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Tuesday, May 28, 2013

संत नागरीदास की दोहावली-अधिक चतुर आदमी की बुद्धि दुख की खान (sant nagridas ki dohawali-adhik chatur aadmi ki buddhi dukh ki khan hotee hai)

     अध्ययन की दृष्टि से अध्यात्म और संासरिक विषय प्रथक प्रथक हैं।  अध्यात्म ज्ञान से संपन्न मनुष्य सहजता से आचरण करते हैं। यह उनकी स्वाभाविक चतुराई है।  जब किसी के पास अध्यात्म ज्ञान होता है उसका दृष्टिकोण सांसरिक विषयों के प्रति सीमित होता है। वह उन विषयों में रत होकर कर्म तो करते हैं पर उसमें अपने हृदय को लिप्त नहीं करते।  निष्काम करने के कारण उनकी बुद्धि में क्लेश का भाव नहीं होता जिससे वह कभी स्वयं को संकट में नहीं फंसने देते।   इसके विपरीत स्वयं को सांसरिक विषयों में चतुर समझने वाले लोग न केवल कामना के साथ कर्म करते हैं बल्कि उसका प्रचार अन्य लोगों को सामने करते हुए स्वयं के लिये चतुर होने को प्रमाण पत्र भी जुटाते हैं। दरअसल ऐसे आत्ममुग्ध लोगों की बुद्धि उनके संकट का कारण ही होती हैं। संसार के एक विषय से मुक्ति पाते हैं तो दूसरा उनके सामने आता है। दूसरे के बाद तीसरा आता है। यह क्रम अनवरत चलता है और केवल सांसरिक विषयों में लिप्त लोग कभी अपने मानसिक तनाव से मुक्ति नहीं पाते।  
संत नागरी दास कहते हैं कि
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अधिक सयानय है जहां, सोई बुधि दुख खानि।
सर्वोपरि आनंदमय, प्रेम बाय चौरानि।
            सामान्य हिन्दी भाषा में भावार्थ-जो मनुष्य अधिक चुतराई दिखाता है उसकी बुद्धि दुख की खान होती है। इसके विपरीत जो प्रेम का मार्ग लेता है वह सर्वोच्च आनंद पाता है।
अधिक भये तो कहा भयो, बुद्धिहीन दुख रास।
साहिब बिग नर बहुत ज्यौं, कीरे दीपक पास।।
            सामान्य हिन्दी भाषा में भावार्थ-अधिक संख्या होने पर भी कुछ नहीं होता यदि किसी मनुष्य समूह में बुद्धि का अभाव है तो उससे कोई आशा नहीं करना चाहिये। परमात्मा के पास अनेक नर है जैसे दीपक के पास अनेक कीड़े होते हैं।
       अनेक बार हम देखते हैं कि अपराधियों के नाम के साथ भी चतुर या बुद्धिमान होने की संज्ञायें सुशोभित की जाती हैं।  उनकी सफलताओं का बखान किया जाता है पर सच यह है कि यही अपराधी अपने साथ प्रतिशोध लेने की आशंकाओं अथवा कानून के  शिकंजे में फंसने से डरे रहते हैं।  देखा यह भी गया है कि अनेक मानव समूह अपने संख्याबाल पर इतराते हैं क्योंकि उनको लगता है कि इनके पास ढेर सारा बाहुबल है।  समय पड़ने पर जब उनके पास संकट आता है तो वह मिट भी जाते हैं।  कहने का अभिप्राय यह है कि अपराध, अत्याचार या किसी पर आक्रमण करने को बुद्धिमानी नहीं कहा जाता क्योंकि उसमें प्रतिरोध के खतरे भी होते हैं। बुद्धिमानी तो इसमें है कि जीवन में ऐसा मार्ग चुना जो कंटक रहित होने के साथ ही सहज भी हो।

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

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