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Friday, July 24, 2015

समाज के संकट पर शोध जरूरी-हिन्दी चिंत्तन लेख(samaj ke sankar par shodh jaroori-hindi thought article)

                                                आज के समाज का संकट के सामने क्यों खड़ा है इस पर कोई शोध नहीं करता। हर कोई अपना बखान कर रहा है पर सार्थक चर्चा नहीं हो्र पाती। बहुत समय पहले एक मित्र ने कहा था कि इस देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि भले काम का ठेका भी ऐसे लोग ले रहे हैं जो कभी यह सोचते भी नहीं कि किसी का भला करना चाहिये।
                              यह हमें बात इतनी सही लगी कि हमारे लेखन का अभिन्न हिस्सा बन गयी।  वह मित्र हमसे उम्र में करीब पंद्रह वर्ष बड़ा था पर लेखक होने के नाते अक्सर चर्चा होती थी। उसने ही यह भी समझाया था कि हमें किसी भी विषय पर केवल प्रचार माध्यमों में आधिकारिक रूप से प्रकाशित हो रही खबरों को जस की तरह नहीं मान लेना चाहिये।  दूर की छोड़ो  अपने ही इर्दगिर्द अनेक ऐसे आपराधिक घटनायें  देख सकते हैं जिनके बारे में हमारी जानकारी इन प्रचार माध्यमों से दी गयी आधिकारिक सूचना से अलग होती है। हमारे एक गुरु जो पत्रकार थे उन्होंने भी करीब करीब यही बात कही थी।  इन दोनों महानुभावों की वजह से हम किसी भी घटना पर वैसा नहीं सोचते जैसा कि अन्य करते हैं।
                              हम अब तो अपनी सोच का विस्तार यहां तक देख रहे हैं कि निहायत पाखंडी लोग भलाई के व्यापार में लगे हुए है और विज्ञापन तथा प्रचार के सहारे सामान्य समाज में अपनी छवि धवल बनाते हैं।  उससे भी बड़ी समस्या यह कि भले लोग भय से इन्हीं कथित धवल छवि वालों की अदाओं पर तालियां बजाते हैं।  वह मौन भी नहीं रहते इस आशंका से कहीं इन दुष्टों की पता नहीं कब जरूरत पड़ जाये।  हमारे यहां समाज का वातावरण ही ऐसा हो गया है कि लोग भले लोगों की संगत में समय खराब करने की बजाय दुष्टों को दबंग मानकर उनके प्रति सद्भाव दिखाते हैं।
                              कहा जाता है कि हमारे समाज का संकट यह नहीं कि दुष्ट सक्रिय हैं वरन् यह भी है कि सज्जन लोग निष्क्रिय हैं।  वैसे तो यह भी देखा  जाता है कि सज्जन लोगों का संगठन सहजता से नहीं बनता जबकि दुष्ट लोग स्वार्थ के आधार पर जल्दी संगठन बना लेेते हैं। संभवतः यह मानवीय स्वभाव है कि स्वार्थ से लोग एक दूसरे से सहजता से जुड़ जाते हैं और परमार्थ के समय सभी अकेले होते हैं।  हालांकि आजकल भौतिकता के प्रभाव के कारण लोगो की चिंत्तन क्षमता केवल संपन्न और प्रतिष्ठित लोगों की तरफ केंद्रित हो गयी है। कोई किसी क चरित्र पर विचार नहीं करता और यही समाज के संकट का कारण है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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