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Sunday, February 14, 2016

ज्ञान से प्रतिपक्षी को परास्त करें-हिन्दी चिंत्तन लेख (Gyan se praipakshi ko parast kar-Hindi Thought article)


                        सामाजिक जनंसपर्क ने जहां विश्व में धाक जमाई हैं वहीं अभद्र भाषा के शब्दों के प्रयोग ने चिंता का वातावरण भी बनाया है। अनेक बार ऐसा होता है कि हम जैसे लेखक किसी फेसबुक, ट्विटर वह ब्लॉग पर प्रदर्शित सामग्री पर असहमति जताने की चाहत इसलिये भी छोड़ देते हैं कि वहां बीभत्स शब्द पहले ही दर्ज होते हैं। यह डर लगता है कि कहीं हम आक्रामक विरोधियों के साथी न समझ लिये जायें। शुद्ध देशी भाषा की गालियां देखकर मन खराब हो जाता है। दुनियां में संसार में समाज भिन्न व्यक्तियों, विचारों व विषयों के समूह से ही बनता है।  भिन्नता से भरा है इसलिये तो समाज कहलाता है। एकरूपता होने पर तो एक ही इकाई ही कहलाता न! ऐसे में अपने से प्रथक विचार वाले व्यक्ति की उपस्थिति सहजता से स्वीकार करना चाहिये न कि उस पर आक्षेप लगाकर अपने अंदर कुंठा लाना चाहिये।
                        सामवेद में कहा गया है कि ऋतस्य जिव्हा पवते मधु।सच्चे मनुष्य की वाणी से मधु टपकता है।
                        जब हम किसी विचार से असहमत हों तो उस पर प्रतिविचार अभिव्यक्त कर सकते हैं-यही ज्ञानी होने का प्रमाण भी होता है। तर्क में भार बढ़ाने के लिये अभद्र शब्द का पत्थर रखना आवश्यक नहीं-अगर रखते हैं तो यही माना जायेगा कि वक्ता या लेखक में अपने ही शब्दों के प्रति विश्वास नहीं है।
                        अथर्ववेद में कहा गया है कि क्षिणामि ब्रह्णामित्रायुन्नयामि स्वानहम्।ज्ञान से विरोधियों का क्षरण कर अपने को आगे बढ़ाये।
                        हमारे देश में विद्वानों के बीच विचाराधाराओं का द्वंद्व सदैव रहा है। भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा के वाहक होने के नाते हमारा अन्य  विचाराधारा के विद्वानों से मतभेद रहा है। उनसे बहसें भी होती रहीं है पर हमने हमेशा अपनी सहज प्रवृत्ति से उनके सामने अपने तर्क रखे हैं। इधर अंतर्जाल पर प्रगति व जनवादी विद्वान भी अपनी पूरी उसी पूरी शक्ति के साथ सक्रिय है।  उनका राष्ट्रवादी विचाराधारा के विद्वानों से पंरपरागत प्रचार माध्यमों में सदैव वाद विवाद रहा है पर इधर अंतर्जाल पर भयानक वाक्युद्ध में बदल गया है। चूंकि राष्ट्रवादी विचाराधारा के लेखक हमारा अध्यात्मिक लेखन के कारण हमारा सम्मान करते हैं इसलिये उनसे यह अपेक्षा रहती है कि वह सभी का सम्मान करें। खासतौर से जब राष्ट्रवादी भारत के प्राचीन दर्शन को जब अपना प्रिय विषय मानते हैं तब यह आशा तो की ही जाती है कि वह ज्ञान से प्रतिपक्षियों को परास्त करें। यही हमारे वेद  भी कहते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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