कुछ राष्ट्रवादी ‘इंडिया’ व भारत में अंतर करते हैं तो उन्हें रूढ़िवादी कहकर मजाक उड़ाया जाता है पर 18 जून के अंग्रेजों की धरती पर जो हुआ उससे उनके सिद्धांत का समर्थन ही किया जा सकता है। भारत की हॉकी टीम ने पाकिस्तान से सेमीफायनल खेला जिसमें वह 7-1 से जीती। उसी दिन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की टीम-जिसे हम एक क्ब ही मानते हैं-पाकिस्तान की टीम से मैच खेला और बुरी तरह हारे। सामान्यतः इसमें कुछ खास नहीं है पर भारतीय हाकी टीम ने पाकिस्तानी आतंकवाद का विरोध करते हुए बाहों पर काली पट्टी बांधी थी। हैरानी है बीसीसीआई के कर्ताधर्ताओं ने अपनी टीम को ऐसे निर्देश क्यों नहीं दिये? कारण है केवल पैसा! बीसीसीआई न अपनी टीमे चैंपियन ट्राफी में भाग अंग्रेजों को लगान तथा पाकिस्तान को हफ्ता वसूनी देने के लिये भेजी थी। वैसे ही क्रिकेट गुलामों का खेला माना जाता है और कम से कम सांस्कृतिक व पारंपरिक रूप से तो यह भारत का अंग नहीं है। यहां प्रश्न है तो यह है कि एक ही देश की दूसरे देश के सामने दो खेलों में अलग अलग नीति क्यों हो गयी?
अब चाहे जो हो पर इतना तय है कि सामान्य जनों में बहुत सारे बुद्धिमान अब क्रिकेट और उसके खिलाड़ियों में देशभक्ति का अभाव या उदासनता देखेंगे। आखिर इस सवाल का जवाब कौन देगा कि काली पट्टी बांधकर खेलने वाले हॉकी देश के जनमानस के भाव से जुड़े तो क्या क्रिकेट खिलाड़ियों के बार में क्या कहा जाये? हम यह तो नहीं कहेंगेकि वह देशभक्त नहीं है पर उनकी उदासीनता इस बात का प्रमाण तो है कि कहीं न कहीं पैसा कमाना ही उनका पहला लक्ष्य है। क्या हम मान लें कि हमारी सीमा के आकाश में इंडिया और धरती पर भारत है?
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जब हमें टीवी चैनल से पता लगा कि सट्टाबाजार में बीसीसीआई का भाव 74 और पाकिस्तान का 65 पैसे है तो माथा ठनका। मतलब यह मैच हम जैसे कमजोर हिन्दुत्ववादी, राष्ट्रवादी उससे ज्यादा ज्ञान साधक के लिये बीसीसीआई पाक क्रिकेट मैच दर्दनाक होने वाला था। अपनी ज्ञानसाधना का लाभ हमें ऐसे ही मिलता है तभी तो कभी निराशा वाला दृश्य नहीं देखते। ऐसे में इंडोनेशिया में श्रीकांत का फायनल एन्जॉय किया। फिर भारत पाक हॉकी मैच देखा। बीच बीच में चैनल बदलकर देखते थे कि कहीं ऐसा तो नहीं हम कोई अच्छा अवसर गंवा रहे हैं। पिछले दो अनुभव ऐसे रहे हैं कि जिस दिन बीसीसीआई की प्रतिद्वंद्वी टीम का भाव कम होता है उस दिन वह जीतने के मूड में नहीं रहती-यह कहें कि भाग्य खराब होता है। पिछली बार विश्व कप में आस्ट्रेलिया में उसके साथ ही बीसीसीआई की टीम का सेमीफायनल में मैच था। उस जीन्यूज से जब सुबह सट्टेबाजार की फेवरिट टीम आस्ट्रेलिया है तो हमारा माथा ठनका। सोच आज मैच नहीं देखें। इस मैच में उतारचढ़ाव आये-या कहा जाये कि लाये गये-पर अंततः बीसीसीआई की टीम हार गयी-कहना चाहिये कि सलीके से हारी ताकि किसी को संदेह नहीं हो। इस मैच में सलीके से नहीं हारी। शायद इतना दबाव था कि सलीका वगैरह भूल ही गये।
आज हमने टीवी के न्यूज चैनल देखने से परहेज की पर फेसबुकियों ने कल क्रिकेट की हार पर अपना विलाप जारी रखकर निराश किया। इसका मतलब साफ है कि सारे फेसबुकिये हमें पढ़ते ही नहीं है-वरना दर्दनाक दृश्य देखने के लिये टीवी पर आंखें नही गढ़ाते। उन्हें पता होना चाहिये था कि क्रिकेट में सटटाबाजार ही सबका बाप है। सबसे ज्यादा अफसोस है कि देश में नवाधनाढ्य देशभक्ति के नाम पर भले ही उबल पड़ें पर उनहें यह कोई समझाने वाला नहीं है कि अगर भारतीय क्रिकेट टीम का हमेशा जीतते देखना चाहते हैं तो एक भी पैसा भारत पर नहीं लगाओ। आम जानमानस को देशभक्ति सिखाने वाले अगर नवधनाढ़यों को क्रिकेट से सटटा न लगाने के लिये प्रेरित करें तो बात बने। वरना इस तरह विलाप करना बेकार है।
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जहां तक क्रिकेट का सवाल है हम उसे देशभक्ति का रस घोलने के विरोधी हैं। आईसीसीआई एक वैश्विक क्लब है जिसका मुख्यालय लार्डस में है। उसके बाद उसकी भारतीय शाखा बीसीसीआई के नाम से जानी जाती है। बीसीसीआई के पास बहुत पैसा है क्योंकि उसके पास आईपीएल जैसी कमाऊ प्रतियोगिता है। आईसीसीआई की स्थिति खराब हो रही थी। उसका अध्यक्ष भी एक भारतीय है सो किसी तरह योजनाबद्ध से भारत पाकिस्तान के एक नहीं दो मैचा आयोजित होने ही थे। हम यहां फिक्सिंग का आरोप तो नहीं लगायेंगे पर जिस तरह पिचें बनायीं गयी उससे दोनों ही टीम लाभदायक स्थिति में रहीं। हमारे देश में कुछ लोगों को गलतफहमी है कि गोरे ईमानदार होते हैं। हम यह मान लेते हैं पर यह भी बता दें कि वह बहुत चालक भी है-देख नहीं रहे कि कहते कि भारत को आजाद कर दिया पर काले अंग्रेजों को राज दे गये-इसलिये उन्होंने योजनाबद्ध ढंग से ज्यादा कमाई का जरिया ढूंढ ही लिया।
जिस तरह भारत पाकिस्तान के चैनल इस मैच में देश व धर्म भक्ति का रस डाल रहे हैं उससे उनके विज्ञापनों का समय खूब पास हो रहा है। यह नूराकुश्ती है पर एक आशंका है कि कहीं भारतीय कारोबारी पैसा कमाने की इस हद तक न चले जायें कि भारतीय टीम से मैच ही हरवा लें। आखिरी बात यह कि जिस तरह आईसीसीआई का चैंपियनशिपीय कारोबार चला है उससे एक बात साफ है कि बीसीसीआइ्र्र की गुप्त सहायता के बिना यह संभव नहीं था। इधर देश का वातावरण इस तरह बना है कि भारत पाकिस्तान की द्विपक्षीय श्रृंखला हो ही नहीं सकती। इसलिये ऐसी प्रतियोगितायें आगे हो सकती हैं जहां भारत पाकिस्तान मैच बिकते रहें।