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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
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Friday, May 5, 2017

कंपनी दैत्यों के लिये पूरा संसार एक क्लब की तरह है-दो हिन्दी व्यंग्य रचनायें (A Club made all World for Company Devil- Two HindiSatireArticle)

कभी कभी पनामालीक्स भी पढ़ लिया करो-हिन्दी व्यंग्य
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                                                 भाई लोग समझ नहीं रहे। लंबे चौड़े संदेश पेले जा रहे हैं। एक दूसरे पर प्रतिक्रियावादी होने का आरोप लगाते हैं पर हमारी नज़र में दोनो इसी रूप का बोझा सिर पर ढो रहे हैं।  यह पाकिस्तान, चीन और रूस का नाम ले लेकर लिखे जा रहे हैं। दूसरी तरफ हिन्दूत्व का नारा लग रहा है।
                                    अब यारो कुछ म्हारी भी बात समझो। पाकिस्तान क्या है? अंग्र्रेजों ने भारत का बंटवारा नहीं किया इस देश के कुछ विशिष्ट लोगों को लगने लगा था कि एक तो पूरा देश संभाल नहीं पायेंगे दूसरा यह कि लोकतंत्र के चलते एक दैत्य चाहिये ताकि जनता को उसका भय दिखा सकें। उधर हिन्दूओं का भय इधर अरेबिक संस्कृति का भय। दोनो जगह भय बड़ी आसानी से बिक रहा है। आक्रमण प्रत्याक्रमण का दौर चलता रहेगा। टीवी चैनलों पर बहसें होंगी तो पूंजीपतियों का विज्ञापन चलता रहेगा। उत्पाद बिकेंगे। वह यहां भी खिलायेंगे तो वहां भी खिलायेंगे।  हम नक्शे में बैठे राष्ट्रों के नाम देखते हैं और यह पूंजीपति उन्हें उन्हें निजी क्लब की तरह देखते हैं। दुनियां उनकी मुट्ठी में हैं-कम से कम कार्ल मार्क्स के चेलों को तो यह समझ लेना चाहिये। यह लोग  मिनटों में चाहे जहां से वहां पहुंच जायें। बड़े बड़े राष्ट्राध्यक्ष उनके मित्र हैं। कभी कभी पनामलीक्स के कागजात भी देख लिया करो। शरीफ, पुतिन और शीजिनपिंग वहां अपना खाता रखते हैं। क्या आप सोच सकते हैं कि अपने देश से संपत्ति चुराकर विदेश भेजने वाले लोग किसी बड़े युद्ध का दावतनामा स्वीकार करेंगे। नाम तो भारत के लोगों के भी हैं-पर भारतीय मीडिया उन पर चुप है। तय बात है कि यहां के सेठ लोग कभी अपने देश के युद्ध का प्रयोजन नहीं करेंगे क्योंकि इससे देश मे अफरातफरी मचेगी। ऐसे में उनका पूरा बाज़ार चौपट हो जायेगा। 
                       सो भारत पाक के बीच युद्ध जैसी बात तो भूल जाईये। तीसरे युद्ध की आहट टीवी चैनलों पर देखते रहिये। यह कभी होगा नहीं अलबत्ता टीवी चैनलों पर बहस में समाचार चलाने के लिये विज्ञापन का समय अच्छा निकलता रहेगा। 
कंपनी दैत्य तो इधर भी खिलाता है उधर भी खिलाता है-लघु हिन्दी व्यंग्य
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                                 हमारे घर या कहें पूरी कालौनी का डिस्क कनेक्शन मृतप्रायः है पर लगता नहीं कि किसी को इसकी परवाह है। हमें ही नहीं है। हम डिस्क पर समाचार चैनल देखते रहे हैं-अब उनसे भी उकता गये थे। वही क्रिकेट, फिल्म, राजनीति और पाकिस्तान के विषय। फिल्म और राजनीति में पुराने चेहरे ही देखदेखकर बोर हो गये। एक समय था जब केवल जीटीवी का मनोरंजन चैनल ही मिलता था। तब एक आध घंटा न मिले तो साइकिल पर एक किलोमीटर दूर जाकर ऑपरेटर का घर खटखटाते थे। अब इसकी परवाह नहीं है। फिलहाल तो अपना ब्लॉग और अपना फेसबुक है सोच चिंत्तन का आंनद उठा ही लेते हैं।
                 इधर अब फेसबुक और ब्लॉग पर लिखते हुए बीच बीच में समाचार चैनल देखते हैं।  वही पुराने विषय। वही पाकिस्तान, वही राजनीतिक चेहरे, वही विकास के वादे, और वही बहस जिसमें पहले के हमलावार वक्ता अब रक्षा कवच पहनकर आते है और उनके सामने  रक्षाकवच गंवा चुके हमलावर वक्ता होते है।  ऐसे में हम भी यह सोचकर आलसी होते जा रहे हैं कि जब ऑपरेटर शुरु करेगा तब देखेंगे। हमने प्रयास यह किया कि शायद दूरदर्शन चैनल पहले की तरह मिल जाये पर दिखता नहीं। यही डिजिटल इंडिया है जिसमें अब कोई चीज बिना दाम के नहीं मिलती। हम कंपनी दैत्य का जानते हैं। वह अब अंतर्राष्ट्रीय रूप धारण कर चुका है। उसके लिये पूरी दुनियां एक क्लब है।
        एक पान मसाले का विज्ञापन आता था जिसमें अभिनेता कहता है कि ‘हम इधर भी खिलाते हैं, उधर भी खिलाते हैं।’
         इसी कंपनी दैत्य को टीवी चैनल इधर भी चलाने हैं उधर भी चलाने हैं।  आप कभी भक्ति रस में डूबिये या श्रृंगार रस चूसिये या फिर वीर रस में उड़िये। यह तय करने का आपका हक है पर विषय या संदर्भ आपको इसी कंपनी दैत्य से तय करने पर मिलेंगे। हमने कभी उसके विषयों का रस नहीं लिया वरन् अपने ही चिंत्तन रस में आनंद लेते हैं। 

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