न बकव्रतिके विप्रे नावेदविदि धर्मवित्।।
हिंदी में भावार्थ-धर्म की जानकारी रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को चाहिये कि वह ऐसे किसी पुरुष को पानी तक नहीं पिलाये जो ऊपर से साधु बनते हैं पर उनका वास्तविक काम दूसरों को अपनी बातों से मूर्ख बनाना होता है।
यथा प्लवेनौपलेन निमज्जत्युदके तरन्।
तथा निमज्जतोऽधस्तादज्ञौ दातृप्रतीच्छकौ।।
हिंदी में भावार्थ-जैसे को मनुष्य जल में प्रस्तर की नाव बनाकर डूब जाता है उसी तरह दूसरों को मूर्ख मनाकर दान लेने वाला तथा देना वाला दोनों ही नष्ट हो जाते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या -हमारे देश में दान देने की बहुत पुरानी परंपरा है। चाहे सतयुग हो या कलियुग दान देने का भाव हमारे देश के लोगों में सतत प्रवाहित है। इसी भाव का देाहन करने के लिये दान लेने वालों ने भी एक तरह से अपना धंधा बना लिया है। यह केवल आज ही नहीं वरन् मनु महाराज के समय से चल रहा है इसलिये वह अपने संदेश में सचेत करते हैं कि अपनी वाणी या कर्म से दूसरे को मोहित कर ठगने वाले को पानी भी न पिलायें। ऐसे ठगों को भोजन खिलाने या पानी पिलाने से कोई पुण्य नहीं मिलने वाला। ऐसे ठगों को दान देने से कोई पुण्य लाभ की बजाय पाप होने की आशंका रहती है। वह स्वयं तो नष्ट होते ही हैं बल्कि दान देने वाला भी नष्ट होता है-उसे इस बात का भ्रम होता है कि वह पुण्य कमा रहा है पर ऐसा होता नहीं है और वह निरंतर पाप का भागी बनता चला जाता है। अतः दान देते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि वह सुपात्र है कि नहीं। देखा जाये तो इस तरह के ठग मनुमहाराज के समय में भी सक्रिय रहे हैं तभी तो उन्होंने ऐसा संदेश दिया है।
...........................
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
बहुत अच्छा सन्देश | दान जरुरत मंद को ही देना चाहिए |
ReplyDeleteमूल्यों को जीवित करने की दिशा में सार्थक कदम। वाह।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail