भगवान गणेशजी को बुद्धि और विवेक का प्रतीक माना जाता है। सामान्य भारतीय कोई भी आर्थिक, धार्मिक अथवा
सांस्कृतिक कार्य शुरु करने से पहले गणेश जी का स्मरण अवश्य करते हैं। आज हम जिस
श्रीमद्भागवतगीता की वजह से विश्वगुरु माने जाते हैं वह उनकी कृपा का ही प्रसाद
है।
महर्षि वेदव्यास महाभारतग्रंथ की रचना करना चाहते थे पर उसे लिखने वाला कोई
नहीं था। उन्होंने भगवान गणेश जी का स्मरण
किया तो वह उपस्थित हो गये। वेदव्यास ने
उनसे अपनी वाणी से निकलने वाले शब्दों को उनकी हस्तलिपि का वरदान देने का आग्रह
किया। श्रीगणेश जी ने भी शर्त रखी कि जब
तक महर्षि वेदव्यासजी (maha rishi VedVyas) ,की वाणी निर्बाध चलेगी तक तक ही उनकी कलम चलेगी। अगर वह एक क्षण भी
रुकी तो बंद हो जायेगी। महर्षिवेदव्यास मान
गये। इस महाभारत ग्रंथ (MahaBharat Granth) की रचना हुई जिसमें
गीता का ज्ञान हमारी अध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक बना।
गणेशजी की मूर्तियों की पूजा तथा उनका विसर्जन करने वाले ढेर सारे भक्त
शायद ही उस समय के स्वर्णिम पलों का काल्पनिक आंनद लेते हों जिस समय महर्षि वेदव्यास
और भगवान श्रीगणेश जी की एक ही बैठक में महाग्रंथ की रचना हुई। योग और ज्ञान साधकों के लिये भगवान श्रीकृष्ण
और देवों के देव श्रीगणेश के चरित्र की चर्चा अत्यंत रुचिकर होती है। गीता का
अध्ययन स्वयं करते हुए उसके संदेशों का अपने जीवन के प्रसंगों में उनका प्रभाव
देखने का प्रयास करना चाहिये। संदेशों को पढ़ने के बाद नितांत उनका मनन करना
चाहिये। इस अभ्यास से जब गीता जब आत्मसात
हो जायेगी तक जिंदगी का वह रूप सामने आयेगा जिसकी कल्पना बिना पढ़े की भी नहीं जा
सकती। जीवन की धारा प्रकृत्ति सिद्धांतों
के अनुसार होती है पर यह विज्ञान गीता के अध्ययन से ही समझा जा सकता है। इस संसार में न तो कोई विषय छोड़ना है न पकड़ना
है वरन् उससे अपनी सुविधा अनुसार जुड़ना और त्यागना ही जीवन जीने की कला है। यही
सन्यास है और यही ज्ञान भी है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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