इधर उधर की खूब खबरें पढ़ीं और सुनी। अंतर्जाल पर कथित रूप से चीनी मीडिया के वार्तालाप भी सुने। यूरोपीय यूनियन की चीन को चेतावनी भी सुनी। लब्बोलुआब यह कि चीन हाथी की तरह था जिसने 1962 से यह भ्रम फैला रखा था कि वही ताकतवर है। हमने 1962 के बारे में बहुत कुछ पढ़ा है जिसमें भारत के एक विशेषज्ञ का कहना था कि 1962 में भारत लड़ा ही नहीं था वरन् नेताओं ने हार मानी थी। फिर 1967 और 1986 में चीन की धुलाई की बात भी सामने आयी। अब भारत शेर की तरह पराक्रमी हो गया है। चीन की समस्या यह है कि वह अपने ही निर्मित सामानों पर निर्भर हैं जो कामचलाऊ तो हैं पर न टिकाऊ है न उनकी श्रेष्ठता प्रमाणित है। सबसे बड़ी बात वह रूस, अमेरिका फ्रांस की तरह हथियार निर्यातक देश बनना चाहता है-अभी पाकिस्तान और उत्तरकोरिया उसके ग्राहक हैं। चीनी मीडिया में वहीं के एक विशेषज्ञ ने माना कि मिसाइल तकनीकी की वजह से भारत उनके देश से कहीं आगे हैं। सीधी बात यह कि भारत चीन से ज्यादा ताकतवर है क्योंकि वह दूसरे देशों के उपग्रह भी भेज रहा है। भारत ने भले ही खिलौने बनाने में महारत नहीं हासिल किया पर अंतरिक्ष तकनीकी में चीन को पछाड़ दिया है।
चीन यह मान नहीं पा रहा कि उसका पड़ौसी देश भारत उससे ताकत में बराबरी करे-ऐसे में आगे निकलने की संभावना ने उसे डरा दिया है। दूसरी बात यह कि भारत के पास रूस व अमेरिका से मिली सामरिक सामग्री है जिसे प्रमाणिक माना जाता है। वैसे युद्ध में हार जीत अनिश्चित होती है पर चीन से भारत हारेगा यह अब संभावना नहीं है। नुक्सान की बात करें तो भारत एक बार झेल जायेगा पर चीन के कई टुकड़े हो जायेंगे। नुक्सान उठाकर भी भारत तिब्बत और पाक अधिकृत कश्मीर पर कब्जा कर लेगा तब चीन की स्थिति क्या होगी? दरअसल चीन लड़ना नहीं चाहता और भारत डरना नहीं चाहता। चीन कहीं से हथियार नहीं खरीदता इसलिये रूस भी उसे पसंद नहीं करता। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक हथियारों के सौदागर अपने धंधे के लिये दोनों का युद्ध करवाना चाहते है-हम इस पर यकीन करते हैं। अभी तक चीन स्वयं कमा रहा है पर रूस व अमेरिका का ग्राहक नहीं बन रहा है। ऐसे में पश्चिमी देश अब चीन को दबाव में डालने के लिये भारत का उपयोग भी कर सकते हैं।
बहरहाल चीनी नेताओं का संकट यह है कि कहां तो वह अमेरिका की टक्कर का होने का अहसास अपनी जनता को करा रहे थे और कहां भारत ने ही उनको चुनौती दे दी है। चीन में अब भारत की ताकत को लेकर मंथन चल रहा है। अभी तक 1962 की जीत का भ्रम लेकर जी रहे चीन के सामने जब भारत की ताकत का सही अनुमान आयेगा तब वह तय करेंगे कि लड़ें कि नहीं! बहरहाल भारतीय रणनीतिकारों की सादगी को वह कमजोरी समझ रहे थे पर अब उन्हें लगने लगा है कि वह गलती कर चुके हैं तो झैंप मिटाना चाहते हैं। वह रोज भारत को धमकी देता है और यहां के नेता मौन रहते हैं। सिक्किम की सीमा से बाहर कर भारतीय सेना ने चीन को उस नींद से जगा दिया है जिसमें वह शक्तिशाली होने का सपना देख रहा था। वह कश्मीर में पाकिस्तान का साथ देने की बात कर रहा है तो भारत भी तिब्बत की आजादी का समर्थन कर सकता है।
हमारा अनुमान है कि चीन की आंतरिक हालात खराब है। वह सेना की संख्या कम कर रहा है जिससे असंतोष फैल रहा है। उसने सोचा था कि जिस तरह भारत ने पाकिस्तान में सर्जीकल स्ट्राइक किया था ऐसे ही किसी कार्यवाही से सिक्किम में भारतीय सेना को भगाकर वह अपनी जनता में संतोष लायेगा पर उसे यह अंदाजा नहीं था कि भारत न केवल पलटकर जवाब देगा वरन् सीधे ही लड़ने की तैयारी भी करेगा। अब चीन को यह भी लगने लगा कि सिक्किम की सीमा से वह सेना हटाले तो भी भारत वहां से नहीं हटेगा। महत्वपूर्ण बात यह कि भारतीय रणनीतिकार भी अपने देश को उससे ज्यादा ताकतवर दिखने के प्रयास में हैं और चीन को यही बात डरा रही है। हमारा मानना है कि आबादी, सैन्य बल तथा सामरिक सामानों की ंसंख्या में चीन ज्यादा है पर क्या वह इतना ताकतवर है कि वह भारत को युद्ध में हरा दे। हाथी ताकतवर होता है पर जब शेर अपनी पर आता है तो उसे मार ही देता है।
वैश्विक प्रचार में चीन को सबसे बड़ा झटका जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने दिया है यह कि वहां की हिंसा में चीन भी शामिल है। आतंकवाद के सहायक होने का यह मामूली लगने वाला आरोप चीन को भारी संकट देने वाला है। भारत अब इसका उपयोग वैश्विम मंच पर करेगा। आतंकवाद का सहायक होने की बात अगर वैश्विक पटल पर आयी तो न केवल चीन बल्कि उसके विदेशों में स्थित नागरिकों को भी मुश्किल हो जायेगी। अब चीनी रणनीतिकारों को प्रयास यही करना चाहिये कि किसी भी तरह वह इस आरोप से छुटकारा पायें क्योंकि युद्ध हो या नहीं उन्हें अब आतंकवाद के नये सहायक की युद्ध से ज्यादा बर्बादी देने वाली साबित हो सकती है।
No comments:
Post a Comment