कुछ लोग जन्म से ही छोटे कद के रह जाते हैं तो हम उनको बौना कहते हैं। कुछ
लोग छोटे पद पर काम करते हैं तो हम उन्हें बौने व्यक्तित्व का स्वामी मानते हुए यह
कहते हैं कि वह छोटा कर्मचारी है। किसी के पास धन अल्प होता है तो हम उसे गरीब
मानते हैं, मगर हम व्यक्तित्व, विचार तथा व्यवहार के आधार पर कभी यह तय नहीं कर पाते कि कोई बौना या ऊंचा
है। जनमानस की अज्ञानता का लाभ उठाते हुए आर्थिक, सामाजिक,
कला तथा धार्मिक क्षेत्र के शिखरों पर कई ऐसे लोग
विराजमान हो गये हैं जो विचार, व्यक्तित्व तथा व्यवहार में सामान्य की बजाय बौनापन धारण किये होते हैं।
अनेक लोग ऐसे हैं जो जीवन के विषय को व्यापक मानने की बजाय पद, पैसा प्रतिष्ठा अर्जित
करने ही लक्ष्य रखते हुए बौनेपन को प्राप्त हो जाते हैं। सभी के कल्याण का नारा देकर वह अपने क्षेत्र
में ऊंचाई पर पहुंचने के बाद वह केवल अपने परिवार की प्रसन्नता के लिये कार्य करते
हुए समाज में अहंकार दिखाते हैं। हमसे दूर
रहते हैं इसलिये हम उनका आंकलन नहीं कर पाते वरना वह विचार, व्यक्त्तिव और व्यवहार
में अत्यंत बौने होते हैं। एक सामान्य व्यक्ति कभी भी शिखर पर पहुंचने की इच्छा न
करते हुए अपने सीमित दायरे में काम करता है पर लालची तथा लोभी लोग तो अपने लक्ष्य सर्वजनहित के लिये तय करते दिखते
हैं पर मूलतः यह उनका पाखंड होता है।
आज अगर हम विश्व के साथ ही अपने समाज की बुरी स्थिति पर दृष्टिपात करें तो यह पता चलेगा कि आजकल की
समस्या यही है कि सामान्य व्यक्ति संतुष्ट होकर अपनी सीमा में रहता है जबकि विचार, व्यक्तित्व और व्यवहार
की दृष्टि से बौने लोग पांखड के सहारे इतना आगे बढ़ जाते हैं कि उनके पास प्रचार
में विराट व्यक्तित्व दिखाने की शक्ति भी आ जाती है। सच तो यह है कि अपना बौनापन
छिपाने के लिये ऐसे लोग हर क्षेत्र शिखर ढूंढते हैं ताकि समाज उनका सम्मान करे।
इसलिये हमें पद, पैसे और प्रतिष्ठा के शिखर पर बैठे लोगों को अपना आदर्श नहीं बनाना
चाहिये। न ही यह विश्वास करना चाहिये कि
वह विचार, व्यक्तित्व तथा व्यवहार में हमसे कहीं अधिक बड़े हैं। एक तरह से तो उन्हें सामान्य व्यक्ति की तुलना
में बौना ही मानना चाहिये क्योंकि वह पाखंड नहीं करता। न ही ऐसे लोगों से ईर्ष्या करना चाहिये क्योंकि
यह लोग अपना शिखर बचाने के लिये इतने
चिंतित रहते हैं कि उनकी रातों की नींद हराम हो जाती है। इतना ही नहीं पांखड तथा
प्रचार की राह पर चलते हुए उनका नैतिक चरित्र भी गिरता जाता है। हमारे यहां कहा भी
जाता है कि धन गया तो समझो कुछ भी नहीं गया,
अगर स्वास्थ्य गया तो समझो सब कुछ चला गया और चरित्र
गया तो समझो सब कुछ चला गया। इसलिये अपने
व्यवहार, विचार तथा व्यक्तित्व का सौंदर्य बचाने के लिये हमेशा ही आत्म चिंत्तन करते
हुए सहज येाग का मार्ग अपनाना चाहिये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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