कल यानि 21 जून 2015 को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। एक योग साधक होने के साथ ही
अंतर्जाल लेखक होने के कारण इस विषय पर अनेक पाठ लिखे। दरअसल योग साधना पर यह लेखक आठ वर्षों से लिख
रहा है। विश्व योग दिवस पर लिखे गये हाल
के पाठों से अधिक तो पूर्व में प्रकाशित पढ़े गये। पतंजलि योग साहित्य तथा
श्रीमद्भागवत गीता से संबद्ध लेखों का निरंतर पढ़ा जाना इस बात का परिचायक तो था कि
योग का का प्रचार बढ़ रहा है पर जिस तरह संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व योग दिवस
मनाने का निर्णय लिया उसने एक योग साधक के रूप में हमें परम आनंद का अनुभव हुआ।
हम देख रहे हैं कि भारत के कथित रूप से समाज पर मनुष्य मन के आधार पर उसे
भय दिखाकर नियंत्रण करने वाले अनेक धार्मिक ठेकेदारों की हवाईयां उड़ी हुई
हैं। यह भारत ही है जहां लोकतंत्र के चलते
यही रहने वाले अनेक सामुदायिक ठेकेदारों ने योग विद्या पर न केवल विरोध दर्ज कराया
वरन् जहां रुकावट डाल सकते हैं वहां डाली भी।
योग विरोधी की पहचान स्थापित कर भारतीय समाज से प्रथक दिखने के प्रयास से
उन्हें भय तो तब होता जब हमारे टीवी चैनल अपने व्यवसायिक हितों के लिये
निक्ष्पक्षता दिखाने के नाम पर उनके बयानों को बढ़ा चढ़ा कर पेश नहीं करते। एक दो विरोधी को दस समर्थकों से अधिक बोलने का
अवसर मिले तो वह किसलिये डरेंगे? एक या दो योग विरोधी
संपूर्ण भारतीय वैचारिक आधार पर से अलग चलने वाले समुदायों के प्रमाणिक प्रतिनिधि
बनाकर इस तरह पेश किये गये जैसे कि वह मत से निर्वाचित हुए हों। अपने समुदाय के इष्ट के दरबार में स्वामी बनना
या किताबों को पढ़कर ज्ञान बेचने वाला जनमत से निर्वाचित प्रतिनिधि से बड़ा हो सकता
है इस तरह की सोच भारत के कुछ टीवी चैनलों ने दिखाई। पहली बार पता लगा कि समाज को एक रूप दिखाने क
इच्छुक विद्वान ढोंगी हैं क्योंकि जब भी अवसर आता है उन्हें कभी इस तो कभी उस
समुदाय की पहचान अलग बनाये रखने का प्रयास वही करते हैं ताकि फूट पर उनकी रोटी
चलती रहे।
एक योग साधक होने पर हमें अंतर्जाल पर लिखने का अवसर मिला है इसलिये उसका
जमकर उपयोग करते हैं। हमारा मानना है कि भारतीय योग शिक्षकों प्रगतिशील और जनवादियों की सोच के जाल में
फंसकर योग प्रचार प्रसार में समस्त समुदायों को एक माला में पिरोने के प्रयास की
बजाय भारतीय धािर्मक विचाराधाराओं से जुड़े समुदायों को ही इसके लिये प्रेरित करना
चाहिये था। गैर भारतीय विचाराधारा वाले
समुदायों में अपनी छवि बनाने के प्रयास
में मूल योग तत्वों का प्रचार ठीक ढंग से ही नहीं हो पाया-इसके विपरीत गैर भारतीय
विचाराधारा वाले समुदायों के ठेकेदार इसे
एक शारीरिक व्यायाम बताकर समर्थन करते रहे-इस शर्त पर इसमें ओम या अन्य भारतीय
धर्म ग्रंथों के मंत्र तथा सूर्य नमस्कार इसमें
शामिल नहीं हुआ। हैरानी की बात है
कि योग के शिखर पुरुष इसे मानते चले गये।
अब हमारी चिंता यह है कि गैर
भारतीय विचाराधारा वाले समुदाय के लोग शायद ही योग साधना करें पर भारतीय
विचाराधारा वाले समुदाय जरूर भ्रमित न हो जायें कि यह तो केवल शारीरिक व्यायाम
वाली विधा है।
योग का छद्म समर्थक बनते हुए कुछ समुदायों के लोगों ने कहा कि योग का धर्म
से संबंध नहीं है। यह हास्यास्पद तर्क
वास्तविक समर्थकों ने भी दिया। हम स्पष्ट
कर दें कि योग अपने आप में एक धर्म है।
धर्म से संबंध न होता तो यह आज भी यह पतंजलि योग साहित्य तथा श्रीमद्भागवत गीता
प्रासंगिक नहीं होती। योगेश्वर श्रीकृष्ण
ने धर्म पर चलने का मार्ग ही योग को बताया है।
इन विवादों से परे हटते हुए हम भारतीय विचारधारा के आधार पर चलने वाले अपने
सहधर्मी लोगों को स्पष्ट कर दें कि ओम अक्षर परब्र्रह्म का रूप है। हर आसन और प्राणायाम के समय इसकी जो ध्वनि हृदय
में बजती है उसे सुने। इससे देह के हर अंग
में एक नयी स्फूर्ति का अनुभव होगा। दिन
में जब भी अवसर मिले ओम का जाप करते हुए ध्यान लगायें। हमें स्वयं तेजस्वी बनने के साथ ही अपने परिवार
तथा समाज को इस पथ पर चलने के लिये प्रेरित करें न कि दूसरे समुदायों से प्रशंसा
पाने के प्रयास में इसके मूल तत्वों से बचने में अपना समय बर्बाद करें।
अपने
सभी पाठकों, ब्लॉग
लेखक मित्रों, तथा
फेसबुक पर सक्रिय प्रशंसकों को विश्व योग दिवस की हार्दिक बधाई। एक दिन पहले इसलिये दे रहे हैं क्योंकि
प्रातःकाल हमारा समय योग साधना में गुजर जाता है। बाद में आकर देना बासी लगेगा।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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