नेपाल में 25 अप्रैल 2015 को आये भूकंप पर अनेक विद्वान कह रहे हैं कि यह मनुष्य का प्रकृत्ति से
छेड़छाड़ का नतीजा है। अगर यह मान लिया जाये तो नेपाल में ही 1934 में आये भूकंप के बारे
में क्या कहेंगे जिसकी तीव्रता 2015 से अधिक रही थी-उसमें इतनी जनहानि की बात नहीं कही जाती जबकि उस समय कथित
विकास का वर्तमान जैसा रूप नहीं था। वैसे भी अनेक विशेषज्ञ यह कहते हैं कि भूकंप
से नहीं वरन् उसके आने पर मानव निर्मित इमारतों के ढहने से अधिक हानि होती
है। इसलिये प्रकृत्ति से मनुष्य के छेड़छाड़
से भूकंप आने का तर्क बेकार है वरन् हम यह कह सकते हैं विकास के प्रति अंधविश्वास
की वजह से अब अधिक हानि हो रही है।
2015 में अधिक जनहानि देखकर
हम यह कह सकते हैं कि भौतिक विकास के प्रति लोगों का नजरिया अब सतही हो गया है।
पैसा आ गया तो उपभोग की तरफ तेजी से जाना है-मकान बनाना, विलासिता से रहना, अपाच्य भोजन करना तथा
अधिक दैहिक निष्क्रियता सुख का पर्याय मानना ही हमारे संकट का कारण है। प्रतिवर्ष हजार भूकंप झेलने का आदी हो चुका
जापानी समाज अत्यंत विकसित है पर जनहानि के समाचार वहां से नहीं आते। स्पष्टतः
वहां भौतिक विकास के साथ अध्यात्मिक चेतना भी बनी हुई है। लोग भूकंप निरोधी ढांचे
बनाते है। हमारे यहां पूर्व काल के अनेक ढांचे इसी तरह बने हैं कि वह अनेक भूकंपों
के बाद भी अपनी जगह खड़े है-केदारनाथ तथा पशुपतिनाथ का मंदिर इसका प्रमाण है।
अनेक कथित धार्मिक विद्वान कह रहे हैं कि भगवान ने अपने स्थान की रक्षा कर सामर्थ्य
दिखाया है। यह एक तरह से न अंधविश्वास का प्रमाण है वरन् इन्हें बनाने में लगे उन
महान श्रमिकों, अभियंताओं तथा निर्माताओं का अपमान है जो वास्तव में मनुष्य थे पर उनकी
अध्यात्मिक चेतना इतनी व्यापक थी कि उन्होंने अपने आत्मप्रचार के लिये कोई स्तंभ
नहीं लगाया। सब भगवान ही करते हैं और मनुष्य चेतनाविहीन है और उसमें कोई सामर्थ्य
नहीं है-यह प्रचार धार्मिक प्रचारकों के लिये आस्तिकतावादियों में अंधश्रद्धा
उत्पन्न करने में सहायक होता है जो अंततः
भेंट आदि देकर उनकी रोजीरोटी चलाते हैं। श्रीमद्भागवत में इस सृष्टि के
निर्माण की घटना का अध्ययन किया जाये तो यह साफ हो जाता है कि परमात्मा हर जीव में
प्राणवायु संयत्र का प्रारंभिक संचालन तक ही सीमित रहता है और शेष कार्य जीव को
स्वयं ही करना होता है। जैसी साधना और
साध्य है वैसे ही साधक हो जाता है-उसी तरह
की सिद्धि वह पाता है। यह सिद्धि अपनी अच्छाई और बुराई के अनुसार उसे परिणाम भी
देती है।
हमारे यहां अनेक धार्मिक प्रचारक हैं पर वह सत्य की बजाय भ्रम फैलाते हैं।
अपनी बातों से कथित शिष्यों का मनोरंजन कर उन्हें प्रसन्न करते हैं। भगवान
सर्वशक्तिमान है वही सृष्टि बनाता और चलाता है और जीव की भूमिक अपने जीवन में
शून्य है यह सोचकर किसी को निष्क्रिय बनाना अपने आप में अपराध जैसा है। अध्यात्मिक ज्ञान कर्म और परिणाम के सिद्धांत के अभाव में लोग
केवल कर्म सिद्धांत पर ही चल रहे हैं। एक नारा दिया जाता है कि भगवान ने कहा है कि
‘कर्म ही मेरी पूजा है’, पर किस तरह का कर्म उचित या अनुचित है इसकी पहचान कोई नहीं बताता। नतीजा यह
है कि लोग धन संग्रह तथा उपभोग की तरफ भाग रहे हैं-तर्क यह कि धन से ही धर्म की
रक्षा होती है। यह कारण है कि एक तरफ वैज्ञानिक इमारतों की सुरक्षा के लिये जिस
तरह की आवश्यकतायें अनिवार्य बताते हैं उसके अनुकूल न तो निर्माता बनाता है न ही
उपभोक्ता में इतनी चेतना बची है कि वह इस तरफ गौर करे।
प्रकृति
का सत्य यह है कि करोड़ों वर्ष से यह धरती बनी और बिगड़ी है। कितनी सभ्यतायें बनी और बिगड़ीं। संभव है हम से
अधिक विकसित सभ्यतायें बनी हों पर हम यह अंतिम सत्य मानते हैं कि हमारी सभ्यता
सबसे श्रेष्ठ हैं। हमारा अध्यात्मिक दर्शन
कहता है कि जब जब प्रथ्वी पर बोझ बढ़ता है वह भगवान की शरण जाती है। वही उसका बोझ
हल्का करने के लिये कोर्इ्र उपाय करते हुए अपनी मूल रचनाकार प्रवृति से निवृत
होकर संहारक बनने के लिये प्रवृत्त होते हैं। इसके बावजूद इस धरती पर जीवन
कभी संपूर्णता से नष्ट नहीं करते यह उन्हीं की कृपा कही जा सकती है पर उसके बाद
मनुष्य न केवल स्वयं वरन् अन्य जीवों के विकास के लिये फिर जुटता है यह उसकी शक्ति
और भक्ति है। ऐसे में जो अपनी शक्ति और
भक्ति का जो मनुष्य अधिक उपयोग करते हैं उन्हें देवपुरुष कहा ही जाना चाहिये।
उनमें भी जो आत्मप्रचार से पर रहते हैं तो उन्हें भगवत्रूप ही कहा जाता है। इसलिये
भूकंप को लेकर सर्वशक्तिमान के प्रति अंधविश्वास तथा अविश्वास दोनों ही नहीं रखना
चाहिये।
के प्रति अंधविश्वास तथा अविश्वास दोनों ही नहीं रखना
चाहिये।
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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