समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
-------------------------


Saturday, July 13, 2013

पतंजलि योग साहित्य-प्रत्याहार चतुर्थ प्राणायाम है (pratyahar chaturth pranaya hai)



  हम जानते हैं कि योग साधना के आठ भाग-यम. नियम, आसन, प्राणायाम प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि-होते हैं। इसमें प्रत्याहार के बारे में बहुत कम समझते हैं। वैसे इसे समझने के लिये अधिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। इतना अवश्य है कि प्रत्याहार को समझने के लिये अपने हृदय में यह विश्वास धारण करना  पड़ेगा कि भारतीय योग साधना पद्धति  से प्रतिदिन अभ्यास करने पर देह के साथ ही मन और विचार के विकार भी निकालने में सहायता मिलती है।  प्रत्याहार इस योग साधना अत्यंत महत्वपूर्ण भाग होने के साथ ही चौथा प्राणायाम भी माना जाता है। जिस तरह प्राणाायाम में हम सांस को रोकते और ग्रहण करते हैं उसी तरह प्रत्याहार में अपने मस्तिष्क में विषयों का चिंत्तन भी त्यागते हैं। जिस तरह प्रातः सांसों का प्राणायाम करने से मन की शुद्धि होती है उसी तरह विषयों के प्राणायाम यानि प्रत्याहार से विचारों की शुद्धि होती है।
पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है।
-------------------
बाह्यभ्यन्तरिवषयाक्षेपी चतुर्थः।।
ततः क्षीयते प्रकाशावरणम्।।
धारणासु च योग्यता मनसः।।
स्वविषयासम्प्रयोगे चित्तस्वरूपानुकार इवेन्दियाणां प्रत्याहारः।
हिन्दी में भावार्थ-बाहर अंदर के विषयों का त्याग करना चौथा प्राणायाम है। इसके अभ्यास से प्रकाश का आवरण क्षीण हो जाता है तथा धारणाओं में मन  योग्यता प्राप्त कर लेता है।  अपने विषयों से सम्बंध रहित होने पर इन्द्रियों का जो चित्त के स्वरूप एकाकार हो जाता है वह प्रत्याहार है।
         हम अपने सांसरिक विषयों से इस तरह जुड़े होते है कि उन पर चिंत्तन का क्रम चलता रहता है। एक विषय से ध्यान हटता है तो दूसरे पर चल जाता है। इस कारण हमारे मस्तिष्क को विराम नहीं मिलता।  हम चाहे जितने भी आसन कर लें या कितने भी प्रकार का प्राणायम करें जब तक अपने मस्तिष्क में विषयों से पैदा विकारों का निष्कासन नहीं करेंगे तब तक योग साधना का आनंद नहीं उठा पायेंगे।  प्रत्याहार के समय मन को एकाग्र कर लेना चाहिये। उस समय किसी भी स्थिति में किसी भी विषय का चिंत्तन दिमाग में नहीं आने देना चाहिये। अपनी दृष्टि केवल नासिका के मध्य ऊपरी भाग पर रखना चाहिये।  उस समय कोई भी ख्याल आता है तो आने दीजिये। दरअसल यह क्रम विषयों से उत्पन्न विकारों के ध्वस्त होने का होता है। धीरे धीरे मन शांत होने लगता है।  ऐसा लगता है कि वह अंधरे में चला गया है।  यह स्थिति इस बात का प्राण होती है कि विषयों से पैदा विकार जल गये हैं। उसके बाद  अपना चित्त केवल इसी अंधेरे पर रखते हुए बैठे रहें । चित्त की एकाग्रता ही धारणा के स्थिति  है जो कि  प्रत्याहार के बाद ही आती है। इसके बाद ध्यान लग पाता है।   ध्यान से पूर्व विषयों का त्याग करना ही प्रत्याहार है।  इस तरह के अभ्यास से इंद्रियों के सही स्वरूप को समझकर उन पर निंयत्रण किया जा सकता है। योग के आठ भागों को अभ्यास नहीं होगा तो जीवन में संपूर्ण आंनद का अनुभव नहीं किया जा सकता।         

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 


No comments:

Post a Comment

अध्यात्मिक पत्रिकाएं