्ति के  हाथ पांव अलग अलग जंजीरों में बांध कर कहंे कि वह सहृदयता की साधना कर रहा है। हम जिन्हें पड़ौसी कह रहे हैं वह हमारी भारतभूमि का अभिन्न अंग हैं। जिसे हम पाकिस्तान कह रहे हैं वह हिन्दूओं के दो बड़े स्थान हैं-सक्खर का जिंदपीर और ननकाना साहिब का गुरुद्वारा। प्राचीन तक्षशिला और हिंगलाज माता का मंदिर भी वहीं स्थित है। सबसे बड़ी बात यह कि हमारे इन कथित नये पड़ौसियों को  धर्म की छत्रछाया मेें वहां केे समाजों को लाने की कोशिश की गयी-जो बेकार साबित हुई। हम आज जिस भारतीय समाज के मूल सहिष्णु स्वभाव की बात कर रहे हैं उसके ठीक विपरीत यह विभाजन हुआ है। फिलहाल अखंड भारत बनना कठिन लगता है पर सच यह है कि इसके बिना इस क्षेत्र में शांति भी नहीं हो सकती।
                              
                               मूलत हिन्दू धर्म नहीं वरन् एक ऐसी जीवन पद्धति है जिसमें मानव जाति को अन्य जीवों से अधिक प्राकृतिक गुण होने का सत्य स्वीकार करते हुए विशिष्ट कर्म के लिये प्रेरित करती है। भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार ही मनुष्य में अन्य जीवों से अधिक गुण होना तभी लाभदायक है जब बौद्धिक अभ्यास किया जाये। अंग्रेजों ने भारत का विभाजन धर्म के आधार पर इसलिये कराया ताकि यहां का समाज इतना शक्तिशाली न हो जाये कि कहीं उनका मायावी सम्राज्य बिखर जाये।  भारत में विभिन्न पूजा पद्धतियां हमेशा रही हैं पर विवाद नहीं हुआ।  अंग्रेजों के समय इन्हें धर्म रूप देकर यहां का समाज विभाजित किया गया।  आज स्थिति यह है कि पूजा पद्धति को धर्म के खाने में रखकर उसके मानने वाले हिन्दूधर्म को चुनौती देते हैं। मूलतः जिसे हम दक्षिणएशिया समूह कह रहे हैं कि वह वास्तव में भारतवर्ष है।  इसे भारतीय उपमहाद्वीप भी कहा जाता है जिसका समाज धर्म के आधार पर विभाजित किया गया है। स्थिति यह है कि पाकिस्तानी इस क्षेत्र का नाम भारतीय उपमहाद्वीप कहने का भी विरोध किया जाता है।  ऐसे में अखंड भारत की कल्पना अच्छी लगती है पर इससे पहले तो अपने इन नये पड़ौसियों को भारतीय उपमहाद्वीप कहने के लिये प्रेरित किया जाये। एक बात याद रखें इन क्षेत्रों के लोग कथित भारतीय समाज के प्रति नकारात्मक भाव के कारण धर्म के जाल में फंसे। वह स्वयं को भारतीय कहलाने मेें ही संकोच करते हैं तो हिन्दू शब्द की संज्ञा तो स्वीकार हीं नहीं करेंगे।
अभी असहिष्णुता विवाद में कथित बुद्धिमानों का एक तर्क सुना था कि भारतीय समाज अभी तक सहिष्णुता के भाव सराबोर है जो अब कम हो रहा है।  तय बात है कि उनके दिमाग में अंग्रेजों की तय की गयी कागजी रेखा पर रह रहे समाज से ही था। अंग्रेजी शिक्षा के कारण उनका चिंत्तन संकीर्ण दायरों में सिमटा है। पाकिस्तान व बांग्लादेश उनकी दृष्टि से  भारतीय समाज का हिस्सा नहीं है जिनका निर्माण ही असहिष्णुता के आधार पर हुआ है। तय बात है कि जब हम अखंड भारत की कल्पना कागज पर उतारने की बात करते हैं तो पहले अपनी चिंत्तकों की सेना बढ़ानी होगी जो अभी नगण्य है।        
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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