योग साधना काो हमारे अध्यात्मिक शायद इसलिये ही एकांत का विषय मानते हैं
क्योंकि न करने वालों का इसके बारे में ज्ञान होता नहीं है इसलिये ही साधक की भाव
भंगिमाओं पर हास्यास्पद टिप्पणियां करने लगते हैं। ताजा उदाहरण रेलमंत्री सुरेश प्रभु का विश्व 21 जून 2015 के अंतर्राष्ट्रीय योग
दिवस के अवसर पर शवासन करने पर उठे विवाद से है। वह शवासन के दौरान इतना तल्लीन हो गये कि उन्हें जगाने के लिये एक
व्यक्ति को आगे आना पड़ा। नियमित योग
साधकों के लिये इसमें विस्मय जैसा कुछ नहीं है। कभी कभी शवासन में योग निद्रा आ
जाती है। इसे समाधि का संक्षिप्त रूप भी
कहा जा सकता है। इस प्रचार माध्यम जिस तरह
सुरेश प्रभु के शवासन के समाचार दे रहे हैं उससे उनके यहां काम कर रहे वेतनभोगियों
के ज्ञान पर संदेह होता है।
हमारा अनुभव तो यह कहता है कि नियमित योग साधक प्रातःकाल जल्दी उठने के बाद
अपने नित्य कर्म तथा साधना से निवृत्त होने के बाद अल्पाहार करते हैं तब चाहें तो
शवासन कर सकते हैं। इस दौरान वह योगनिद्रा अथवा संक्षिप्त समाधि का आनंद भी ले
सकते हैं। इस दौरान निद्रा आती है पर उस समय देह वायु में उड़ती अनुभव भी होती
है। इस लेखक ने अनेक बार शवासन में निद्रा
और समाधि दोनों का आनंद लिया है। शवासन की निद्रा को सामान्य निद्रा मानना गलत है
क्योंकि उसमें सिर पर तकिया नहीं होता। गैर योग साधकों के लिये तकिया लेकर भी इस
तरह निद्रा लेना सहज नहीं है। विशारदों की
दृष्टि से शवासन में निद्रा आना अच्छी बात
समझी जाती है।
हमें यह तो नहीं मालुम कि सुरेश प्रभु शवासन के दौरान आंतरिक रूप से किस
स्थिति में थे पर इतना तय है कि इसमें मजाक बनाने जैसा कुछ भी नहीं है। वैसे भी योग साधकों को सामान्य मनुष्यों की ऐसी
टिप्पणियों से दो चार होना पड़ता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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