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Wednesday, January 24, 2018

आम हिन्दू जनमानस को गरियाने तक सीमित पांखडी प्रयास-पद्मावत पर हिन्दी सम्पादकीय (filam Padmawat and comman Hindu-HindiEditorial

आम हिन्दू जानमानस को गरियाने तक सीमित पांखडी प्रयास-पद्मावत पर हिन्दी लेख
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                                  हिन्दूत्ववादियों का पाखंड और डर अब सामने आ रहा है। अब तो उन पर गुस्सा आने लगा है।  ‘पद्मावत’ फिल्म के विरुद्ध आंदोलन चलाकर जिस तरह हिन्दुत्ववादियों ने आम हिन्दू को जिस तरह भ्रमित किया है वह देखने लायक है। इन हिन्दुत्ववादियों के पास इस फिल्म बनने के बाद उसे रोकने के लिये प्रयास करते देखा गया पर यह इनसे पूछने ही पड़ेगा कि ‘जब आपके पास केंद्र सहित 20 सरकारें हैं  तो सवाल है कि यह फिल्म बनी कैसे? अरे भई, राजनीति में कूटनीति भी कोई चीज होती है। अगर तुम में दम और अक्ल थी तो इस फिल्म को बनने से ही रोक सकते थे।’
                     फिर फिल्म के बनने से बाज़ार तक आने तक इसे कहीं भी रोकने के लिये सरकार प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष दबाव डाल सकती थी जिसे संभालना निर्माता और वितरकों के बस में नहीं होता।  इन पाखंडियों में इतना दम नहीं है कि अपने शीर्ष नेतृत्व तथा फिल्म व्यवसाय मे लगे उन हिन्दू लोगों पर पर उंगली उठाते अब सामान्य जनमानस से कह रहे हैं कि ‘यह फिल्म मत देखो’, ‘असली हिन्दू हो तो फिल्म मत देखो’ आदि आदि।
                  अगर हिन्दूत्ववादियों की चाल देखी जाये तो इनकी हिम्मत अपने से बड़े हिन्दू के सामने आंख मिलाने की नहीं होती मगर आम जनमानस को ललकारते और फुफकारते रहते हैं। कहते हैं कि अगर असली हिन्दू हो तो फिल्म मत देखो कभी यही नहीं कहते कि जिन्होंने फिल्म बनायी, उसे सार्वजनिक प्रदर्शन की अनु मति दी, जो इसे कमाने के लिये बाज़ार में ला रहे हैं और जो इसे प्रदर्शन की शक्ति दे रहे हैं वह नकली हिन्दू हैं। इन पाखंडियों में इतनी हिम्मत नही है क्योंकि इन्हें अपनी नाटकबाजी की कीमत पद, पैसे और प्रतिष्ठा के रूप में इन्हीं बड़े लोगों से चाहिये।  फेसबुक और ट्विटर पर इन पाखंडियों की सक्रियता केवल आम हिन्दू को लतियाने और गरियाने तक ही सीमित है।  राज्य, अर्थ, और कला जगत से जुड़े शीर्ष पुरुषों पर उंगली उठाने की इनकी हिम्मत नहीं दिखती। हम तो इस विषय में उदासीन हैं क्योंकि हमारा मानना है कि जिसने पद्मावती पर फिल्म बनायी है वह एक बाज़ारू निर्देशक है और उसमें इतिहास से न्याय करने की क्षमता नहीं है। साथ ही यह भी एक फिल्म किसी समाज या धर्म का कुछ न बना सकती है न बिगाड़ सकती है। साथ ही इन पाखंडियों को सलाह है कि इस फिल्म को शांति से चलने दो। अब चिड़िया चुग गयी खेत अब पछताय क्या हेत।
                 सीधी बात यह है कि इस यह फिल्म पैसे कमाने के लिये बनायी गयी है। हिन्दूत्ववादियों ने जानबूझकर इसके विरोध को हवा दी ताकि समाज विशेष के लोगों को उद्वेलित कर सड़क पर लाया जाये और फिल जब फिर उनके आंदोलन को विफलता के लिये तमाम प्रयास कर विश्व में संदेश भेजा जाये कि हम ‘निरपेक्षता के प्रतीक हैं’, हम शांति और व्यापार के साझीदार हैं तथा हम विकास प्रिय हैं, आदि आदि।  आखिर हमें देश में डॉलर जो लाने हैं। हमें नियमित पढ़ने वाले पाठक जानते हैं कि हम क्रिकेट की तरह फिल्म, कला, समाज सेवा तथा धर्म प्रचार  में फिक्सिंग का भूत देखते हैं। यह पाठ उसी की एक कड़ी मात्र है। अपनी नीति के अनु सार हमने किसी व्यक्ति या संस्था का नाम नहीं लिखा क्योंकि आजकल सभी जानते हैं वह कौनसी है जहां भक्तों के आदर्श पुरुषों के संकेतों पर सब चलता है। जय श्रीराम, जय श्रीकुष्ण
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