कल एबीपी चैनल ने राजमार्गों पर तीन प्रदेशों के-मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान-राजमागों पर पुलिस प्रशासन के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया। वैसे इसे पर्दाफाश कहना गलत है क्योंकि यह एक आम जानकारी है कि राजमार्गों पर राजकीय कर्मचारी राजस्व नहीं हफ्ता वसूलने का काम करते हैं। हमारे जैसे पुराने भक्तों के सामने नये भक्त यह कहकर बच नहीं सकते कि यह तो उनके दल ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी होता है। हमें मतलब है तो उस दल से है जिसे कभी हमने भावनात्मक नहीं वरन् आत्मिक समर्थन दिया था-यह भी याद रखना कि हम जैसे एक नहीं करोड़ों भक्त हैं जो केवल उनके इष्ट के नाम की वजह से वापस लौटे थे। राज्यों में 14 वर्ष बाद भी इतना भ्रष्टाचार उस दल के राज्य में हो तो हम जैसे भक्त यह कहने में नहीं चूकेंगे कि हमारे कथित हिन्दूत्ववादी शिखर पुरुष राज्यप्रबंध में नाकाम सिद्ध हुए हैं। वह भी धर्मनिरपेक्षवादियों की तरह यथास्थितिवादी हैं। उनकी आदर्श छवि एक ढोंग है। उन्होंने सत्ता सुंदरी के महल के दरवाजे खोलने के लिये हमारे जैसे भक्तों के धार्मिक भाव का चाबी की तरह उपयोग किया है।
तमिलनाडू की एक सजायाफ्ता महिला नेता को बैंगलौर की जेल में विशेष सुविधायें लेने के लिये दो करोड़ खर्च करने पड़े-यह भ्रष्टाचार का मामला है जिस पर भक्त कुछ नहीं बोले हैं-वजह साफ है कि इनको अब नये राजनीतिक समीकरणों की तलाश है। इनको पता है कि 2019 अब 2014 जैसा नहीं रहने वाला है। अपने ही आर्थिक व जातीय रूप से मध्यमवर्गीय मतदाताओं में व्याप्त निराशा को दूर करने की बजाय यह नये वर्ग के मतदाता वह भी नये प्रदेशों में ढूंढ रहे हैं। कालाधान वापस लाने, भ्रष्टाचार हटाने व महंगाई घटाने में नाकामी की चर्चा से बचने के लिये नित नये विवादास्पद बयान देकर प्रचार माध्यमों को व्यस्त रखा जा रहा है। 21 महीने इस तरह निकल जायेंगे पर जब मतदान का समय आयेगा तब प्रतिबद्ध मतदाता निराशा में इनके मत कैसे देगा यह इसकी चिंता करें। ऐसे करेंगे लगता नहीं है।
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