भारत एक विशाल प्राकृतिक संपन्न देश है। विश्व में क्षेत्रफल की दृष्टि से
अनेक बड़े देश हैं पर उनमें प्राकृतिक और मानवीय संसाधन की दृष्टि से अनेक दोष हैं।
भारत में सभी प्रकार के खनिज पाये जाते हैं तो जलसंपदा भी यहां बहुत है। उनके दोहन के लिये जनसंपदा भी कम नहंी है। अनेक
देश बड़े हैं और उनकी उनके पास प्राकृत्तिक संपदा भी बहुत है पर जनसंख्या अधिक नहीं
है जिससे वह उसका पूर्ण दोहन नहीं कर पाते।
अनेक देशों का क्षेत्रफल बड़ा है पर वहां जमीन में न पानी है और न ही खनिज संपदा। उन बड़े
देशों में संपन्नता है पर भारत जैसा अध्यात्मिक ज्ञान नहंी है। भारत विश्व
मे अपने अध्यात्मिक ज्ञान के कारण भी जाना जाता है। यही कारण है कि भारत के विरोधी राष्ट्र उस पर
शासन करने के लिये यहां भेदनीति अपनाते हैं। अध्यात्मिक ज्ञान के कारण आम भारतीय धर्मभीरु व्यक्ति बौद्धिक रूप से दृढ़ होता है इसलिये यहां के
समाज पर शासन सहज नहीं है। यही कारण है कि
यहां नये मानसिक भौतिक तथा मानसिक व्यसन निर्यात किये जाते हैं।
कार्ल मार्क्स ने कहा था कि धर्म अफीम की तरह होता है। यह पाश्चात्य विचाराधाराओं पर पूर्णतः सही लगता
है भारत में धर्म निजी नियंत्रण बनाये रखना वाला सिद्धांत है। भारत में विदेशी विचाराधाराओं की तरह
मार्क्सवाद भी आया है। इसके मानने वाले
समाज सेवा को व्यसन की तरह करते हैं।
उन्हें भारतीय अध्यात्मिक दर्शन अफीम का तत्व लगता है। इतना ही नहीं मार्क्स के शिष्य हर विदेशी
राजनीतिक, धार्मिक तथा सामाजिक विचार को भारतीय विचाराधाराओं से श्रेष्ठ मानते हैं। अंग्रेंजोें ने भारत को गुलाम बनाये रखने के
लिये ऐसी शिक्षा पद्धति अपनाई कि आज हर शिक्षार्थी नौकरी यानि गुलामी के लिये
तत्पर रहता है। उससे भी काम न चला तो
क्रिकेट जैसा खेल थोप दिया। भारत की बुद्धि का हरण उन्होंने इस कदर किया कि फिल्म
और क्रिकेट के नायक यहां भगवत्स्वरूप प्रचारित हो रहे हैं। प्रचार माध्यम उनकी आड़ में ढेर सारी आय अर्जित
कर रहे हैं। धर्म, अर्थ और समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय शिखर
पुरुष धनार्जन के नशे में लग ेहुए हैं तो आम लोग मनोरंजन के दास हो गये हैं।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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स्फीतं त्रीणि बलं शक्यमाधातुं पानवर्त्मनि।
हृस्वप्रयासव्यायामादितिसैन्यं समुत्पतेत्।।
हिन्दी में भावार्थ-शत्रु की सेना अगर बल में अधिक हो तो उसे मद्यपान के व्यसन में लगाकर व्यायाम में लग होने पर उसे आक्रमण कर दें।
अभी हाल ही में भारत में बढ़ते मादक द्रव्य पर समाचार आये थे। चार दिन चर्चा चली पर नतीजा वही ढाक के तीन
पात! अंग्रेजों ने यहां शासन कर यह समझ
लिया था कि यहां का अध्यात्मिक ज्ञान जितना प्रबल उतना ही यहा लोग मानसिक रूप से
कमजोर है। उनकी कमजोरियों पर अनुसंधान के कारण ही यहां के ऋषि, मुनि और तपस्वियों ने महान ज्ञान स्थापित किया। इस ज्ञान के रहते भारतीयों
पर शासन कठिन है इसलिये उन्होंने विदेशी विचारधाराऐं यहां प्रवाहित कीं। अंग्रेजों ने इसलिये ही अपनी शिक्षा पद्धति, खेल तथा मनोरंजन के साधन के रूप में स्थापित किया ताकि यहां से जाने के बाद
भी उनका प्रभाव बना रहे। इधर यह भी चर्चा
होती रही कि फिल्मों के प्रदर्शन, क्रिकेट में सट्टे और
मादक द्रव्यों से आतंकवादी संगठन पैसा अर्जित कर रहे हैं फिर भी हमारे देश के लोग
मनोरंजन के दासत्व से मुक्त नहीं हो पा
रहे। एक तरह से मद्यपान-फिल्म, क्रिकेट और मादक द्रव्य-इस देश पर विदेशी कब्जा हो गया है। हमारा मानना है
कि अगर हमारे देश के लोग कम से कम दो वर्ष फिल्म, क्रिकेट और मादक
द्रव्यों से दूर रहें तो यहां वातावरण अत्यंत सहज हो जायेगा। भारत को व्यसनों में धकेलने वाले तब निराश हो
कर चुप हो जायेंगे।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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