आज के युग में आधुनिक सामानों के लिये व्यापार में प्रचार माध्यमों से विज्ञापन आवश्यक हो गया है। विज्ञापन की वस्तु
का उपयोग करते हुए किसी महानायक का दिखना जरूरी है और इसके लिये खेल,
कला, फिल्म तथा टीवी क्षेत्र में काम करने वाले पात्र का अभिनय करने वालों की
आवश्यकता होती है क्योंकि वह किसी न किसी तरह सामान्य मनुष्यों के मस्तिष्क में
निवास करते हैं। वह आम इंसान का अपनी प्रचारित वस्तुओं के उपभोग के लिये प्रेरित
करते हैं। जिस तरह खेलों पर वस्तुओं की उत्पादक कंपनियो का नियंत्रण हो गया है और
विभिन्न मुकाबलों ंके निर्णय पूर्व में ही तय लगते हैं उससे यह संदेह होता ही है
कि अब किसी की जीत हार में अस्वाभाविक
तत्व भी शामिल होते हैं। वस्तुओं की उत्पादक कंपनियों के संचालक अब टीवी, टेलीफोन तथा फिल्म
कंपनियां भी चला रहे हैं। मतलब यह कि कंपनी दैत्यों के पास न केवल मनुष्य की नयी
वस्तु का उपभोग करने की इच्छा की संपति है वहीं उसकी आंखें, कान और मन को अपनी तरफ
खींचने के साधन भी हैं। एक तरह से
कंपनियां अब अदृश्य देव या दानव कही जा सकती हैं जो संसार के संचालन में अपनी
भूमिका निभाती है पर दृष्टिगोचर नहीं होती। विश्व के जनवादी विचारक तो यह मानते
हैें कि समाज पर नियंत्रण करने वाली जितनी भी संस्थायें हैं उन पर पूंजीपतियों का
कब्जा रहता है और वह अपने अनुसार ही राज्य की नीतियां बनवाते और बिगड़वाते हैं। जब
तक भारत में कपंनियों का प्रभाव सीमित था तब तक उनके विचार अप्रासंगिक लगते थे पर
आर्थिक उदारीकरण का युग आने के बाद जिस तरह कंपनियों की शक्ति प्रकट हो रही है, यह लगने लगा है कि उनकी
सोच सही थी।
अभी हाल में ही अमेरिका के लास वेगास शहर के एक केसीनों में मुक्केबाजी का
मुकाबला अमेरिका के फ्लॉयड मेवेदर और मैनी पैकियओ के बीच हुआ। इसके होने से पहले इसका भरपूर प्रचार हुआ। प्रचार में यह बात बराकर दोहराई जाती रही कि दोनों
ही गरीब परिवारों से आये और मुक्केबाजी करते हुए अमीर बन गये। मैनी पैकियओं के
बारे मे तो यह भी प्रचार हअुा कि वह अपने देश फिलीपींस में एक बहुत बड़े दानदाता भी
हैं। प्रचार में दोनों खिलाड़ियों की मुक्केबाजी की कला जितना ही उनके पवित्र
व्यक्तित्व का प्रचार हुआ। दोनों के बार
मेूं हमें ज्यादा पता नहीं पर इतना जरूर कह सकते हैं कि व्यापारिक स्वामियों तथा
प्रचार प्रबंधकों के संयुक्त उपक्रमों की इन पर कहीं न कहीं मेहरबानी अवश्य रही
है। दोनों के बीच कैसीनों में मुकाबला हुआ जो जुआ की वजह से जाना जाता है। मुकाबले से पहले ही प्रचार माध्यमों ने यह बताया
कि सट्टेबाजों का प्रिय नायक फ्लॉयड मेवेदर है। यह सही साबित भी हुआ। दोनों ने आपस में मुकाबले का अच्छा अभिनय भी
किया। समाप्ति पर पैकियओ रैफरियों के पास अपने विजेता की आस लेकर गया क्योंकि उसे
लगा कि उसने अच्छा अभिनय किया है उन्होंने उसे नकार कर मेवेदर का को विजेता घोषित
किया।
मेवेदर
और पैकियओ इस समय के विश्व के सबसे श्रेष्ठ मुक्केबाज हैं यह प्रमाणिकता से नहीं
कहा जा सकता क्योकि यह 67 किलो
वर्ग का मुकाबला खेल रहे थे। इसका मतलब यह
कि इस समय भी दुनियां में उनसे अच्छे मुक्केबाज हो सकते हैं पर सभी पर व्यापारिक
स्वामियों और प्रचार प्रबंधकों की कृपादृष्टि नहीं जाती इसलिये। मुक्केबाज ही नहीं
वरन् हर खेल में दो तरह के खिलाड़ी सक्रिय हैं एक तो जो वास्तव में खेलते हैं पर
उनको किसी के इशारे पर खेलने का अभिनय नहीं करना आता या अवसर नहीं मिलता, दूसरे वह हैं जो खेलने की तकनीकी में इतने माहिर होते हैं
कि वह दूसरे के इशारे पर उसके अनुसार खेलने का अभिनय भी करते हैं। यकीनन दूसरे प्रकार के खिलाड़ियों को अधिक
प्रचार तथा पैसा मिलता है। एक कैसिनो में खेला गया सामान्य मुक्केबाजी
मुकाबला-जिसका पूर्व में परिणाम तय होने की आशंका हो-जब महान होने का प्रचार पाता
है तब ऐसी अनेक बातें दिमाग में आती हैं जिनका संबंध खेल से सोच से ज्यादा होता
है।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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