समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
-------------------------


Wednesday, June 24, 2009

चाणक्य नीति-दूसरों की तरक्की देखकर जलने वाला विद्वान पशु समान

चापी-कूप-तडागानामाराम-सुर-वेश्मनाम्।
उच्छेद निरऽऽशंकः स विप्रो म्लेच्छ उच्यते।।
हिंदी में भावार्थ-
जो मनुष्य बावड़ी, कुआं तालाब, बगीचे और धर्म स्थानों में तोड़फोड़ और उनको नष्ट करने से जो डरते नहीं है वह भले ही विद्वान हों म्लेच्छ कहलाता है।

परकार्यविहन्ता च दाम्भिकः स्वार्थसाधकः।
छली द्वेषी मृदः क्रूरो विप्रो मार्जार उच्यते।।
हिंदी में भावार्थ-
जो मनुष्य दूसरे के कार्यों को बिगाड़ने वाला, पाखंडी, अपना मतलबी साधने वाला, छलिया, दूसरों की उन्नति देखकर जलने वाला तथा बाहर से कोमल और अंदर कपट भाव रखने वाला है वह भले ही विद्वान क्यों न हो पशु के समान है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-सभी को अपने जीवन में अपना स्वयं के धर्म और कर्म केंद्रित करना चाहिये। कुछ ऐसे मनुष्य भी हैं जो केवल धर्म का दिखावा करते हैं पर उनका लक्ष्य उसकी आड़ में व्यवसाय या उसके सहारे अपना समाज पर वर्चस्व स्थापित करना है। ऐसे लोग धर्म के आधार पर निकृष्ट कर्म करते हैं जो केवल पाप की श्रेणी में आते हैं। हालांकि कहा जाता है अशिक्षित और गंवार लोग ही ऐसे हैं जो धर्म की आड़ में पाप काम करते हैं पर चाणक्य महाराज की बात को देखें तो यह काम पहले भी विद्वान और शिक्षित लोगों के द्वारा होता रहा है। बस अंतर इतना है कि अब यह काम केवल विद्वान आर शिक्षित लोग ही कर नजर आते हैं। कथित अशिक्षित और गंवार लोगों को तो अपनी रोजी रोटी कमाने से ही आजकल फुरसत कहां मिल पाती है?
देश, प्रदेश, और शहर की संपत्ति और धार्मिक स्थानों पर तोड़फोड़ करने वाले भारी पाप करते हैं और उनको एक तरह से म्लेच्छ कहा जाता है। चाहे अपने धर्म का हो या दूसरे धर्म का उसमें तोड़फोड़ करने वाले महापापी हैं और उनका कभी समर्थन न करे। ऐसे लोग धर्म के नाम पर विवाद कर समाज का ध्यान अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर उसका लाभ उठाते हैं। अगर हम उनकी तरफ देखें तो भी समझ लेना चाहिये कि पाप हो गया।
................................
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

  1. aankhen kholne waala sootra !
    dhnya hai chanakya
    aur dhnya hai chanakya ki seekh !

    ReplyDelete

अध्यात्मिक पत्रिकाएं