आज फेसबुक पर एक पुरानी ब्लॉगर का लेख पढ़ा। उनकी राय में सुख कभी बटोरा नहीं जा सकता। उसे पाने के लिये कसरत करनी पड़ती है।
हम पिछले 12 वर्ष से ब्लॉग लिखते हैं। वह ब्लॉगरा शुरुआती दिनों में हमे हिन्दी में लिखने के लिये अदृश्य रूप से प्रेरित करती थीं। अंतर्जाल के इस प्रारंभिक दौर के साथियों के नाम हमें आजतक याद हैं। उस समय इंटरनेट जनता में इतना प्रचलित नहीं था। उस पर हिन्दी तो गिने चुने लोग ही लिखने वाले थे। ट्विटर के दौर में ब्लॉगर चलते रहे पर फेसबुक के उदय ने ब्लॉग की दुनियां सिमटा दी।
बहरहाल वह ब्लॉगरा प्रगतिशील या वामपंथी विचारधारा की हैं। हम भारतीय अध्यात्मिक धारा के हैं। हमें इस विचाराधारा के लोगों को पढ़ने में बड़ा मजा आता है क्योंकि यह अध्यात्मिक ज्ञान की बजाय सांसरिक विषयों से इस प्रथ्वी पर स्वर्ग बनाना चाहते हैं। राष्ट्रवाद और हिन्दूत्व को यह अपनी नज़र से देखते हैं और उन पर कटाक्ष करने में इनको मजा आता है। हम यहां तक इनके विचारों को स्वीकार भी कर लेते हैं पर जब यह सुख और दुःख जैसी बातें करते हैं तो हंसी आ ही जाती है क्योंकि हमारे अध्यात्मिक दर्शन में स्थूल पदार्थों में सुख ढूंढना अज्ञान माना जाता है। दूसरी बात यह कि सुख दुःख जीवन के दो पहिये माने जाते हैं। तीसरी बात यह कि सुख दुःख विषय अनुभूतियों से हैं न कि उनका कोई स्थूल रूप है।
वैसे उम्र के साथ आदमी की सोच बदलती है और भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान का अभ्यास हर आयु के लिये उपयोगी होता है मगर जिन्हें यह ज्ञान अन्यायपूर्ण लगता है आप उनसे यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि वह किसी को सुख दुःख का मायावी रूप समझ सकें। अलबत्ता उम्र के साथ आधुनिक ज्ञानी बनने का उनमं शौक जरूर चढ़ जाता है। हम विगत कई दिनों से सोच रहे थे कि कुछ लिखें और प्रगतिशील और जनवादियों के फैसबुकों को तलाश रहे थे। कहा भी जाता है कि आप लिख तभी सकते हैं जब पढ़ें। हम यह सोचकर लिख रहे हैं कि यह लेख उस लेखिका तथा उनके मित्रों में नहीं पढ़ा जायेगा। अगर निर्भयता नहीं होती तो शायद लिखते ही नहीं।
हम पिछले 12 वर्ष से ब्लॉग लिखते हैं। वह ब्लॉगरा शुरुआती दिनों में हमे हिन्दी में लिखने के लिये अदृश्य रूप से प्रेरित करती थीं। अंतर्जाल के इस प्रारंभिक दौर के साथियों के नाम हमें आजतक याद हैं। उस समय इंटरनेट जनता में इतना प्रचलित नहीं था। उस पर हिन्दी तो गिने चुने लोग ही लिखने वाले थे। ट्विटर के दौर में ब्लॉगर चलते रहे पर फेसबुक के उदय ने ब्लॉग की दुनियां सिमटा दी।
बहरहाल वह ब्लॉगरा प्रगतिशील या वामपंथी विचारधारा की हैं। हम भारतीय अध्यात्मिक धारा के हैं। हमें इस विचाराधारा के लोगों को पढ़ने में बड़ा मजा आता है क्योंकि यह अध्यात्मिक ज्ञान की बजाय सांसरिक विषयों से इस प्रथ्वी पर स्वर्ग बनाना चाहते हैं। राष्ट्रवाद और हिन्दूत्व को यह अपनी नज़र से देखते हैं और उन पर कटाक्ष करने में इनको मजा आता है। हम यहां तक इनके विचारों को स्वीकार भी कर लेते हैं पर जब यह सुख और दुःख जैसी बातें करते हैं तो हंसी आ ही जाती है क्योंकि हमारे अध्यात्मिक दर्शन में स्थूल पदार्थों में सुख ढूंढना अज्ञान माना जाता है। दूसरी बात यह कि सुख दुःख जीवन के दो पहिये माने जाते हैं। तीसरी बात यह कि सुख दुःख विषय अनुभूतियों से हैं न कि उनका कोई स्थूल रूप है।
वैसे उम्र के साथ आदमी की सोच बदलती है और भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान का अभ्यास हर आयु के लिये उपयोगी होता है मगर जिन्हें यह ज्ञान अन्यायपूर्ण लगता है आप उनसे यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि वह किसी को सुख दुःख का मायावी रूप समझ सकें। अलबत्ता उम्र के साथ आधुनिक ज्ञानी बनने का उनमं शौक जरूर चढ़ जाता है। हम विगत कई दिनों से सोच रहे थे कि कुछ लिखें और प्रगतिशील और जनवादियों के फैसबुकों को तलाश रहे थे। कहा भी जाता है कि आप लिख तभी सकते हैं जब पढ़ें। हम यह सोचकर लिख रहे हैं कि यह लेख उस लेखिका तथा उनके मित्रों में नहीं पढ़ा जायेगा। अगर निर्भयता नहीं होती तो शायद लिखते ही नहीं।
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