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Tuesday, August 9, 2016

खेलने से ज्यादा खिलाड़ियों का मजाक उड़ाना ज्यादा आसान-ओलंपिक पर हिन्दी लेख(A Hindi Article and editorial On RioOlympic2016 Rio2016)

                             ऑलंपिक में भारत एक भी पदक नहीं जीते तो हमें शर्म नहीं आयेगी? एक कथित लेखिका ने वहां गये भारतीय खिलाड़ियों का मजाक उड़ाते हुए लिखा है कि ‘सेल्फी लो और वापस आओ। यह पैसे की बर्बादी हैै।’
                     जिन लोगों का खेल से ज्यादा बकवास पर अधिक विश्वास है या फिल्म और क्रिकेट में अपने शब्द खर्च किये हैं ऐसे लेखक विचारक अंतर्राष्ट्रीय खेल जगत और भारत की स्थिति का आंकलन किये बिना बकवास करते हैं। एक समय हॉकी में भारत और पाकिस्तान का दबदबा था-बुजुर्ग लेखिका को शायद पता नहीं होगा उस समय हॉकी मैदान पर खेली जाती थी न कि टर्फ पर-इस कारण दोनों देशों में हॉकी का पता हुआ।  टर्फ का विकास ही हॉकी में एशियाई वर्चस्व समाप्त करने के लिये किया गया। आज पाकिस्तान की टीम ऑलंपिक में नहीं है और हमारी भी अधिक संघर्ष नहीं कर पायेगी पर इसमें शर्मिंदा होने की बात नहीं क्योंकि हमारे देश के लोग धरती पर ही खेलते हैं। यहां नकली मैदान सहज उपलब्ध नहीं है। स्थिति यह हो गयी है कि पहले उबड़ खाबड़ मैदान पर हाकी खेलते बच्चे मिल जाते थे पर आज उसकी जगह क्रिकेट खेली जाती है।  क्रिकेट भी अब इसलिये बचा  कृत्रिम मैदान तैयार करने के लिये ब्रिटेन इसलिये तैयार नहीं हैं क्योंकि वह उसका जनक है और परंपरा तोड़ना वहां के लोग सही नहीं समझते।  हम कभी ऐसी जिद्द नहीं पालते। यह क्रिकेट  प्राकृतिक मैदान  जो चल रहा है वह ब्रिटेन की वजह से है। अगर इसमें भी बदलाव हो जाता तो भारत वहां से भी लापता हो जाता। उसी तरह कुश्ती तथा ऊंची कूद मेें भी गद्दों का उपयोग होने लगा है जबकि हमारे देश के बालक धरती या रेत से शुरुआत करते हैं। जब रेत पर कुश्ती होती थी तब कुश्ती में हमारे पहलवानों का भी नाम होता था। इतना ही नहीं खेलों के नियम भी पश्चिमी तथा विकसित देशों की सुविधा से बनते बिगड़ते हैं। जिसे समझने में भारतीय खिलाड़ी देरी करते हैं। जबतक  समझ पायें तब तक नियम बदल दिये जाते हैं।  हमने बचपन में रेत पर अभ्यास किये हैं। कबड्डी क्रिकेट और हाकी प्राकृतिक मैदान पर ही खेला। इसलिये पता है कि खेल में दमखम लगता है। यह अलग बात है कि लेखक हो गये पर इतना पता है कि खेलने से ज्यादा खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर बकवास करना ज्यादा आसान है।
                        हमारे देश के खिलाड़ी वहां गये हैं सभी प्रशंसा के पात्र हैं। पैसे की बर्बादी जैसा विषय अगर बहस पटल पर लाया जाये तो बहुत सारे संदर्भ मिल जायेंगे। जो पैसा उन पर खर्च हुआ है वह सामान्य जनमानस का ही है जो जानता है कि विदेशी धरती, मैदान तथा नियम भारतीय खिलाड़ियों के लिये हमेशा अनुकूल नहीं होते। एक खेलप्रेमी होने पर भी हमें भारत की हार से निराशा नहीं होती क्योंकि पता है ऑलंपिक का आयोजन ही  पश्चिमी व विकसित देशों को आत्ममुग्धता की स्थिति प्रदान करने के लिये किया जाता है। ऐसे में भारतीय खिलाड़ी संघर्ष करते हुए वहां पहुंचते हैं-यही पर्याप्त है।
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