उच्छेद निरऽऽशंकः स विप्रो म्लेच्छ उच्यते।।
हिंदी में भावार्थ-जो मनुष्य बावड़ी, कुआं तालाब, बगीचे और धर्म स्थानों में तोड़फोड़ और उनको नष्ट करने से जो डरते नहीं है वह भले ही विद्वान हों म्लेच्छ कहलाता है।
परकार्यविहन्ता च दाम्भिकः स्वार्थसाधकः।
छली द्वेषी मृदः क्रूरो विप्रो मार्जार उच्यते।।
हिंदी में भावार्थ-जो मनुष्य दूसरे के कार्यों को बिगाड़ने वाला, पाखंडी, अपना मतलबी साधने वाला, छलिया, दूसरों की उन्नति देखकर जलने वाला तथा बाहर से कोमल और अंदर कपट भाव रखने वाला है वह भले ही विद्वान क्यों न हो पशु के समान है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-सभी को अपने जीवन में अपना स्वयं के धर्म और कर्म केंद्रित करना चाहिये। कुछ ऐसे मनुष्य भी हैं जो केवल धर्म का दिखावा करते हैं पर उनका लक्ष्य उसकी आड़ में व्यवसाय या उसके सहारे अपना समाज पर वर्चस्व स्थापित करना है। ऐसे लोग धर्म के आधार पर निकृष्ट कर्म करते हैं जो केवल पाप की श्रेणी में आते हैं। हालांकि कहा जाता है अशिक्षित और गंवार लोग ही ऐसे हैं जो धर्म की आड़ में पाप काम करते हैं पर चाणक्य महाराज की बात को देखें तो यह काम पहले भी विद्वान और शिक्षित लोगों के द्वारा होता रहा है। बस अंतर इतना है कि अब यह काम केवल विद्वान आर शिक्षित लोग ही कर नजर आते हैं। कथित अशिक्षित और गंवार लोगों को तो अपनी रोजी रोटी कमाने से ही आजकल फुरसत कहां मिल पाती है?
देश, प्रदेश, और शहर की संपत्ति और धार्मिक स्थानों पर तोड़फोड़ करने वाले भारी पाप करते हैं और उनको एक तरह से म्लेच्छ कहा जाता है। चाहे अपने धर्म का हो या दूसरे धर्म का उसमें तोड़फोड़ करने वाले महापापी हैं और उनका कभी समर्थन न करे। ऐसे लोग धर्म के नाम पर विवाद कर समाज का ध्यान अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर उसका लाभ उठाते हैं। अगर हम उनकी तरफ देखें तो भी समझ लेना चाहिये कि पाप हो गया।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
aankhen kholne waala sootra !
ReplyDeletedhnya hai chanakya
aur dhnya hai chanakya ki seekh !