कपट राखिके जो मिले, तासे मिलै बलाय।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति सच्चा प्रेम करने वाला हो उससे तो मिलना चाहिये पर जिनके मन में कपट है उनसे दूर रहने में भी भलाई है।
सजन सनेही बहुत हैं, सुख में मिले अनेक।
बिपत्ति पड़े दुख बांटिये, सो लाखन में एक।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार में जब मनुष्य सुख की स्थिति में होता है तब उसके साथ स्नेह करने वाले सज्जन बहुत होते हैं पर दुःख और विपत्ति में साथ निभायें ऐसे लोगों की संख्या नगण्य ही होती है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जब मनुष्य आत्मनिर्भर और संपन्न होता है तब उसके आसपास लोगों की भीड़ लगी होती है। जो जितना अधिक धनी, उच्च पदारूढ़ और प्रतिष्ठत होता है उसके आसपास उतनी ही भीड़ लगी होती है। अगर हम उनकी तरफ देखें तो लगेगा कि वह तो बड़ा आदमी है। यह केवल सोचने का एक तरीका है और इसका कोई तार्किक आधार नहीं है। जहां शहद फैला होगा वहां चींटियां तो आयेंगी। यही हाल सामान्य मनुष्यों की प्रवृत्ति का भी है। चाहे भले ही धनी, उच्च पदारूढ़ और बाहूबली आदमी से कुछ न मिलता हो पर लोग उसके यहां चक्कर जरूर लगाते हैं कि इस आशा में कि शायद कभी उसकी आवश्यकता पड़ जाये और वह सहायत करे। मगर वह उसके यहां तभी तक जाते हैं जब तक उसके पास शक्ति है और जैसे ही वह उससे विदा हुई वह उससे भी मूंह फेर लेते हैं।
इसलिये अपने उच्च पद, अधिक धन और बाहूबल का अहंकार अपने आसपास लगी भीड़ को देखकर तो नहीं पालना चाहिये क्योंकि जैसे ही वह विदा होगी लोग भी नदारद हो जायेंगे। शक्ति के विदा होते ही जब विपत्तियां आती हैं तब कोई साथ निभाने वाला नहीं होता। कोई कोई होता है जो दुःख में यह सोचकर साथ निभाता है कि अमुक आदमी से अपने अच्छे दिनों में मदद की थी।
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