तादृंनारिधपो लोके वर्जनीवो नारधिपः।।
हिंदी में भावार्थ-अपने व्यक्ति अपने आश्रितां में अपनी धन संपत्ति को ठीक से बंटवारा नहंी कर तो दुष्ट कृतघ्न और निर्लज्ज है उसे इस लोक में त्याग देना चाहिए।
न बुद्धिर्धनलाभाय न जाह्यमसद्धये।
लोकपर्यावृतांत प्राज्ञो जानाति नेतरः।।
हिंदी में भावार्थ- धन केवल बुद्धि से ही प्राप्त होता है या मूर्खता के कारण आदमी दरिद्र रहता है, ऐसा कोई नियम नहीं है। इस संसार के नियमों को केवल विद्वान पुरुष ही जानते हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जिन लोगों के पास धन नहीं है या अल्पमात्रा में है उन्हें धनवान लोग मूर्ख और अज्ञानी मानते हैं। अक्सर धनवाल लोग कहते हैं कि ‘अक्ल की कमी के कारण लोग गरीब होते हैं।’
उनका यह तर्क गलत और बेहूदा है। अगर ऐसा है तो अनेक धनवान गरीब क्यों हो जाते हैं? जिनके पास धन और संपत्ति विपुल मात्रा में वह अपने व्यवसाय में हानि उठाने या अपने बच्चों की गलत संगत के कारण उनके द्वारा किये जा रहे अपव्यय के से संकटग्रस्त हो जाने से निर्धनता को प्राप्त हो जाते हैं। तब उनके बारे में क्या यह कहना चाहिये कि ‘वह अक्ल के कारण ही अमीर हुए और अब उसके न रहने से गरीब हो गये।’ या ‘अब धन नहीं है तो उनके पास अक्ल भी नहीं होगी।’
कहने का तात्पर्य है कि यह धारणा भ्रांत है कि बुद्धि या अक्ल के कारण कोई अमीर या गरीब बनता है। संसार का अपना एक चक्र है। शाश्वत सत्य कभी नहीं बदलता पर माया तो महाठगिनी है। आज इस घर में सुशोभित है तो कल वह किसी दूसरे दरवाजे पर जायेगी। लक्ष्मी के नाम का एक पर्यायवाची शब्द ‘चंचला’ भी है। वह हमेशा भ्रमण करती हैं। अतः हमेशा ही अमीरों को बुद्धिमान और गरीबों को बुद्धिहीन मानने वालों को अपने विचार बदलना चाहिए।
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