पिछले 12 वर्ष से कर्मचारियों का वेतन बैंकों में जा रहा है। कोई भी एक दिन में पूरा का पूरा निकलवाने नहीं जाता। वेतन तथा पैंशनभोगियों में कई तो ऐसे हैं जो छह छह महीने पासबुक अपडेट कराने भी बैंक नहंी जाते। एटीएम से पैसे निकलवाते रहते हैं।
कहा जाता है कि
परायी शादी में अब्दुल्ला दीवाना
कुछ ऐसा ही हाल उन लोगों को हैं जिन्होंने नौकरी नहीं की है या की है तो अनभूतियां भूल गये हैं। वह नोटबंदी पर वेतनभोगियों की समस्या पर प्रलाप कर रहे हैं। कर्मचारियों तथा पैंशनरों के खातों मेें रकम जमा हो गयी है और वह पूरा महीना अपने आवश्यकता के अनुसार निकालते रहेंगे। उनके दर्द का वर्णन करने वाले कम से कम दो दशक पहले की कल्पना में जी रहे हैं। आजकल शायद ही कोई कर्मचारी ऐसा होगा जो एक तारीख के इंतजार में विरहगीत गाता हो क्योंकि वेतन की राशि उसके हाथ मेें सीधे नहंी आती। अनेक कर्मचारी तो हास्य भाव से कहते भी हैं कि ‘अब तो वेतन पाने का मजा ही खत्म हो गया है। सीधे बैंक जाने के कारण रुपयों को एक साथ छूने का आंनद खत्म हो गया है।
आज पहली पहली तारीख वाला अब कोई नहीं गुनगुनाता। इसलिये नोटबंदी के विरोध कोई नये तर्क खोजकर लायें तो अच्छा है वरना हमें ऐसा लगता है कि अनेक लोगों बीस साल पीछे सोचते हैं।
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अर्थक्रांति वालों की बात मानकर आयकर खत्म हुआ तो भ्रष्टाचारी रोने लगेंगे
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अभी हमने पढ़ा कि अर्थक्रांति नामक एक संस्था सीधे प्रधानमंत्री को आयकर समाप्त करने का सुझाव दिया है। अगर यह मान लिया गया तो तय समझिये कि उसका विरोध नोटबंदी से ज्यादा होगा क्योंकि यह भ्रष्टाचार पर सीधे प्रहार होगा। इतना ही नहीं सामान्य लोगों को सरकार के भय से मुक्त कर देगा और यही भ्रष्टाचार नहीं चाहते। दरअसल समाज में जो भ्रष्टाचार है वह सरकार के इसी आयकर की वजह से है जो अंततः भ्रष्टाचार में बदल जाता है। धनपति इससे सरकारी दलालों के भय से मुक्त हो जायेगा तब उससे कमीशन वसूलना कठिना होगा। हम जैसे लोगों की दिलचस्पी धनपतियों के धन में नहीं वरन् उन लोगों में है जो राजपदों का दुरुपयोग करते हैं। आयकर खत्म हो जायेगा पर उसकी जगह जो दूसरा कर लगेगा वह कष्टकारक नहीं होगा जिसे लोग आसानी से भरकर चैन की सांस ले सकेंगे। यही तो भ्रष्ट राजपदधारी नहीं चाहते हैं।
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