हमारे देश में इस समय सोशल मीडिया को लेकर अनेक विवाद उठते हैं और स्थापित विद्वानों को लगता है कि वह केवल अज्ञानी लोग सक्रिय हैं। अक्सर कुछ लोग फेसबुक पर सक्रिय रहने वालों पर यह आरोप लगाते है कि वह किसी भी बड़े या खास आदमी को भी कुछ नहीं समझते! उन्हें लगता है कि सब फेसबुक पर सक्रिय लोग अहंकारी हैं।
हम इससे उलट अपनी राय रखते हैं। दरअसल पहले टीवी चैनलों और अब सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने आम जनमानस को सबकी औकात के दर्शन करा दिये हैं और उन्हें यह पता लग गया है कि कथित बड़े और खास पहचान रखने वाले फर्जी हैं-वह बड़े पदों पर विराजे हैं, उनके पास ढेर सारा पैसा है और अभिनय से भारी प्रतिष्ठा भी है पर वह समाज के किसी काम के नहीं क्योंकि वह भी आमआदमी की तरह अपने परिवार हित तक ही सीमित हैं। यही हाल लेखकों और पत्रकारों का भी हैं। हम पिछले दस साल से अंतर्जाल पर सक्रिय हैं पर लगता है कि कई कथित बड़े व खास विद्वान लोग सोशल मीडिया से चित्र और विषय चुराकर अपनी मौलिकता प्रदर्शित कर रहे हैं।
आम जनमानस को आभास हो गया है कि जो लोग कला, अर्थ, साहित्य, राजनीति तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में शिखर पर है वह योग्यता से कम प्रचार से ज्यादा बड़े वह खास बने हैं। यही कारण है कि फेसबुक व ट्विटर पर आम प्रयोक्ता आक्रामक हो रहे हैं। उन्हें हम जैसा व्यक्ति तो अहंकारी नहीं मान सकता। इसका कारण यह है कि संगठित क्षेत्र के बुद्धिजीवियों, कलाकारों, तथा पत्रकारों ने सदैव यह भ्रम माना है कि उनकी लिखा या बोला ही ब्रह्म वाक्य है। इतना ही नहीं उन्होंने असंगठित क्षेत्र के विद्वानों को कभी अपने आगे गिना ही नहीं। ऐसे में अब उन्हें अपनी उपेक्षा देखकर जलन होती है और वह सोशल मीडिया से चिढ़ने लगे हैं।
--
No comments:
Post a Comment