21 जून 2015 विश्व योग दिवस पर भारत में ओम के जाप तथा सूर्यनमस्कार
को लेकर चल रही बहस थम चुकी है। भारतीय
अध्यात्मिक विचाराधारा से अलग मान्यता वाले समूहों के संगठनों ने अंततः योग के
प्रति सद्भाव दिखाने का निर्णय लिया है। यह सद्भाव अलग से चर्चा का विषय है पर यह
भी सच है कि आज के लोकतांत्रिक युग में
धार्मिक, सामाजिक तथा कला
संस्थायें भले ही कितनी भी दम क्यों न भरें सत्ता प्रतिष्ठान के संकेतों की
उपेक्षा नहीं कर सकतीं। जब पूरा विश्व
बिना बहस के योग दिवस मनाने के लिये तैयार हुआ है तब भारतीय समाज का कोई एक या दो
समुदाय अपनी अलग पहचान दिखाने की जिद्द नहीं कर सकता। वैसे भारत का हर नागरिक अपने देश से प्रेम करता
है पर उसे समुदायों में बांटने वाले शिखर पुरुष अपनी सत्ता बनाये रखने के लिये
प्रथक पहचाने दिखाने का पाखंड करते हैं।
आपस में ही तयशुदा वाद विवाद कर यह साबित करने का प्रयास ही करते हैं कि वह
अपने समाज के खैरख्वाह है।
मुख्य विषय यह है कि योग भारतीय समाज के
दिनचर्या का अभिन्न भाग बन जाये इसके लिये अभी भी बहुत प्रयास की आवश्यकता है।
चाहे भी जिस समुदाय के साथ साधक जुड़ा हो उसे यह समझ लेना चाहिये कि इस समय जो पूरे
विश्व में वातावरण है उसमें सहज जीवन जीने के लिये योग साधना अत्यंत जरूरी
है। अन्य तरह के व्यायाम से दैहिक लाभ
होते हैं पर योग साधना में प्राणों पर
ध्यान रखने से मानसिक तथा वैचारिक रूप से दृढ़ता आती है जो वर्तमान समय में
सबसे अधिक जरूरी है। योग साधना का पूर्ण लाभ उसके प्रति समर्पण भाव होने पर ही
मिलता है। ‘मुझे प्रतिदिन योग
साधना करना ही है’ यह संकल्प
धारण करने के बाद इस विषय पर प्रतिकूल तर्कों पर कभी ध्यान नहीं देना चाहिये। प्रचार माध्यमों में विश्व योग दिवस पर बहस को
निष्पक्ष दिखाने के नाम पर अनेक आलोचकों को भी बुलाया गया। एक तरह से योग को राजसी
विषय बनाकर उसका व्यवसायिक उपयोग हुआ।
हमारा मानना है कि योग साधना की परंपरा भारतीय
समाज से संरक्षित होने पर ही निरंतर जारी रह सकती है। हालांकि यह बरसों से चल रही
है पर बीच बीच में इसका प्रवाह थम जाता है।
आमतौर से यह माना जाता था कि योग तो केवल सन्यासियों के लिये है। भारत के
अनेक योगियों ने निरंतर इसे जनमानस में स्थापित करने के लिये तप किया जिससे कि आज योग विषय प्रकाश की तरह पूरे विश्व के अंधेरे से लड़ रहा
है। एक बात दूसरी भी कही जाती थी कि योग
केवल सिद्ध पुरुष ही कर सकते हैं या हर योग चमत्कारी सिद्ध होता है। यह दोनों ही भ्रम है। योग साधना कोई भी सामान्य
मनुष्य कर सकता है पर उसका दैहिक, मानसिक
तथा वैचारिक लाभ कर्ता को ही होता है वह दूसरे को अपना फल भेंट नहीं कर सकता। इसलिये इसे करने पर स्वयं को सिद्ध भी नहीं
समझना चाहिये। एक साधक की तरह हमेशा जुड़े रहकर ही योग साधना का आनंद उठा सकता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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