समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
-------------------------


Saturday, June 13, 2009

कविवर रहीम संदेश: मनुष्य शरीर हर तरह से समर्थ होता है (rahim ke dohe- body of men is powerful)

जसी परै सो सहि रहै, कहि रहीम यह देह
धरती पर ही परत है, शीत घाम और मेह

कविवर रहीम कहते हैं कि इस मानव काया पर जैसी परिस्थिति आती है वैसा ही वह सहन भी करती है। इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा ऋतु आती है और वह सहन करती है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-पश्चिमी चिकित्सा विशेषज्ञों तमाम तरह के शोधों के बाद यह कह पाये कि हमारी देह बहुत लोचदार है उसमें हालतों से निपटने की बहुत क्षमता है। इसके लिये पता नहीं कितने मेंढकों और चूहों को काटा होगा-फिर इस निष्कर्ष पर पहुंचे । हमारे मनीषियों ने अपनी योग साधना और भक्ति से अर्जित ज्ञान से बहुत पहले यह जान लिया कि इस देह में बहुत शक्ति है और वह परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढाल लेती है। ज्ञान या तो योग साधना से प्राप्त होता है या भक्ति से। रहीम तो भक्ति के शिखर पुरुष थे और अपनी देह पर कतई ध्यान नहीं देते थे पर फिर भी उनको इस मनुष्य देह के बारे में यह ज्ञान हो गया पर आजकल अगर आप किसी सत्संग में जाकर बैठें तो लोग अपनी दैहिक तकलीफों की चर्चा करते हैं, और वहां ज्ञान कम आत्मप्रवंचना अधिक करते हैं। कोई कहेगा ‘मुझे मधुमेह हो गया है’ तो कोई कहेगा कि मुझे ‘उच्च रक्तचाप’ है। जिन संत लोगों का काम केवल अध्यात्मिक प्रवचन करना है वह उनकी चिकित्सा का ठेका भी लेते हैं। यह अज्ञान और भ्रम की चरम परकाष्ठा है।

मैने अपने संक्षिप्त योग साधना के अनुभव से यह सीखा है कि देह में भारी शक्ति होती है। मुझे योगसाधना का अधिक ज्ञान नहीं है पर उसमें मुझे अपने शरीर के सारे विकार दिखाई देते हैं तब जो लोग बहुत अधिक करते हैं उनको तो कितना अधिक ज्ञान होगा। पहले तो मैं दो घंटे योगसाधना करता था पर थोड़ा स्वस्थ होने और ब्लाग लिखने के बाद कुछ कम करता हूं (वह भी एक घंटे की होती है)तो भी सप्ताह में कम से कम दो बार तो पूरा करता हीं हूं। पहले मुझे अपना शरीर ऐसा लगता था कि मैं उसे ढो रहा हूं पर अब ऐसा लगता है कि हम दोनों साथ चलते हैं। मेरे जीवन का आत्मविश्वास इसी देह के लड़खड़ाने के कारण टूटा था आज मुझे आत्मविश्वास लगता है। आखिर ऐसा क्या हो गया?

इस देह को लेकर हम बहुत चिंतित रहते हैं। गर्मी, सर्दी और वर्षा से इसके त्रस्त होने की हम व्यर्थ ही आशंका करते हैं। सच तो यह है कि यह आशंकाएं ही फिर वैसी ही बीमारियां लातीं हैं। हम अपनी इस देह के बारे में यह मानकर चलें यह हम नहीं है बल्कि आत्मा है तो ही इसे समझ पायेंगे। इसलिये दैहिक तकलीफों की न तो चिंता करें और न ही लोगों से चर्चा करें। ऐसा नहीं है कि योगसाधना करने से आदमी कभी बीमार नहीं होता पर वह अपने आसनों से या घरेलू चिकित्सा से उसका हल कर लेता है। यह बात मैने अपने अनुभव से सीखी है और वही बता रहा हूं। योगसाधना कोई किसी कंपनी का प्राडक्ट नहीं है जो मैं बेच रहा हूं बल्कि अपना सत्य रहीम के दोहे के बहाने आपको बता रहा हूं।
-------------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। मेरे अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.अनंत शब्द योग
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

No comments:

Post a Comment

अध्यात्मिक पत्रिकाएं