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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
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Sunday, August 20, 2017

कंपनियां कभी भारत चीन युद्ध नहीं होने देंगी-हिन्दी संपादकीय (companey no would mede any War between India china-HindiEditorial)

संदर्भ-भारत चीन युद्ध
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कंपनियां कभी भारत चीन युद्ध नहीं होने देंगी-हिन्दी संपादकीय      

                                               आजकल फेसबुक व ब्लॉग पर कोई बड़ा पाठ लिखने का मन नहीं करता। लिखना बहुत कुछ चाहते पर अंतर्जाल पर मीडिया पर इतना पढ़ते हैं कि बहुत कुछ लिखने का मन करता है पर उसमें से क्या लिखें यह तय करना कठिन है। इधर चीन व भारत के बीच प्रचार युद्ध चल रहा है-बात इससे आगे जायेगी यह संभावना नहीं लगती। हमारे पुराने अंर्तजालीय मित्र विचार जानते हैं। पूरे विश्व पर अंग्रेजी के चतुर्थकोणीय प समूह- पूंजीपति, प्रचारक, प्रबंधक (राज्य) पड़पीड़क (अपराधी)-का समन्वित कार्यक्रम है-अंग्रेजी में ‘एम’-मनीलैंडर, मीडिया, मैनेजर और माफिया ( 'M" MoneyLender, Media, Menegment And Mafia)-माना जा सकता है। भारतीय प्रचारक अभी तक कश्मीर तथा हिन्दूत्व की बहस कर रहे थे पर जनता बोर होने लगी थी-अब उनको डोकलाम नया विषय मिल गया है सो एक दो बरस तक उन्हें शायद ही इसे फुर्सत हो।  चीन रोज भारतीय सीमा में अपने सैनिक लेकर आयेगा फिर भाग जायेगा। यह खबरें भी चलती रहेंगी।
                                यही हाल चीन का है। जापान के विरुद्ध प्रचार वहां शायद पुराना विषय हो रहा है। दूसरी बात यह भी कि वहां की जनता सरकारी प्रचार माध्यमों से जुड़ने को मजबूर है इसलिये वह उस पर ध्यान नहीं देती। अब भारत के विरुद्ध प्रचार से वहां जान फूंकने का प्रयास होता लगा रहा है-उसके अनेक सरकारी समाचार पत्रों का नाम भारत पर सतत धमकियां छपने के कारण अंतर्राष्ट्रीय पटल पर चमक रहा है। संभवतः अनेक लोगों ने उसके अखबारों का नाम ही पहली बार सुना होगा। जहां तक दोनों देशों के बीच किसी भारी लड़ाई का जो भय है वह किसी को नहीं है। कंपनियों के मकड़जाल में चीन भी ऐसे ही फंसा है जैसे कि भारत। दोनो के पास भारी सैन्यबल है जिसे व्यस्त रखना भी जरूरी है ताकि उनका अभ्यास बना रहे। शायद चीन अपने देश में यही कर रहा है। भारतीय सेना तो पाकिस्तान के साथ लड़ने का नियमित अभ्यास करती रहती है। वहां के नेता कोई दूध के धुले नहीं है वरना वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का नाम पनामालीक में नहीं आता। हमारा तो मानना है कि चीनी नेता भी शीशे के घर में रहने लगे हैं इसलिये वह भारत पर पत्थर नहीं फैंक सकते। अभी तक चीन एक रहस्यमय देश था पर डोकलाम विवाद के बाद उसकी आंतरिक सच्चाईयां बाहर आने लगी हैं। इससे पता चलता है कि वह अमेरिका या सोवियत संघ की तरह महाशक्ति बनने का उसका सपना अब टूटने वाला ही है-यह शुभकाम भारत के हाथ से ही संपन्न हो रहा है। भारत प्रचार के स्तर में चीन की बराबरी पर आ गया है-इसका अर्थ यह कि चीन एशिया की अकेली महाशक्ति नहीं है वरन् भारत भी उसके समकक्ष खड़ा है। कुछ क्षेत्रों में तो भारत उससे आगे हैं-अंतरिक्ष, वायु तथा जल क्षेत्र में भारत उससे बहुत आगे हैं ऐसा बताया जा रहा है।
                          आजकल  भौतिकता का बोलबाला है। ऐसे में आर्थिक क्षेत्र के प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष संबंधों को बहुत महत्व है। चीन का भारत में भारी व्यापार है तो भारत में भी उससे  आयातित वस्तुओं का बाज़ार है जिसके क्रय विक्रय में स्थानीय लोगों को रोजगार के साथ ही उपभोक्ताओं को सस्ता सामान भी मिल रहा है। दोनों में कोई किसी को तबाह नहीं कर सकता और न करना चाहेगा।  यही कारण है कि सीमा पर एक भी गोली नहीं चली। चल गयी तो मामला सीधे विश्वयुद्ध तक चला जायेगा। ‘म’ समूह की पकड़ राज्य प्रबंधन पर भी होती है। चीन के बारे में तो यह कहा जाता है कि कहीं न कहीं अंतर्राष्ट्रीय माफिया भी वहां अपना पैसा लगाता है। अतः उसका मीडिया चाहे जो बकवास कर ले पर वहां के सरकारी नेता कभी युद्ध जैसी बात सोच भी नहीं सकते। हमारे टीवी चैनलों पर एक पान मसाले का विज्ञापन आता था जिसमें पात्र कहता है कि ‘हम इधर भी खिलाते हैं तो उधर भी खिलाते हैं।’ अंतर्राष्ट्रीय कंपनी सभी देशों में  ले-देकर अपना दखल रखती हैं और तय बात है कि वह अपने संपर्क वाले चीन के सरकारी नेताओं को कभी भारत पर हमला करने की इजाजत नहीं देंगी।

