सुना है गीता प्रेस संकट में है।
एक समाचार चैनल की खबर पर यकीन करें तो यह कहा जा सकता है कि भारतीय अध्यात्म की अकेली झंडाबरदार इस संस्था का
समाप्त होना हिन्दू धर्म का स्वर्ण युग का समाप्त हो जाना होगा। हिन्दू, हिन्दू हिन्दुस्तान का
नारा देने वाले अनेक महापुरुष हुए तो आजकल पेशेवर भी कम महापुरुष नहीं दिखते मगर
साहित्य और रचना के सहारे समाज को जीवित रखा जा सकता है और यही काम गीता प्रेस ने
किया है।
जिस तरह मैकाले ने अपनी शिक्षा पद्धति से भारत को इस तरह गुलाम बनाया कि आज
भी बौद्धिक धरती पर हमें परायापन लगता है उसके विपरीत गीता प्रेस ने भारतीय
अध्यात्म को जिंदा रखने का ऐसा प्रयास किया कि
इस बौद्धिक गुलामी में स्वतंत्र अध्यात्मिक विचार जीवंत बने हुए हैं। सच माने तो हमारा कहना है कि किसी मंदिर को
बनाने या बचाने से ज्यादा गीता प्रेस को बचाना होना चाहिये। एक मंदिर हजार, लाख या करोड़ लोगों की भौतिक श्रद्धा का केंद्र
हो सकता है पर गीता प्रेस जैसी संस्था सदियों तक उसी श्रद्धा को बनाये रखने का काम
कर सकती है। जिन लोगों में आर्थिक क्षमता और प्रबंधकीय कौशल हो तथा धर्म रक्षा करने के लिये प्रतिबद्ध भी हों वह
सब काम छोड़कर इस प्रयास में लग जायें कि गीता प्रेस बंद न हो। हम यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि गीता प्रेस के
किताबों के हम पाठक भर हैं और उसके संकट की हमें अधिक जानकारी भी नहीं है पर एक
अध्यात्मिक लेखक के रूप में हमारी यात्रा में उसके प्रकाशनों का बहुत महत्व है
इसलिये यह लिख रहे हैं। भले ही अंतर्जाल पर हमारे कम पाठक हैं पर इतनी अपेक्षा है
कि हमारी बात धीरे धीरे लोगों तक पहुंच जायेगी।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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