पूरे विश्व में प्रचार माध्यमों के बीच हर प्रकार के
दर्शक और श्रोता को प्रभावित करने की होड़ चल पड़ी है। मनोरंजन के नाम पर अनेक तरह
के कार्यक्रम आते हैं पर अब तो भक्ति पर भी व्यवसायिक कार्यक्रम बनने लगे हैं।
प्रातःकाल टीवी तथा रेडियो पर धर्मभीरु लोगों के आनंद के लिये भजनों का कार्यक्रम
प्रसारित होता है। जिन लोगों का अंतर्मन अध्यात्मिक रस से सराबोर होता है उन्हें
इनके श्रवण से आनंद मिलता है। यह अलग बात है कि भजन और आरती में अंतर बहुत कम लोग
समझते हैं। आरती हमेशा ही भक्त को सर्वशक्मिान के समक्ष याचक तथा पीड़ित के रूप में
प्रस्तुत करती है। श्रीमद्भागवत् गीता में भक्तों के चार प्रकार-आर्ती, अर्थार्थी, जिज्ञासु तथा ज्ञानी- बताये गये हैं। आत भाव वालों को
आरती, अर्थार्थी भाव वालों के
नाम स्मरण, योग ज्ञान साधना
वालों को मंत्र वाले भजन अधिक पसंद आते हैं। जिज्ञासु सभी प्रकार के भजनों का
श्रवण यह सोचकर करते हैं कि शायद उनको इससे आनंद मिल जाये-कुछ को मिलता है तो कुछ
इन्हें आम गीत मान लेते हैं।
अनेक जगह व्यवसायिक व्यायाम शिक्षक अपने यहां आने वाले
शिष्यों के लिये गीत संगीत मद्धिम स्वर से बजाने का प्रबंध भी करते हैं। हमने अपने
अभ्यास से यह अनुभव किया है कि सुबह के समय मौन होकर योग साधना या सैर करना
चाहिये। जब दिन भर ही विषयों से संपर्क के दौरान अपनी समस्त इंद्रियों को सक्रिय
रखना ही है तो फिर प्रातःकाल से ही उनके उपयोग कर उन्हें थकाने की आवश्यकता ही नहीं है। प्रातःकाल तो समस्त
इंद्रियों को मौन रखकर ऊर्जा संचय का है और अपना ध्यान श्रवण, दर्शन अथवा चिंत्ताओं में लगाना अपनी सृजित
ऊर्जा को विसर्जित करना ही है। अनेक जगह लोग प्रातःकाल भ्रमण तथा योग साधना के समय
बातें करते हैं। उन्हें कोई शिक्षक यह नहीं समझाता कि इस तरह ऊर्जा का अपव्यय देह
में विकार अधिक लाता है।
अनेक व्यवसायिक
व्यायाम तथा योग शिक्षकों में यह अहंकार का भाव आ ही जाता है। वह गुरु हैं
इस भाव से उन्हें संतोष नहीं होता वरन् वह उसका अनुभव दूसरे को कराकर आत्मसंतोष
करना चाहते हैं। इसके विपरीत निष्काम भाव से योग शिक्षा देने वाले इस भाव से परे
होते हैं।
हमारा मानना है कि प्रातःकाल का समय धर्म के लिये होता
है और कहा जाता है कि धर्म ही मानव जीवन की सबसे बड़ी शक्ति होती है। इसलिये
प्रातःकाल मौन होकर दैहिक, मानसिक
तथा वैचारिक शक्ति का संचय करना चाहिये।
इस दौरान सांसरिक विषयों पर वार्तालाप करने से योग साधना, व्यायाम तथा भ्रमण के सारे लाभों से वंचित
होना पड़ता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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