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Friday, October 2, 2015

समाधि पर जाने या न जाने पर विवाद करना बेकार-हिन्दी चिंत्तन लेख(Samadhi par jane ya n jane pa vivad khada karana vyrth-Hindi thought article)


                                    कोई व्यक्ति किसी की समाधि पर जाये या नहीं, यह उसका निजी विषय है चाहे भले ही वह किसी सार्वजनिक महत्व के पद पर हो-ऐसा हमारा मानना है।                                                        एक योगसाधक मंदिर में पत्थर की मूर्ति में अपने भाव से जीवंतता का अनुभव कर सकता है पर जबकि समाधि के पास जाने से वहां मृतभाव की उपस्थिति अध्यात्मिक रूप से विचलित कर सकती है। एक योगसाधक तथा गीता के ज्ञान का अभ्यासी अध्यात्मिक रूप से तीक्ष्ण प्रकृत्ति का होता है और उसे वह लोग चुनौती नहीं दे सकते जो उस जैसे नहीं हैं। योग साधना के साथ ही नियमित रूप से गीता का अभ्यास करने वाले मंदिर और समाधि का अंतर जानते हैं इसलिये किसी के कहीं जाने या न जाने पर प्रश्न नहीं करते।
                                   श्रीमद्भागवत गीता में भक्तों के तीन प्रकार बताये गये हैं-सात्विक, राजसी और तामसी। सात्विक देव, राजसी यक्ष व राक्षस तथा तामसी प्रेतों की पूजा करते हैं। कुछ अध्यात्मिक बुद्धिमान देव से आशय भगवान के दृष्य रूप जैसे भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा, यक्ष तथा राक्षस पूजा जीवित रूप में विद्यमान भगवान भक्ति में श्रेष्ठता प्राप्त मनुष्य की भक्ति  तथा प्रेत पूजा से आशय मृत्यु को प्राप्त लोगों को पूजने से मानते हैं। हम यहां भगवान राम, कृष्ण और हनुमानजी की बात करें तो इनके स्मरण में जीवंतता की अनुभूति होती है। इनकी पत्थर या धातु से बनी प्रतिमा हो या तस्वीर उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि जैसे हम उन्हें साक्षात देख रहे हैं। उस समय भक्त के भाव धातु वह पत्थर को भी  भगवत्रूप बना देते हैं।  उसी तरह समाज मेें ंसदैव ऐसे धार्मिक लोग भी रहते हैं भगवान की भक्ति का प्रचार करते हैं।  लोग भगवान की पूजा करते करते उनको भी भगवत्रूप मान लेते हैं।  यह यक्ष तथा राक्षस पूजा हो सकती है। हम यह बता दें कि राक्षस शब्द राजस और रक्षक का अपभ्रंश लगता है। राजसी व यक्ष भाव वाले सांसरिक विषयों में श्रेष्ठ पद धारण करने के लिये प्रयासरत होते हैं। वह एक तरह से समाज के रक्षक भी होते हैं-स्वाभाविक रूप से वह अपनी पूजा कराते हैं और उनके प्रभाव में आये लोग करते भी हैं। यक्ष सांसरिक विषयों में शीर्ष पर होने के साथ ही अध्यात्मिक रूप से  भी प्रबल होते हैं। यक्षों में कुबेर और राक्षसों में रावण का नाम आता है। दोनों ही भाई थे। समाधि में मृत भाव दिखता है। कुछ अध्यात्मिक  लोग इसे प्रेतपूजा भी मानते हैं जो कि तामसी भक्ति का परिचायक है।
                                   हमारी दृष्टि से किसी की भक्ति में कोई दोष नहीं है पर साथ ही किसी के मंदिर या समाधि पर जाने या न जाने पर वादविवाद करना एक बेकार का काम है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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