भारत में कन्या शिशु की गर्भ में ही भ्रुण हत्या एक भारी चिंता का विषय बनने लगा है। इससे समाज में लिंग संतुलन बिगड़ गया है जिसके भयानक परिणाम सामने आ रहे हैं। सामाजिक विशेषज्ञ बरसों से इस बात की चेतावनी देते आ रहे हैं कि इससे समाज में स्त्रियों के विरुद्ध अपराध बढ़ेगा। अब यह चेतावनी साक्षात प्रकट होने लगी है। ऐसे अनेक प्रकरण सामने आ रहे हैं जिसमें लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार कर उनकी हत्या कर दी जाती है। स्थिति इतनी बदतर हो गयी है कि बड़ी आयु की महिलायें भी अपने पुत्र या पुत्री की आयु वर्ग के अपराधियों का शिकार होने लगी है। हम अगर कन्या भ्रुण हत्या को अगर एक समस्या समझते हैं तो अपने आपको धोखा देते हैं। दरअसल यह सामाजिक समस्याओं का विस्तार है। इनमें दहेज प्रथा शामिल है। लोग दहेज प्रथा समस्या के दुष्परिणामों के बृहद स्वरूप को नहीं समझते। जहां अमीर आदमी अपनी लड़कियों को ढेर सारा दहेज देते हैं तो गरीब भी कन्या को दान करने के लिये लालायित रहता है। यह लालसा समाज में प्रतिष्ठा अर्जित करने के अहंकार भाव से उपजती है। दहेज के विषय पर हमारे अनेक विद्वान अपनी असहमति देते आये है। दरअसल एक समय अपनी औकात के अनुसार अपनी पुत्री को विवाह के समय भेंट आदि देकर माता पिता घर से विदा करते थे पर अब यह परंपरा पुत्रों के लिये विवाद के समय उनके माता पिता का अधिकार बन गयी है।
इस विषय पर गुरुवाणी में कहा गया है कि
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'होर मनमुख दाज जि रखि दिखलाहि,सु कूड़ि अहंकार कच पाजो'
"लड़की के विवाह में ऐसा दहेज दिया जाना चाहिए जिससे मन का सुख मिले और जो सभी को दिखलाया जा सके। ऐसा दहेज देने से क्या लाभ जिससे अहंकार और आडम्बर ही दिखाई दे।"
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'होर मनमुख दाज जि रखि दिखलाहि,सु कूड़ि अहंकार कच पाजो'
"लड़की के विवाह में ऐसा दहेज दिया जाना चाहिए जिससे मन का सुख मिले और जो सभी को दिखलाया जा सके। ऐसा दहेज देने से क्या लाभ जिससे अहंकार और आडम्बर ही दिखाई दे।"
अब पुत्र के माता पिता उसकी शादी में खुल्लम खुला सौदेबाजी करते हैं। कथित प्राचीन संस्कारों के नाम पर आधुनिक सुविधा और साधन की मांग करते हैं। नतीजा यह है कि समाज अब अपने बच्चों की शादी करने तक ही लक्ष्य बनाकर सिमट गया है। यही कारण है कि संचय की प्रवृत्ति बढ़ी है और लोग अनाप शनाप ढंग से पैसा बनाकर शादी के अवसर उसका प्रदर्शन करते हैं। देखा जाये तो किसी की शादी स्मरणीय नहीं बन पाती पर उसे इस योग्य बनाने के लिये पूरा समाज जुट जाता है। शादी में दिया गया सामान एक दिन पुराना पड़ जाता है। भोजन में परोसे गये पकवान तो एक घंटे के अंदर ही पेट में कचड़े के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं मगर पूरा समाज एक भ्रम को स्मरणीय सत्य बनाने के लिये अपना पूरा जीवन नष्ट कर डालता है। दहेज प्रथा एक ऐसा शाप बन गयी है जिससे भारतीय लोग वरदान की तरह ग्रहण करते हैं। जब पुत्र पैदा होता है तो माता पिता के भी माता पिता प्रसन्न होते हैं और लड़की के जन्म पर पूरा खानदान नाकभौ सिकोड़ लेता है। इसी कारण समाज में कन्या भ्रुण हत्या एक फैशन बन गयी है। अगर दहेज प्रथा समाज ने निजात नहीं पायी तो पूर्णता से संस्कृति नष्ट हो जायेगी। फिर किसी समय हमारी धार्मिक परंपरा तथा सभ्यता इतिहास का विषय होगी।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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In real dowry system is a subject of worry we all know that we should prevent it from our country to save the next genreation but our government and appointed gorverment employe are not taking fatal action to prevent it so thats why thats the reason .
ReplyDeleteHow we can stop it? we can stop it self if we are awared .
ATIK ANSARI
UP
In real dowry system is a subject of worry we all know that we should prevent it from our country to save the next genreation but our government and appointed gorverment employe are not taking fatal action to prevent it so thats why thats the reason .
ReplyDeleteHow we can stop it? we can stop it self if we are awared .
ATIK ANSARI
UP
im going to give a social awareness speech in a rural area in goa....dowry system does prevail in backward classes in goa and also migrants which consists of 40% of the population....i would like to get more details on what can i add....how to go about....its in hindi....and my hindi is weak.....plzzzzz help.....anisha fernades
ReplyDeletedsf
ReplyDeletenice said
ReplyDeletekafi sahi kaha gaya hai,ki beti ka pitaa hona jaha pahle garva ki baat thi wahi aaj betiyon ka hona abhishap ban raha hai kya yahi hamara desh hai jahan nari pujniya kahi jaati thi
ReplyDeleteअब पुत्र के माता पिता उसकी शादी में खुल्लम खुला सौदेबाजी करते हैं। कथित प्राचीन संस्कारों के नाम पर आधुनिक सुविधा और साधन की मांग करते हैं। नतीजा यह है कि समाज अब अपने बच्चों की शादी करने तक ही लक्ष्य बनाकर सिमट गया है। यही कारण है कि संचय की प्रवृत्ति बढ़ी है और लोग अनाप शनाप ढंग से पैसा बनाकर शादी के अवसर उसका प्रदर्शन करते हैं। देखा जाये तो किसी की शादी स्मरणीय नहीं बन पाती पर उसे इस योग्य बनाने के लिये पूरा समाज जुट जाता है। शादी में दिया गया सामान एक दिन पुराना पड़ जाता है। भोजन में परोसे गये पकवान तो एक घंटे के अंदर ही पेट में कचड़े के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं मगर पूरा समाज एक भ्रम को स्मरणीय सत्य बनाने के लिये अपना पूरा जीवन नष्ट कर डालता है। दहेज प्रथा एक ऐसा शाप बन गयी है जिससे भारतीय लोग वरदान की तरह ग्रहण करते हैं। जब पुत्र पैदा होता है तो माता पिता के भी माता पिता प्रसन्न होते हैं और लड़की के जन्म पर पूरा खानदान नाकभौ सिकोड़ लेता है। इसी कारण समाज में कन्या भ्रुण हत्या एक फैशन बन गयी है। अगर दहेज प्रथा समाज ने निजात नहीं पायी तो पूर्णता से संस्कृति नष्ट हो जायेगी। फिर किसी समय हमारी धार्मिक परंपरा तथा सभ्यता इतिहास का विषय होगी। hamare desh me nari pujya thi per ab yeh kya ..........................?
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