हमारे दो फेसबुक खाते हैं। पहले सार्वजनिक फेसबुक के एक या दो वर्ष दूसरा केवल निजी संपर्क वाले लोगों के लिये ही बिनाया था। देखते देखते वहां मित्रों का झुंड बन गया। हम दस वर्ष से अंतर्जाल पर सक्रिय है। आरंमिक दौर में अपने जैसे ही फुर्सतिया लेखकों ने हमें प्रोत्साहित किया पर फेसबुक के बाद वह छूट गये। इनमें से कुछ आज भी साथी हैं। तब हिन्दी भाषा इतनी नहीं लिखी और पढ़ी जाती थी जितनी अब। अंतर्जाल पर निजी मित्र तो कोई था ही नहीं। उस समय जब हम लोगों को बताते थे कि हम अंतर्जाल पर लिखते हैं तो मासूमियत से देखते थे। अब निजी संपर्क वाला ऐसा कौनसा नाम है जिसे ढूंढने निकले और वह मिले नहीं। कईयों को हम देखते हैं पर उन्हें अपना फेसबुक दिखाने नहीं जाते। भूले बिसरे लोगों को ढूंढ निकाला। उम्र की कोई सीमा नहीं देखी। सतर से अस्सी वर्ष के लोगों को फेसबुक से ढूंढ निकाला। हम सतत फेसबुक नहीं बैठते-समय नहीं ढूंढते, मिलता है तो बैठ जाते हैं।
हमारी राय में फेसबुक पर मनोविज्ञान का अध्ययन सहजता से किया जा सकता है। दोनों फेसबुक पर एक मजेदार बात हमने देखी है। निजी संपर्क वालों में एक पहचान और सार्वजनिक संपर्क वाले पर दो मित्र महिलाओं की सौम्य, सुंदर तथा आकर्षक तस्वीरों डालते हैं। दोनों की उम्र समान होगी पर जातीय पहचान अलग है। इनकी तस्वीरें एक ही दिन में एक से दस तक हो सकती हैं। तय बात है कि यह लोग स्वयं उनका संग्रह नहीं करते बल्कि यहीं अंतर्जाल से निकालते होंगे। जब हम अपनी घरेलू स्तंभ देखते हैं तो एक दो पोस्ट के बाद इनकी तस्वीरें आती रहती हैं। अगर कोई इनकी उम्र देखे तो शायद व्यंग्यात्मक टिप्पणी भी कर सकता है पर हम जैसे सकारात्मक विचार वाले तो इनके प्रयासों की सराहना ही करेगा। यह हमें श्रृगार रस का असमय सेवन कराते हैं जो बोझिल वातावरण को भी रसदार बना देता है। बस एक ही विचार आता है यार यह इतनी सारी तस्वीरों लाते कहां से हैं? हम पूछते नहीं क्योंकि लगता है कि उनक अंतर्जाल साधना बाधित न हो। हम शब्दप्रेमी हैं और पढ़ने लिखने में ही हमारी रुचि है फिर भी इतना जरूर कहना चाहेंगे कि ऐसे माननीय लोग सदाबहार बने रहें।
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