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Sunday, April 19, 2015

धर्मपथ और योगपथ-हिन्दी लघुकथा(dhamapatha aur yogpath-hindi short story or laghukathaa)


एक योग साधक ने एक भक्त मित्र ने कहा-‘‘आज दोपहर मेरे साथ एक धर्म में मेले में चलो।’’
साधक ने कहा-‘‘मेरी दृष्टि से तो धर्म का समय प्रातःकाल ही निश्चित है। इसलिये मै दोपहर धर्म मेले में नहीं चल सकता।’’
भक्त ने कहा-‘‘तुम नास्तिक हो इसलिये कभी भी किसी धार्मिक कार्यक्रम मे नहीं जाते हों। मैं जब भी कहता हूं तुम यही कहते हो।’’
          योग साधक ने कहा-‘‘मै सुबह योग साधना कर लेता हूं क्या वह भगवान के प्रति आस्था का प्रमाण नहीं है जबकि श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण जी ने योग का महत्व प्रतिपादित किया है।’’
          भक्त ने कहा‘‘उंह! यह हाथ पैर हिलाना और सांसें जोर से लेना और छोड़ना क्या योग साधना है?’’
साधक ने कहा-‘‘मेरी दृष्टि से यही है। मूल प्रश्न यह है कि मैं तुमसे कभी नहीं कहता कि प्रातःकाल योग साधना करो फिर मुझे तुम क्यों धार्मिक कार्यक्रमों में चलने का आग्रह क्यों करते हो? मै प्रातः जल्दी उठता हूं और तुम सूर्योदय के बाद बिस्तर छोड़ते हो। कभी मैंने तुम्हें ताना दिया है? तुम मेरी राह नहीं चलते पर मैं कभी आक्षेप नहीं करता जबकि अपना सहयात्री न होने से तुम रुष्ट हो जाते हों। योग साधना भी एक अनुष्ठान है जो मैं करता हूं। मैं कभी नहीं कहता कि तुम धार्मिक मेलों में अनुष्ठान न करो पर तुम्हारे अंदर अपनी भक्ति का अहंकार है वह मेरे न चलने पर ध्वस्त हो जाता है और तुम क्रोध में भरकर टिप्पणियां करते हों। तुम्हारे साथ धार्मिक मेले में चलना तो दूर धर्म पर कोई भी चर्चा मुझे व्यर्थ नज़र आती है।’’
भक्त निरुतर हो गया। तब साधक ने कहा-‘‘तुमने अगर धार्मिक मेले में जाने का तय किया है तो मेरे साथ के अभाव की वजह से रुक नहीं जाना। कम से कम मेरा ज्ञान यही कहता कि दूसरे को उसे धर्म पथ से विचलित नहीं करना चाहिये।’’
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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