Wednesday, August 2, 2017

हमारी दृष्टि तो फेसबुक के सामान्य प्रयोक्ता पुराने लोगों से अधिक विद्वान हैं-हिन्दी लेख (Fecebook user is Great Intictual-HindiArticle)

                                  हमारे देश में इस समय सोशल मीडिया को लेकर अनेक विवाद उठते हैं और स्थापित विद्वानों को लगता है कि वह केवल अज्ञानी लोग सक्रिय हैं। अक्सर कुछ लोग फेसबुक पर सक्रिय रहने वालों पर यह आरोप लगाते है कि वह किसी भी बड़े या खास आदमी को भी कुछ नहीं समझते! उन्हें लगता है कि सब फेसबुक पर सक्रिय लोग अहंकारी हैं। 
              हम इससे उलट अपनी राय रखते हैं। दरअसल पहले टीवी चैनलों और अब सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने आम जनमानस को सबकी औकात के दर्शन करा दिये हैं और उन्हें यह पता लग गया है कि कथित बड़े और खास पहचान रखने वाले फर्जी हैं-वह बड़े पदों पर विराजे हैं, उनके पास ढेर सारा पैसा है और अभिनय से भारी प्रतिष्ठा भी है पर वह समाज के किसी काम के नहीं क्योंकि वह भी आमआदमी की तरह अपने परिवार हित तक ही सीमित हैं। यही हाल लेखकों और पत्रकारों का भी हैं। हम पिछले दस साल से अंतर्जाल पर सक्रिय हैं पर लगता है कि कई कथित बड़े व खास विद्वान लोग सोशल मीडिया से चित्र और विषय चुराकर अपनी मौलिकता प्रदर्शित कर रहे हैं।  
                     आम जनमानस को आभास हो गया है कि जो लोग कला, अर्थ, साहित्य, राजनीति तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में शिखर पर है वह योग्यता से कम प्रचार से ज्यादा बड़े वह खास बने हैं।  यही कारण है कि फेसबुक व ट्विटर पर आम प्रयोक्ता आक्रामक हो रहे हैं। उन्हें हम जैसा व्यक्ति तो अहंकारी नहीं मान सकता। इसका कारण यह है कि संगठित क्षेत्र के बुद्धिजीवियों, कलाकारों, तथा पत्रकारों ने सदैव यह भ्रम माना है कि उनकी लिखा या बोला ही ब्रह्म वाक्य है। इतना ही नहीं उन्होंने असंगठित क्षेत्र के विद्वानों को कभी अपने आगे गिना ही नहीं।  ऐसे में अब उन्हें अपनी उपेक्षा देखकर जलन होती है और वह सोशल मीडिया से चिढ़ने लगे हैं।
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