मनुष्य में भय की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से रहती है।
न केवल उसे मुत्यु का वरन् भूखे लगने पर रोटी न होने तथा अपनी संपत्ति तथा वैभव
खो का भय रहता है। सामाजिक परंपराऐं
निभाने के लिये वह इस भय से तत्पर रहता है कि कहीं उसकी प्रतिष्ठा पर आंच न आये।
देखा जाये तो इंसान केवल भय में ही अपना जीवन गुजार देता है।
कहते हैं टपके से ज्यादा टपके का भय रहता है। जब टपक
ही गया तो भय समाप्त होते ही व्यक्ति उससे जूझने के लिये प्रेरित होता है। अनेक
लोग भविष्य की आशंकाओं और भय से इतना ग्र्रस्त रहते हैं कि उनकी दैहिक संघर्ष
क्षमता क्षीण होती चली जाती है। अनेक तो ऐसे भय पाल लेते हैं जो कभी आते ही नहीं।
कोई ऐसा जीव इस संसार में नहीं होता जिसके जीवन में उतार चढ़ाव नहीं आता। भगवान
श्रीराम को भी प्रतिकूल स्थितियों का सामना करना पड़ा। भगवान श्री कृष्ण का तो
बाल्यकाल ही प्रतिकूल स्थितियों से जूझते ही बीता। इन महानायकों ने न बल्कि अपने
जीवन में दृढ़ता से संघर्ष करने के साथ ही
तत्कालीन समाज का भी उद्धार भी किया। उनके
गुुरुओं ने निष्काम भाव से शिक्षा प्रदान की जिसे प्राप्त करने के बाद उन्होंने न
केवल युद्ध क्षेत्रों में वीरता दिखाई वरन् जीवन प्रबंध का भी संदेश दिया।
इसलिये अपने जीवन में सदैव उन्मुक्त भाव रखना चाहिये।
प्रातःकाल योग साधना कर अपने अंदर दैहिक, मानसिक तथा चिंत्तन शक्ति का संचय करने के साथ ही उत्साह के साथ दिन
बिताने के लिसे तत्पर होना चाहिये। हम देखते हैं दिन में ही अनेक उतार चढ़ाव आते
हैं। प्रातःकाल शीतल हवा बहती है तो दोपहर काल में गर्मी विकट रूप से त्रास देती
है फिर शाम अपने साथ शांत भाव लाती है।
यही स्थिति जीवन की भी है इसलिये आशंका, भय तथा संताप के भाव पर अधिक ऊर्जा व्यर्थ नहीं करना
चाहिये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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